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Monday, November 26, 2012

राहु ग्रह और महिलाएं ......

राहु एक तमोगुणी मलेच्छ और छाया  ग्रह माना गया है। इसका प्रभाव शनि की भांति  ही होता है।
यह तीक्ष्ण  बुद्धि , वाक्पटुता , आत्मकेंद्रिता ,स्वार्थ , विघटन और अलगाव , रहस्य  मति भ्रम , आलस्य  छल - कपट ( राजनीति ) , तस्करी ( चोरी ), अचानक घटित होने वाली घटनाओं , जुआ  और  झूठ का कारक  है।

राहू से प्रभावित स्त्री एक अच्छी जासूस या वकील , अच्छी  राजनीतीज्ञ  हो सकती है। वह आने वाली बात को पहले ही भांप लेती है। विदेश यात्राएं बहुत करती है।

कुंडली में राहू जिस राशि में स्थित होता है वैसे ही परिणाम देने लगता है। अगर वृहस्पति के साथ या उसकी राशि में हो तो स्त्री को ज्योतिष में रूचि  होगी। शनि के प्रभाव में तो तांत्रिक - विद्या में निपुण होगी।

चंद्रमा के साथ हो तो वह कई सारे  वहमो में उलझी रहेगी , जैसे उसे कुछ दिखाई  दे रहा है ( भूत-प्रेत आदि )...., या भयभीत रहती है। अगर वह ऐसा कहती है तो गलत नहीं कह रही होती  क्यूंकि अगर स्त्री के लग्न में राहू हो या राहू की दशा -अन्तर्दशा में ऐसी भ्रम की स्थिति हो जाया करती है। जब हमारे देश की कुंडली में राहू की दशा थी तब देश में भी  भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुयी थी जैसे गणेश जी का दूध पीना , समुन्दर का पानी मीठा हो जाना ....आदि -आदि।
ऐसे में स्त्री पर आक्षेप लगाने से बेहतर होगा के उसकी कुंडली दिखा कर सही उपचार किया जाय।अगर कुंडली ना हो तो शिव जी शरण में जाना चाहिए। मोती भी धारण किया जा सकता है पर सही ज्योतिषी की राय लेकर ही।

राहु से प्रभावित स्त्री की वाणी में कटुता आ जाती है।वह थोड़ी घमंडी  भी हो जाया करती है।। भ्रमित  रहने के कारण वह कई बार सही गलत की पहचान भी नहीं कर पाती। जिसके फलस्वरूप उसका दाम्पत्य जीवन भी नष्ट होते देखा गया है।

राहु  के दूषित प्रभाव के कारण स्त्री में चर्म  -रोग ,मति -भ्रम , अवसाद रोग से ग्रस्त  हो सकती है।

राहु को शांत करने के लिए दुर्गा माँ की आराधना करनी चाहिए। खुल कर हँसना चाहिए। मलिन और फटे वस्त्र नहीं पहनना चाहिए। गहरे नीले रंग से परहेज़ करना चाहिए। काले रंग की गाय की सेवा करनी चाहिए।मधुर संगीत सुनना चाहिए।रामरक्षा स्त्रोत का पाठ भी लाभ दायक रहेगा।

 इसकी शांति के लिए गोमेद रत्न धारण किया जा सकता है लेकिन किसी अच्छे ज्योतिषी की राय ले कर ही।

ॐ शांति ...







Sunday, November 25, 2012

शनि ग्रह और महिलाएं ...

शनि ग्रह तमोगुणी और पाप प्रवृत्ति का है। यह सबसे धीमा चलने वाला , शीतल , निस्तेज  , शुष्क  , उदास और शिथिल  ग्रह है। इसे वृद्ध ग्रह माना गया है। इसलिए इसे दीर्घायु प्रदायक या आयुष्कारक ग्रह कहा गया है।

यह कुंडली में कान , दांत , अस्थियों , स्नायु  , चर्म ,शरीर में लोह तत्व व वायु तत्व , आयु , जीवन , मृत्यु  , जीवन शक्ति , उदारता  , विपत्ति  , भूमिगत साधनों और अंग्रेजी शिक्षा का कारक  है।

किसी भी स्त्री की कुंडली में अच्छा शनि उसे उदार , लोकप्रिय बनता है और तकनीकी ज्ञान में अग्रणी रखता है। वह हर क्षेत्र में अग्रणी हो कर प्रतिनिधित्व करती है। राजनीति में भी उच्च पद प्राप्त करती है।

दूषित शनि विवाह में विलम्ब कारक भी है। और निम्न स्तर का जीवन साथी की प्राप्ति की ओर भी संकेत करता है।

दूषित शनि स्त्री को ईर्ष्यालु और हिंसक भी बना देता है।यह स्त्री में निराशा ,उदासीनता और नीरसता का समावेश कर उसके दाम्पत्य जीवन को कष्टमय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता। और धीरे - धीरे  स्त्री अवसाद की तरफ बढ़ने लग  जाती है।

स्त्रियों में कमर -दर्द , घुटनों का दर्द या किसी भी तरह का मांसपेशियों का दर्द दूषित शनि  का ही परिणाम है। चंदमा के साथ शनि स्त्री को पागलपन का रोग तक दे सकता है। इसके लिए स्त्री को काले रंग का परहेज़ और अधिक से अधिक हलके और श्वेत रंगों का प्रयोग करना चाहिए।

शनि  को अनुकूल बनाने के लिए स्त्री को ना केवल  अपने परिवार के ही बल्कि सभी वृद्ध जनो का सम्मान करना चाहिए। अपने  अधीनस्थ कर्मचारियों और सेवकों के प्रति स्नेह  और उनके हक़ और हितों की रक्षा भी करें। देश के प्रति सम्मान की भावना रखे। शनि इम्मंदारी और सच्चाई से प्रसन्न रहता है।

क्यूंकि शनि को न्यायाधीश भी माना  गया है तो यह अपनी दशा -अंतर दशा में अपना सुफल या कुफल जरुर देता है कर्मो के अनुसार।

शनि अगर प्रतिकूल फल दे रहा हो तो हनुमान जी की आराधना करनी चाहिए। मंगलवार को चमेली के तेल का दीपक हनुमान जी के आगे करना चाहिए। शनि चालिसा , हनुमान चालीसा का पाठ विशेष लाभ देगा। अगर शनि के कारण हृदय रोग परेशान  करता हो तो सूर्य को जल और आदित्य -ह्रदय स्त्रोत का पाठ लाभ देगा और अगर मानसिक रोग के साथ सर्वाइकल का दर्द हो तो शिव आराधना विशेष लाभ देगी। काले और गहरे नीले रंग का परित्याग शनि को अनुकूल बना सकता है।

नीलम का धारण भी शनि को अनुकूल बनता है पर किसी अच्छे ज्योतिषी से पूछ कर ही।

ॐ शांति .....

शुक्र ग्रह और महिलाएं ......

शुक्र एक शुभ एवं रजोगुणी ग्रह है।यह विवाह , वैवाहिक जीवन , प्यार , रोमांस  , जीवन साथी तथा यौन सम्बन्धों का नैसर्गिक कारक है। यह सौंदर्य , जीवन का सुख , वाहन  , सुगंध और सौन्दर्य प्रसाधन का कारक भी है।

किसी भी स्त्री की कुंडली में जैसे वृहस्पति ग्रह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है , वैसे ही शुक्र भी दाम्पत्य जीवन में प्रमुख भूमिका निभाता है।

 कुंडली का अच्छा शुक्र चेहरा देखने से ही प्रतीत हो जाता है। यह स्त्री के चेहरे को आकर्षण का केंद्र बनाता  है। यहाँ यह जरुरी नहीं की स्त्री का रंग गोरा है या सांवला।

सुन्दर -नेत्र और सुंदर केशराशि से पहचाना जा सकता है  स्त्री का शुक्र शुभ ग्रहों के सानिध्य में है। वह सोंदर्य -प्रिय भी होती है।

अच्छे  शुक्र के प्रभाव से स्त्री को हर सुख सुविधा प्राप्त होती है।  वाहन ,  घर , ज्वेलरी , वस्त्र   सभी उच्च कोटि के। किसी भी वर्ग की औरत हो ,  उच्च , मध्यम या निम्न उसे अच्छा शुक्र सभी वैभव प्रदान करता ही है। यहाँ यह कहना भी जरुरी है अगर आय के साधन सीमित भी हो तो भी वह ऐशो आराम से ही रहती है।

अच्छा शुक्र किसी भी स्त्री को गायन , अभिनय ,काव्य -लेखन की और प्रेरित करता है। चन्द्र के साथ शुक्र हो तो स्त्री भावुक होती है। और अगर साथ में बुध का साथ भी मिल जाये तो स्त्री लेखन के क्षेत्र में पारंगत होती है और साथ ही में वाक् पटु भी , बातों में उससे शायद ही कोई जीत पाता हो।

अच्छा शुक्र स्त्री में मोटापा भी देता है।जहाँ वृहस्पति स्त्री को थुलथुला मोटापा दे कर अनाकर्षक बनता है वही शुक्र  से आने वाला मोटापा स्त्री को और भी सुन्दर दिखाता है।यहाँ हम शुभा मुदगल और किरन खेर , फरीदा जलाल का उदाहरण  दे सकते हैं।

कुंडली का बुरा शुक्र या पापी ग्रहों का सानिध्य या कुंडली के दूषित भावों का साथ स्त्री में चारित्रिक दोष भी उत्पन्न करवा  सकता है।यह विलम्ब से विवाह , कष्ट प्रद दाम्पत्य जीवन , बहु विवाह , तलाक की और  भी इशारा करता है। अगर ऐसा हो तो स्त्री को हीरा पहनने से परहेज़ करना चाहिए।

कमज़ोर  शुक्र स्त्री में मधुमेह , थाइराईड , यौन रोग , अवसाद और वैभव हीनता लाता  है।

शुक्र को अनुकूल करने के लिए शुक्रवार का व्रत और माँ लक्ष्मी जी की आराधना करनी चाहिए। चावल ,  दही  , कपूर , सफ़ेद -वस्त्र , सफ़ेद पुष्प का दान देना अनुकूल रहता है।  छोटी कन्याओं कोचावल की इलाइची डाल कर  खीर भी खिलानी चाहिए।

कनक - धारा , श्री सूक्त , लक्ष्मी स्त्रोत , लक्ष्मी चालीसा  का पाठ और लक्ष्मी मन्त्रों का जाप भी सुकर को बलवान करता है।माँ लक्ष्मी को गुलाब का इत्र  अर्पण करना विशेष फलदायी है।

हीरा भी धारण किया जा सकता है पर किसी अच्छे  ज्योतिषी से कुंडली का विश्लेष्ण करवाने के बाद ही।

 जन्म -कुंडली के अलग -अलग भावों और ग्रहों के साथ शुक्र के प्रभाव में अंतर आ सकता है।यह मेरा एक सामान्य विश्लेष्ण ही  है।

ॐ शांति .....

Thursday, August 30, 2012

ज्योतिष द्वारा चोरी गयी वस्तू का ज्ञान ...

कभी -कभी घरों में छोटी मोटी  चोरी की घटना घट जाती है। तब  एक छट -पटाहट  सी रहती है ,चोर कौन हो सकता है। ज्योतिष द्वारा इसका सटीक पता  प्रश्न  कुंडली से लगाया जाता है।
जब भी चोरी का पता लगता है उस समय को नोट कर लीजिये। अगर किसी को जन्मकुंडली देखने का ज्ञान है तो ठीक है नहीं तो किसी भी ज्योतिष के पास समय को बता कर समस्या का समाधान किया जा सकता है।
 चोरी होने की सूचना मिलते ही  तुरंत प्रश्न कुंडली बनायें।
मेष या वृषभ लग्न ----पूर्व दिशा 
मिथुन लग्न         ----- अग्नि कोण 
कर्क लग्न             ---- दक्षिण 
 सिंह लग्न ------------ नैरित्य कोण 
कन्या लग्न --------- उत्तर दिशा 
 तुला और वृश्चिक लग्न -- पश्चिम दिशा 
धनु लग्न ------------ वायव्य कोण 
 मकर और कुम्भ लग्न ---उत्तर दिशा 
मीन लग्न ------------इशान कोण 
उपरोक्त लग्नो में खोयी वस्तु ,उसके दिखाए गए लग्नो के सामने की दिशा में गयी है।
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अब सवाल उठता है चोरी करने वाला कौन हो सकता है तो नीचे लिखे लग्नो के आधार पर पता लगाया जा सकता है।
मेष लग्न ---ब्राह्मण या सम्मानीय भद्र पुरुष 
वृषभ लग्न--क्षत्रिय 
मिथुन लग्न -----वेश्य 
कर्क लग्न -------शुद्र या सेवक वर्ग 
सिंह लग्न ------स्वजन या आत्मीय व्यक्ति 
कन्या लग्न---- कुलीन स्त्री ,घर की बहू  -बेटी  या बहन 
तुला लग्न ----पुत्र ,भाई या जमाता 
वृश्चिक लग्न-- इतर जाति का व्यक्ति 
धनु लग्न ---स्त्री 
मकर लग्न ---वेश्य या व्यापारी 
कुम्भ लग्न---चूहा 
मीन लग्न----खोयी घर में ही पड़ी है कहीं ( मिस-प्लेस )
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यह सब जानने  के बाद यह भी प्रश्न उठता है , जो सामान चोरी हुआ है वह मिलेगा या नहीं ? इसके लिए प्रश्न कुंडली में चंद्रमा की स्थिति देखी  जाती है। यहाँ पर चंद्रमा को मालिक और  सातवें  भाव को चोर माना जाता है।चौथे भाव को धन -प्राप्ति  की जगह और लग्न -भाव को चोरी गया सामान माना जाता है।
1) लग्न -भाव का स्वामी अगर सातवें घर या उसके स्वामी के साथ हो तो कोशिश करने पर चोरी गया धन मिल जाता है।
2)अगर लग्न -भाव का स्वामी अष्ठम में हो तो चोर खुद ही चोरी की गयी वस्तु  लौटा देगा।लेकिन ग्रह  अस्त होगा तो चोरी का पता चलेगा पर वस्तु नहीं मिलेगी।
3)लग्न-भाव का स्वामी दसवें घर के स्वानी के साथ है तो चोर माल सहित पकड़ा जायेगा।
4) अगर लग्नेश की दृष्टि दसवें घर के स्वामी पर नहीं पद रही हो तो चोरी गयी वस्तु नहीं मिलेगी।
5)अगर सातवें घर का स्वामी सूर्य के साथ अस्त हो तो बहुत समय बाद चोर का तो पता चल जायेगा पर वास्तु नहीं मिलेगी।
6)अगर सप्तमेश और लग्नेश साथ में हो तो चोर  राज भय से डर  कर खुद ही माल को दे देता है।
7)अगर  सप्तमेश  पर लग्नेश की दृष्टि ना पड़  रही हो तो ना चोर को लाभ लाभ होता है ना मालिक को ,माल को     मध्यस्थ ही  हड़प लेता है।
8)प्रश्न कुंडली में अष्ठम भाव चोर के धन रखने का स्थान होता है इसलिए अगर धन भाव  का  स्वामी अष्ठम में ही बैठा हो तो माल नहीं मिलेगा।और अगर धन भाव का स्वामी सप्तम में हो तो भी माल नहीं मिलता क्यूँ कि "चंद्रास्वामी चोर सप्तम "  के अनुसार  सप्तम भाव स्वयं  चोर है।
9) धनेश अगर अष्टमेश के साथ हो तो धन मिल जाता है।
10) अगर अष्टमेश ,दशमेश के साथ हो तो राज-पुरुष चोर का पक्षपाती ही माल नहीं मिलेगा।
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अब चोरी हुई वस्तु कहाँ छिपाई गयी है इस पर विचार करते हैं।
1) लग्नेश और सप्तमेश  का आपस में परिवर्तन  या दोनों एक ही भाव में हो तो वस्तु घर में ही कहीं छुपी या छुपाई गयी है।
2) चंद्रमा अगर लग्न में हो तो वस्तु  पूर्व दिशा में होगी और अगर सप्तम में हो तो वस्तु पश्चिम में मिलेगी।चंद्रमा अगर दशम ने हो तो दक्षिण और चतुर्थ में हो तो वस्तु  उत्तर दिशा में मिलेगी।
3) अगर लग्न में अग्नितत्व राशि ( मेष ,सिंह ,धनु ) हो तो वस्तु घर के पूर्व,अग्नि -स्थान , रसोई घर में ही मिल जाती है।
4 ) लग्न में अगर पृथ्वी -तत्व राशि ( वृषभ ,कन्या ,मकर ) हो तो वस्तु दक्षिण दिशा में भूमि में दबी मिलेगी।
5 ) अगर लग्न में वायु -तत्व राशि  ( मिथुन ,तुला कुम्भ ) हो तो वस्तु पश्चिम दिशा में हवा में लटकाई गयी है।
6 )लग्न में जल-तत्व राशि ( कर्क ,वृश्चिक ,कुम्भ )  हो तो वस्तु जलाशय के पास या उसके आस-पास उत्तर दिशा में मिलेगी।
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ग्रहों के हिसाब से चोर कौन है और कितनी उम्र का है ये भी पता लगाने की कोशिश करते हैं।
1) प्रश्न -कुंडली में यदि लग्न पर सूर्य-चन्द्र दोनों की दृष्टि पड़ रही हो तो वस्तु  किसी घर के व्यक्ति ने ही चुराई है।और यदि लग्नेश ,सप्तमेश से युक्त हो कर लग्न में हो तो भी चोरी किसी घर के व्यक्ति ने ही की है।
2)लग्न पर सूर्य या चन्द्र किसी एक ही की दृष्टि पड़ रही हो तो वस्तु किसी आस पास रहने वाले व्यक्ति ने चुराई है।
3)अगर सप्तमेश द्वादश या तृतीय स्थान में हो तो घर के नौकर ने चोरी की है।
4 )अगर सप्तमेश स्वग्रही या अपनी उच्च राशि में हो तो चोरी पेशेवर चोर ने की है। यहाँ पर चोर की शक्ति का ज्ञान लग्न,सप्तम और दशम भाव के बल के अनुसार करना चाहिए।
5) प्रश्न -कुंडली में अगर सूर्य बलवान हो तो पिता या पितातुल्य व्यक्ति ,चंद्रमा बलि हो तो माँ या मातातुल्य  महिला ,शुक्र बली हो तो महिला ,वृहस्पति बलि हो तो घर के मालिक ने ,शनि बलि हो तो पुत्र ने और मंगल बलि हो तो भाई या सगा भतीजा तथा बुध बलवान हो तो मित्र या मित्र -सम्बन्धियों ने चोरी की है।
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लग्न में अगर शुक्र ----युवक 
                      बुध ---- बालक 
                    गुरु -----वृद्ध 
                   मंगल--युवक 
                  शनि --- वृद्ध ....चोर है।
लग्न और दशम भाव के मध्य सूर्य है तो चोर बालक है। दशम भाव और सप्तम भाव के मध्य  सूर्य हो तो चोर युवक है। लग्न और चतुर्थ भाव के मध्य सूर्य हो तो चोर अत्यंत वृद्ध है।

ॐ शांति।...............

शब्द साभार।

Sunday, August 26, 2012

कुछ आसान और जरुरी बातें ( 1 )

जन्म-दिन पर किया जाने वाला कर्म
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जन्म  -दिन वाले दिन सुबह-सुबह ,जिस किसी का भी जन्म -दिन हो , एक नारियल ( पानी वाला )ले कर उस पर मोली लपेट कर ,घडी की उलटी दिशा ( एंटी क्लोक वाइज़ )में सात बार घुमाएं और बहते हुए पानी में छोड़ दें। और इस दिन जातक के वजन के बराबर गायों को हरा चारा भी  डाल  दें।साल भर सुख-शान्ति बनी रहती है।

आकस्मिक विपदा से बचाव
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कई बार अचानक विपदा आती है या कभी निर्दोष होते हुए भी बहुत गम्भीर आरोपों का सामना करना पड  जाता है।तो सबसे सरल उपाय है सुन्दर -काण्ड का पाठ। यह  नौ  दिन करना होता है। पहले दिन एक पाठ , दूसरे  दिन दो पाठ  ऐसे ही दिन के साथ-साथ पाठों की संख्या बढती जाएगी। नवें दिन पाठ समाप्त करके एक वृद्ध ब्राह्मण को भोजन करवा कर उसे -वस्त्र - दक्षिणा आदि दें। बहुत कारगार उपाय है ये ,  नौ  दिन अखंड ज्योति जरुर जलना चाहिए और ये पाठ स्वयं  ही करें किसी पंडित से ना करवाएं।

झगडे से तुरंत बचाव का उपाय
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अगर कभी कंही ( किसी भी जगह ,चाहे सार्वजनिक हो या घर या ऑफिस ) कोई बात तर्क-वितर्क से बढ़ कर बहस और फिर झगडे का रूप लेने वाली हो तो वहां " ॐ शांति " का जाप कर लेना चाहिए। इसका ग्यारह से इक्कीस बार जाप ही पर्याप्त है। जिन घरों में गृह -कलह की स्थिति बनी रहती है ,वहां पर कोई भी घर का सदस्य एक माला ( एक सौ आठ बार ) का जाप अवश्य कर ले।

खज़ाना चाहिए तो गुप्त दान कीजिये 
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कहा जाता है अगर खज़ाना चाहिए तो गुप्त दान करना चाहिए। इसके लिए एक मिटटी का गुल्लक चाहिए होता है। इस गुल्लक में जब भी घर के किसी भी सदस्य का जन्म-दिन हो या जब घर में व्रत - अनुष्ठान हो तो कुछ धन राशि अपनी इच्छा के अनुसार इसमें डालते रहिये। और एक साल के बाद किसी भी जरूरत-मंद को दे दीजिये। और फिर एक नया गुल्लक ले आइये। जब हम किसी जरूरत-मंद को ये गुल्लक देतें है उसके चेहरे की ख़ुशी किसी खजाने से कम तो ना होगी। और एक साथ हम ,कई बार किसी की सहायता कर भी नहीं सकते।हो सकता उसका आशीर्वाद एक दिन सचमुच ही हमें खजाना दिलवा ही दें।

कुंडली ना हो तो भी ग्रहों को अनुकूल किया जा सकता है
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अक्सर इंसान बहुत सी परेशानी से  जूझता रहता है और सोचता है के काश उसके पास जन्म-कुंडली हो तो किसी से पूछ लेता ( यह भी एक कटु -सत्य है एक हारा हुआ इंसान ही ज्योतिष के पास ही जाता है ,नहीं तो वो खुद ही चाँद-तारे अपनी झोली में लिए घूमता है ) ....
मेरा मानना है अगर इन्सान अपने आचार व्यवहार सही रखे तो ग्रह  अपने आप ही अनुकूल हो जाते है।
1)   माता-पिता की सेवा ( सूर्य-चन्द्र)
2)   गुरु और वृद्ध जानो के प्रति सेवा और आदर भाव ( वृहस्पति)
3)   देश -भक्ति की भावना ( शनि )
4) मजबूर और अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के प्रति स्नेह भाव ( शनि )
5) अपने रक्त -सम्बन्धियों ,बहन-भाई आदि के साथ स्नेह और कर्तव्य भाव ( मंगल)
6) नारी जाति के प्रति सम्मान और श्रद्धा भाव ( शुक्र)
7) मधुर और अच्छी भाषा का प्रयोग ( बुध)
8) इस धरा के समस्त प्राणी -मात्र के प्रति दया भाव ( राहू-केतु)
उपरोक्त बातें अगर कोई भी इंसान अपने जीवन में उतार लेता  है तो ...ना ही कभी कोई दुःख पास आएगा और ना ही किसी ज्योतिष के पास जाने की जरुरत ही पड़ेगी ....

ॐ शांति ....
उपासना सियाग

Friday, August 24, 2012

वृहस्पति ग्रह और महिलाये

वृहस्पति  एक शुभ और सतोगुणी ग्रह है। क्यूँ कि  यह आकर में सबसे बड़ा है , अन्य ग्रहों से , इसलिए इसे गुरु की संज्ञा भी दी गयी है और वृहस्पति देवताओं के गुरु भी थे।
वृहस्पति बुद्धि ,विद्वता ,ज्ञान ,सदगुणों ,सत्यता ,सच्चरित्रता ,नैतिकता ,श्रद्धा ,समृद्धि ,सम्मान .दया एवं न्याय का नैसर्गिक कारक होता है।
किसी भी स्त्री के लिए  यह पति ,दाम्पत्य ,पुत्र और घर -गृहस्थी का कारक होता है।
अशुभ  ग्रहों के साथ या दूषित वृहस्पति स्त्री को स्वार्थी ,  लोभी और क्रूर विचार धारा  की बना देता है।दाम्पत्य-जीवन भी दुखी होता है और पुत्र-संतान की भी कमी होती है। पेट और आँतों से सम्बन्धित रोग भी पीड़ा दे सकते है।
जन्म- कुंडली में शुभ वृहस्पति किसी भी स्त्री को धार्मिक ,न्याय प्रिय और ज्ञान वान  पति -प्रिय और उत्तम संतान वती बनाता  है। स्त्री विद्वान होने के साथ -साथ  बेहद विनम्र भी होती है।
मैंने बहुत बार यह भी देखा है, यह कुंडली में शुभ होते हुए भी उग्र रूप धारण कर लेता है तो स्त्री में विनम्रता की जगह अहंकार भर जाता है। वह अपने सामने ,किसी और को तुच्छ समझती है क्यूँ की वृहस्पति के कारन ज्ञान की सीमा ही नहीं होती ,वह सिर्फ अपनी ही बात पर विश्वास करती है।

 अपने इसी व्यवहार के कारण वह घर और आस-पास के वातावरण से कटने  भी लग जाती है और धीरे- धीरे अवसाद की और घिरने लग जाती है क्यूँ की उसे खुद ही मालूम नहीं होता की उसके साथ ऐसा क्यूँ हो रहा है वह तो आपकी बात ही तो रख रही होती है।
 और यही अहंकार उसमे  में मोटापे का कारक  भी बन जाता है।  वैसे तो अन्य  ग्रहों के कारण  भी मोटापा आता है पर वृहस्पति जन्य मोटापा अलग से पहचान आता है यह शरीर में थुल थूला पन  अधिक लाता है।क्यूँ की वृहस्पति शरीर में मेद  कारक भी है तो मोटापा आना स्वाभाविक ही है।
अगर ऐसा किसी स्त्री के साथ हो तो  वह सबसे पहले अपनी जन्म -कुंडली का किसी अच्छे  ज्योतिषी से विश्लेष्ण करवा लें।
कमजोर वृहस्पति हो तो पुखराज रत्न धारण किया जा सकता है पर किसी ज्योतिषी की राय ले कर ही। गुरुवार का व्रत रखा जा सकता है। सोने का धारण,पीले रंग का धारण औरपीले भोजन  सेवन किया जा सकता है। एक चपाती पर एक चुटकी हल्दी लगाकर खाने से भी वृहस्पति अनुकूल हो सकता है।
उग्र वृहस्पति को शांत करने   के  लिए वृहस्पति वार का व्रत करना , पीले रंग और पीले रंग के भोजन से परहेज करना चाहिए बल्कि उसका दान करना चाहिए ,केले के वृक्ष की पूजा करनी चाहिए और विष्णु -भगवान् को केले अर्पण करना चाहिए। और छोटे बच्चों ,मंदिर में केले का दान और गाय को केला खिलाना चाहिए।
अगर दाम्पत्य जीवन कष्मय हो तो हर वृहस्पति वार को एक चपाती पर आटे  की लोई में थोड़ी सी हल्दी ,देशी घी और चने की दाल ( सभी एक चुटकी मात्र ही ) रख कर गाय को खिलाये।
कई बार पति-पत्नी अगल -अलग जगह नौकरी करते हैं और चाह  कर भी एक जगह नहीं रह पाते तो पति -पत्नी दोनों को ही गुरुवार को चपाती पर गुड की डली  रख कर गाय को खिलाना चाहिय।
और सबसे बड़ी बात यह के झूठ  से जितना परहेज किया जाय ,बुजुर्गों और अपने गुरु ,शिक्षकों के प्रति जितना  सम्मान किया जायेगा उतना ही वृहस्पति अनुकूल होता जायेगा।
ॐ शांति ......

Thursday, August 16, 2012

महिलाएं और बुध ग्रह

बुध ग्रह  एक शुभ और रजोगुणी प्रवृत्ति का है।यह किसी भी स्त्री में बुद्धि ,निपुणता ,वाणी .वाक्शक्ति ,व्यापार ,विद्या में बुद्धि का उपयोग तथा मातुल पक्ष का नैसर्गिक करक है। यह द्विस्वभाव ,अस्थिर और नपुंसक ग्रह होने के साथ - साथ शुभ होते हुए भी जिस ग्रह  के साथ स्थित होता है ,उसी प्रकार के फल देने लगता है। अगर शुभ ग्रह के साथ हो तो शुभ ,अशुभ ग्रह  के अशुभ प्रभाव देता है।
 अगर यह पाप ग्रहों के  दुष्प्रभाव में हो तो स्त्री कटु भाषी , अपनी बुद्धि से काम न लेने वाली यानि दूसरों की बातों में आने वाली या हम कह सकते हैं के कानो की कच्ची ...!,  जो घटना घटित भी ना हुई उसके लिए पहले से ही चिंता करने वाली और चर्मरोगों से ग्रसित हो जाती है।
क्यूँ की बुध बुद्धि का परिचायक  भी है अगर यह दूषित चंद्रमा के प्रभाव में आ जाता है तो स्त्री को आत्मघाती कदम की तरफ भी ले जा सकता है।
यहाँ मैं यह स्पष्ट कर देना चाहती  हूँ ,यहाँ  मेरा किसी भी महिला पर दोषारोपण करने का प्रयास नहीं है बल्कि मैंने बहुत सी महिलाओं में यह प्रवृत्ति देखी और उनको घुटते देखा है। वे कहती है कि  उनके मन में कुछ नहीं होता फिर भी वो बोले बिना नहीं रहती और फिर बोलते ही विवाद हो जाता है। तो यहाँ दूषित बुध का ही परिणाम होता है।
यह सूर्य के साथ हो कर भी अस्त नहीं होता। और बुध -आदित्य योग का निर्माण करता है।
जिस किसी भी स्त्री का बुध शुभ प्रभाव में होता है वे अपनी वाणी के द्वारा जीवन की सभी उच्चाईयों को छूती है ,अत्यंत बुद्धिमान ,विद्वान् और चतुर और एक अच्छी  सलाहकार साबित होती है।व्यापार में भी अग्रणी तथा कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सम्स्याओं का हल निकल लेती है।
यह एक सामान्य विश्लेष्ण है ,बुध ग्रह  के  शुभ- अशुभ प्रभाव का। जन्म-कुंडली के अलग- अलग भावों और अलग - अलग ग्रहों के साथ होने पर इसका प्रभाव कम या ज्यादा भी हो सकता है। अगर जन्म कुंडली है तो उसका एक अच्छे  ज्योतिष से विश्लेष्ण करवा कर उपाय करवा लेना चाहिए। अगर जरुरी हो तो 'पन्ना' रत्न  छोटी वाली ऊँगली में पहना जा सकता है। गणेश जी और दुर्गा माँ की आराधना करनी चाहिए।
हरे मूंग ( साबुत ), हरी  पत्तेदार सब्जी  का सेवन और दान ,हरे वस्त्र को धारण और दान देना भी उपुयक्त रहेगा। तांबे के गिलास में जल पीना चाहिए। अगर कुंडली ना हो और मानसिक अवसाद ज्यादा रहता हो तो सफ़ेद और हरे रंग के धागे को आपस में मिला कर अपनी कलाई में बाँध लेना चाहिए।
ॐ शांति ....


Wednesday, April 11, 2012

महिलायें और मंगल ग्रह


ग्रहों का सेनापति मंगल ,अग्नितत्व प्रधान तेजस ग्रह है  .इसका रंग लाल  और ये रक्त -संबंधो का प्रतिनिधित्व करता है .जिस किसी भी स्त्री की जन्म कुंडली में मंगल शुभ और मजबूत स्थिति में होता है उसे वह प्रबल राज योग प्रदान करता है .शुभ मंगल से  स्त्री अनुशासित , न्यायप्रिय ,समाज  में प्रिय और सम्मानित होती है .
जब मंगल ग्रह का पापी और क्रूर ग्रहों का साथ हो जाता है तो स्त्री को मान -मर्यादा भूलने वाली ,क्रूर और ह्रदय हीन भी बना देता है .
क्यूँ कि मंगल रक्त और स्वभाव में उत्तेजना ,उग्रता और आक्रमकता लता है इसीलिए जन्म -कुंडली में  विवाह से संबंधित भावों --जैसे द्वादश ,लग्न ,द्वितीय ,चतुर्थ ,सप्तम व अष्टम भाव में मंगल कि स्थिति को विवाह और दांपत्य जीवन के लिए अशुभ माना जाता है  .ऐसी कन्या मांगलिक कहलाती है . मेरे विचार में मांगलिक होना कोई भयानक बात नहीं है क्यूँ की अच्छे औरशुभ मंगल से कोई भी स्त्री की सोच ऊँची और  वह उच्च पद तक पहुँचती  है और जहाँ तक विवाह का सवाल है वह जन्म कुंडली मिला कर ही करना चाहिए .
लेकिन जिन स्त्रियों  की जन्म कुंडली में मंगल कमजोर स्थिति में हो तो वह आलसी और बुझदिल होती है थोड़ी सी डरपोक  भी होती है .
मन ही मन सोचती है पर प्रकट रूप से कह नहीं पाती और मानसिक अवसाद में घिरती चली जाती है ,कमजोर मंगल वाली स्त्रियाँ हाथ में लाल रंग का धागा बांध कर रखे और भोजन करने के बाद थोडा सा गुड जरुर खा लें , ताम्बे के गिलास में पानी पियें और अनामिका में ताम्बे का छल्ला पहन ले और   एक अच्छे ज्योतिष को दिखा कर उसकी सलाह पर अगर जरुरी हो तो मूंगा धारण करें .
जिन स्त्रियों की जन्म कुंडली में मंगल उग्र स्थिति में होता है उनको लाल रंग कम धारण करना चाहिए और मसूर की दाल का दान करना चाहिए ...रक्त -सम्बन्धियों का सम्मान करना चाहिए जैसे बुआ ,मौसी बहन ,भाई और अगर शादी शुदा है तो पति के रक्त सम्बन्धियों का भी सम्मान करें .
हनुमान जी की शरण में रहना कैसे भी मंगल दोष को शांत रखता है
एक अच्छे ज्योतिष को कुंडली दिखा कर ही कोई भी उपाय करना चाहिए ..

Friday, March 16, 2012

काल सर्प योग

काल सर्प योग का जिक्र प्राचीन वैदिक ज्योतिष में नहीं आया है ,इसकी खोज तकरीबन सौ वर्ष पहले की गयी और पाया गया कि जो ग्रह राहू और केतू के घेरे में आते हों और जातक के कष्टों का कारण बनते है ..........उसे काल सर्प योग का नाम दिया गया .
राहु और केतु छाया ग्रह हैं जो सदैव एक दूसरे से सातवें भाव में होते हैं.जब सभी ग्रह क्रमवार से इन दोनों ग्रहों के बीच आ जाते हैं तब यह योग बनता है,जिससे बाकी ग्रह अपना पूर्ण रूप से फल नहीं दे पाते और जातक भाग्य के हाथों का खिलौना बन जाता है ,उसे ये निम्न प्रकार के कष्ट घेरे रहते है ----
( 1 ).जातक को अपनी मेहनत का पूरा फल नहीं मिल पाता.
( 2 ).विवाह में देरी और वैवाहिक जीवन में तनाव 
( 3 ).संतान में देरी और उससे सुख कि प्राप्ति नहीं होती .
( 4 ).शारीरिक और मानसिक दुर्बलता 
( 5 ).अकाल मृत्यु या मृत्यु तुल्य कष्ट .
वैसे तो ये दो सौ अठासी प्रकार के होते है ,पर मुख्य रूप से बारह प्रकार के है ----
१- अनंत 
२-कुलिक 
३-वासुकी 
४-शंख पाल 
5-पदम्
6-महापदम
7-तक्षक
8-कर्कोटक
9-शंखनाद
१० -पातकी
११ -विषाक्त
१२ -शेषनाग

लेकिन आज -कल अधिकतर ज्योतिषी कालसर्प का डर -भय दिखला कर जनता को भयभीत कर के 
काफी मात्र में धन का शोषण करते है ,जबकि उनको इसके बारे में ज्यादा ज्ञान नहीं होता क्यूँ कि इस योग में----१) कारक एवं अकारक ग्रह के साथ -साथ योग 
२) केमद्रुम संकट योग के साथ सम्मिलित योग ,
३)चंद्रमा से केन्द्रस्थ मुख योग ,
४)बुध से केन्द्रस्थ शनि योग
५)शनि ,सूर्य युति
६) शनि -मंगल युति
७)राहू -केतू में से किसी एक के साथ युति
८ )सूर्य ,मंगल ,शनि में से एक या दो या तीनो की एक साथ युति या अलग से अलग दृष्टि का प्रभाव जातक की कुंडली पर पड़ता है .........

इस योग के कारण जातक अपने प्रियजनों से शत्रुवत व्यवहार कर सकता है , परन्तु कोई भी इंसान जिसकी कुंडली में यह योग हो तो वह विलक्षण बुद्धि युक्त भी होता है और अपने दृढ -निश्चय से अपने कष्टों से उबर सकता है ........
इस के प्रभाव को कम करके सरल उपाय है ,जातक शिव की आराधना करे और सदाचारी रहे .
रंग धातु या ताम्बे के सर्प बनवा कर शिव -मंदिर में अर्पित करें और रुद्राभिषेक कर ॐ नमः शिवाय का जप अवश्य करें .
महामृत्युंजय मन्त्र का जाप भी करें ,यह स्वयम ही करें किसी और से ना करवाएं .........
 

Wednesday, February 29, 2012

चंद्रमा और महिलायें

  किसी भी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है .और स्त्री की कुंडली में इसका महत्व और भी अधिक है .
चन्द्र राशि से स्त्री का स्वभाव ,प्रकृति ,गुण -अवगुण आदि निर्धारित होते है .
चंद्रमा माता ,मन ,मस्तिष्क ,बुद्धिमता ,स्वभाव ,जननेन्द्रियों ,प्रजनन सम्बन्धी रोगों,गर्भाशय  अंडाशय ,मूत्र -संस्थान छाती और स्तन कारक है .इसके साथ ही स्त्री के मासिक -धर्म ,गर्भाधान एवं प्रजनन आदि महत्वपूर्ण क्षेत्र भी इसके अधिकार क्षेत्र में आते है

 चंद्रमा मन का कारक है ,इसका निर्बल और दूषित होना मन एवं मति को भ्रमित कर किसी भी इंसान को पागल तक बना सकता है .
कुंडली में चंद्रमा की कैसी स्थिति होगी यह किसी भी महिला के आचार -व्यवहार से जाना जा सकता है .
अच्छे चंद्रमा की स्थिति में कोई भी महिला खुश -मिजाज़ होती है ,चेहरे पर चंद्रमा की तरह ही उजाला होता है ,यहाँ गोरे रंग की बात नहीं की गयी है  क्यूँ की यहाँ पर चंद्रमा की विभिन्न ग्रहों के साथ युति का अलग -अलग प्रभाव हो सकता है .
कुंडली का अच्छा चंद्रमा किसी भी महिला को सुहृदय ,कल्पनाशील और एक सटीक विचार धारा युक्त करता है .


अच्छा चन्द्र महिला को धार्मिक और जनसेवी भी बनाता है .........
लेकिन किसी महिला की कुंडली मे यही चन्द्र नीच का हो जाये या किसी पापी ग्रह के साथ या अमावस्या का जन्म को या फिर क्षीण हो तो महिला सदैव भ्रमित ही रहेगी .
हर पल एक भय सा सताता रहेगा या उसको लगता रहेगा कोई उसका पीछा कर रहा है या कोई भूत -प्रेत का साया उसको परेशान कर रहा है .
कमजोर  या नीच का चन्द्र किसी भी महिला को भीड़ भरे स्थानों से दूर रहने को उकसाएगा और एकांतवासी कर देता है धीरे -धीरे ..........

महिला को  एक चिंता सी सताती रहती है जैसे कोई अनहोनी होने वाली है ,बात -बात पर रोना या हिस्टीरिया जैसी बीमारी से भी ग्रसित हो सकती है, बहुत चुप रहने लगती या बहुत ज्यादा बोलना शुरू कर देती है ,ऐसे में तो ना केवल घर -परिवार और आस पास का माहौल ख़राब होता ही है निस्संदेह रूप से क्यूँ कि वह हर किसी को संदेह कि नज़रों से देखती है ,
बार -बार हाथ धोना ,अपने बिस्तर पर किसी को हाथ नहीं लगाने  देना और कई -कई देर तक नहाना भी कमजोर चन्द्र कि निशानी है .
ऐसे में जन्म -कुंडली का अच्छे से विश्लेष्ण करवाकर उपाय करवाना चाहिए .........
अगर किसी महिला के पास कुंडली नहीं हो तो ये सामान्य उपाय किये जा सकते है ,जैसे शिव आराधना ,अच्छा मधुर संगीत सुने,कमरे में अँधेरा ना रखे ,हलके रंगों का प्रयोग करें .
पानी में केवड़े का एसेंस डाल कर पियें .सोमवार को  (हर एक )एक गिलास ढूध और एक मुट्ठी चावल का दान मंदिर में दे ,और घर में बड़ी उम्र की महिलाओं के रोज़ चरण -स्पर्श करते हुए उनका आशीर्वाद अवश्य लें ...............
अगर हो सके चांदी के गिलास में पानी और ढूध पियें, छोटी वाली ऊँगली में चांदी का गोल छल्ला पहने (पर यह तब करना है जब कुंडली दिखाई गयी हो और उसमे बताया हो ).
छोटे बच्चों के साथ बैठने से भी चंदमा अनुकूल होता है
और सबसे बड़ी बात है दृढ -निश्चय .....यह ही किसी इंसान को भ्रम कि स्थिति से बाहर निकाल  सकती है ..........

Sunday, February 26, 2012

सूर्य ग्रह और महिलाएं ..............

सूर्य एक उष्ण और सतोगुणी ग्रह है ,यह आत्मा और पिता का करक हो कर राज योग भी देता है ..........
 अगर जन्म कुंडली में यह अच्छी स्थिति में हो तो इंसान को स्फूर्तिवान ,प्रभावशाली व्यक्तित्व , महत्वाकांक्षी और उदार बनता है .
परन्तु निर्बल सूर्य या दूषित होने पर इंसान चिडचिडा ,क्रोधी ,घमंडी ,आक्रामक और अविश्वसनीय बना देता है .
मैं यहाँ सिर्फ महिलाओं की ही बात करुँगी कि सूर्य की अच्छी या बुरी स्थिति महिलाओं के जीवन में क्या प्रभाव डालती है .
अगर किसी महिला कि कुंडली में सूर्य अच्छा हो तो वह हमेशा अग्रणी ही रहती है और निष्पक्ष  न्याय में विश्वास करती है चाहे वो शिक्षित हो या नहीं पर अपनी बुद्धिमता का परिचय देती है .......
परन्तु जब यही सूर्य उसकी कुंडली में नीच का हो या दूषित हो जाये तो महिला अपने दिल पर एक बोझ सा लिए फिरती है अन्दर से कभी भी खुश नहीं रहती और आस -पास का माहौल भी तनाव पूर्ण बनाये रखती है ,जो घटना अभी घटी ही ना हो उसके लिए पहले ही परेशान हो कर दूसरों को भी परेशान किये रहती है ,
बात -बात पर शिकायतें ,उलाहने उसकी जुबान पर तो रहते ही है ,धीरे -धीरे दिल पर बोझ लिए वह एक दिन रक्त चाप की मरीज बन जाती है और ना केवल वह बल्कि  उसके साथ रहने वाले भी इस बीमारी के शिकार हो जाते है .
दूषित सूर्य वाली महिलायें अपनी ही मर्ज़ी से दुनिया को चलाने में यकीन रखती है सिर्फ  अपने नजरिये को ही सही मानती है दूसरा चाहे कितना ही सही हो उसे विश्वास नहीं होगा ....
.
यह मेरा एक सामान्य विश्लेष्ण है ,अलग अलग जन्म कुंडली में यह स्थिति भिन्न हो सकती .सूर्य का दूसरे ग्रहों के साथ होने का भी प्रभाव पड़ सकता है .........
पर सूर्य का आत्मा से सीधा सम्बन्ध होने के कारण यह अगर दूषित या नीच का हो तो दिल डूबा -डूबा सा रहता है जिस कारण  चेहरा निस्तेज सा होने लगता है  .........
अगर यह सब किसी महिला में लक्षण हो तो उसे अपनी जन्म कुंडली को एक अच्छे ज्योतिषी को दिखाना चाहिए क्यूँ की महिला ही तो परिवार की धुरी होती  है और वही संतुष्ट नहीं हो तो परिवार में शांति कहाँ से होगी .............!
सूर्य को जल देना ,सुबह उगते हुए सूर्य को कम से कम पंद्रह -मिनिट देखते हुए गायत्री मन्त्र का जाप ,आदित्य -ह्रदय का पाठ और अधिक परेशानी हो तो रविवार कर व्रत भी किया जा सकता है बिना नमक खा कर .......और कोई व्रत ना रख सके वह उस दिन नमक ना खाए या सूरज ढलने के बाद नमक ना खाएं .
 संतरी रंग (उगते हुए सूरज )का प्रयोग अधिक करें .

Friday, February 3, 2012

मेरा जीवन और नौ ग्रह


मेरा ये जीवन नौ ग्रहों से 
है घिरा हुआ 
चारों तरफ ,इर्द -गिर्द ,
मैंने इनको माला के मोतियों 
की तरह संतुलन के साथ 
बैठा रखा है ...!

सूरज को  दिल में तो 
चन्द्र को मन में बसा रखा है ,
मंदिर जाती हूँ तो गुरु को 
साथ ले जाती हूँ 
 नयन  जब कभी
 मय-छलकाने लगते है 
तो शुक्र को कान पकड 
कर धमका भी देती हूँ ...

शनि -मंगल ने मेरा साथ 
कभी न छोड़ा है 
बुध की कोई परवाह नहीं ,
इसे तो मैंने दांतों से पकड़ 
रखा है
राहू और केतु इनसे तो 
मैं नाराज ही रहती हूँ  ,
ये मुझसे ही डरते है ...
ये सारे ग्रह मेरा जीवन 
संचालित करते है और
मैं इनको .........!!

Tuesday, January 31, 2012

नशा



जब - जब
मन रुपी चँद्रमां को
राहु ग्रसित करता है,
कमजोर शुक्र और
बुद्धि दायक बुध
अस्त हो जाता है ...

नीच का मंगल
 मानव के मन
का साहस -हिम्मत
कमजोर करता है ...

 कमजोर ,
भयभीत ,कायर
मन
नशे की तरफ चल
पङता है...!

राहु ,शनि के घर
कुंडली मार बैठ जाता है
तो
लग जाता है
शनि भी हारने ...

इंसान की
बुद्धि , मन को
नशे की गर्त मेँ खीँच
लेता है
ग्रहों का यह
हेर - फेर ।

तो क्यूँ न
करें  मन को ( चंद्रमा)
मज़बूत
नशे से रहा जाए परे।

Monday, January 30, 2012

ज्योतिष और हम

  
     ज्योतिष क्या है ये हम सब जानते है।  हम लोगों में से दो तरह ले लोग होते है एक  जो ज्योतिष को बिलकुल भी नहीं मानते और दूसरे जो इसको बहुत मानते हैं। हर काम ग्रह -नक्षत्रों को देख -पूछ कर ही जीवन बिताते है। 
    मैं इन दोनों ही बातों को गलत मानती हूँ कि ज्योतिष कोई पाखंड नहीं है जो माना ना जाये और कोई अंधविश्वास भी नहीं है कि हर बात में ज्योतिष को लाया जाये। बल्कि मैं तो यह कहूँगी अगर हम अपनी दिनचर्या ही ऐसी बना ले और अपने रिश्तों को निभाते हुए उनकी मर्यादा को बनाये रखते है तो हमारे सारे ग्रह अपने आप ही संतुलन में आ जाते है। क्यूँ कि सभी ग्रह पृथ्वी पर रहने वाले प्राणियों को किसी न किसी रूप से प्रभावित करते ही है। 
             जैसे सूर्य आत्मा और पिता का कारक है अगर पिता का सम्मान किया जाय तो सूर्य अपने आप ही संतुलित हो कर अच्छा प्रभाव देगा। चंद्रमा माता और मन दोनों का कारक है माता का सम्मान किया जाये तो यह संतुलित हो कर इंसान को अवसाद की स्थिति से हटा कर अच्छी कल्पना शक्ति देगा। मंगल साहस,रक्त और रक्त -सम्बन्धियों का कारक है। अगर कोई भी व्यक्ति अपने पारिवारिक रिश्तों से अच्छी तरह निर्वाह करता है तो मंगल ग्रह अपने आप ही अच्छा फल देने लगता है। बुध वाणी,काव्य -शक्ति ,ज्योतिष और जासूसी  और त्वचा -सम्बन्धी रोगों का कारक है अगर कोई व्यक्ति अपनी वाणी  का सही प्रयोग करता है तो बुध ग्रह भी संतुलित हो जायगा। 
    वृहस्पति भाग्य ,पुत्रकारक राज्य ,धन और आयु का कारक होता है शरीर में मोटापे और अहंकार का करक भी होता है .अगर कोई व्यक्ति अपने गुरु का सम्मान,धर्म के प्रति रूचि  और बुजुर्गों  का सम्मान  करता है  तो यह संतुलित हो कर अच्छा फल प्रदान करता है। 
     शुक्र ग्रह नेत्रों और दाम्पत्य -जीवन,ऐश्वर्य  -पूर्ण  जीवन   और कन्या -सन्तति का कारक है। अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन साथी के प्रति समर्पित हो कर रहे , स्त्री जाति  का आदर करे तो यह ग्रह स्वयं ही संतुलित हो जाता है। शनि ग्रह वात, आयु , नौकर,हड्डियों (कमर ,सर्वाइकल आदि ) के रोगों  आदि का कारक है।  अगर कोई व्यक्ति अपने इष्ट और कुल देवता के प्रति निष्ठा अपने देश के प्रति निष्ठा और अपने सेवकों के प्रति दया भाव रखता है तो यह ग्रह बहुत अच्छा फल देगा। 
   राहू-केतू दोनों ही छाया ग्रह है. राहू  अँधेरे और भ्रम,गुप्त रोग और शत्रुओं  का कारक है तो केतू दाद ,बुद्धि-भ्रम ,विद्या -बाधा  आदि का कारक है यहाँ भी अगर कोई व्यक्ति किसी भी भ्रम जाल में ना पड़ कर ,सही वस्तु -स्थिति को समझ कर दृढ -निश्चयी हो कर रहे तो ये ग्रह संतुलित हो कर अच्छा ही फल देते हैं। 

      ज्योतिष एक ऐसा विज्ञान है जिसमे हम सब को पहले से होने वाली घटना का पता चल सकता है।  जब किसी को  किसी समस्या का हल नहीं मिलता तो वह ज्योतिष की  राह पकड़ते है या ये कहूंगी कि एक हारा हुआ इंसान ही ये सोचता हुआ ज्योतिष के पास जाता है कि शायद यहाँ कोई हल मिल जाए। जिस प्रकार मेडिकल जांच के लिए लोग जागरूक होते हैं वैसे ही हमें ज्योतिष के लिए भी होना चाहिए. और लोगों को भ्रम में ना पड़ कर एक अच्छे ज्योतिषी की ही सलाह लेनी चाहिए।