tag:blogger.com,1999:blog-26428596028891446722024-03-16T11:52:59.885-07:00ज्योतिष रत्न+nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.comBlogger31125tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-50830949832274331072018-08-29T09:44:00.000-07:002021-04-18T06:22:06.714-07:00केमद्रुम योग <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> केमद्रुम योग</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">जन्म कुंडली केमद्रुम योग तब बनता है जब चन्द्रमा से बाहरवें और दूसरे स्थान ( भाव/घर ) में कोई ग्रह ना हो। यह योग किसी भी मनुष्य को प्रगति के पथ पर जाने को रोकने वाला होता है। जीवन में हर जगह बाधक होता है। बार-बार प्रयास करने पर भी सफलता नहीं मिलती है। कई बार निराशा, व्यग्रता, तथा असफलता व्यक्ति को संतप्त कर देती है।<br>
जब चन्द्रमा से गुरु द्विद्वादश या षडाष्टक हो या चन्द्रमा अशुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तथा शुभ ग्रहों और पूर्व जन्म का पुण्य फल ना हो तो इस योग की अशुभता में प्रचुर वृद्धि होती है।<br>
विद्वानों के शोधानुसार यदि चन्द्रमा किसी शुभ ग्रह से युक्त हो तो अशुभ प्रभाव में कमी तो आ सकती है लेकिन समाप्त नहीं होगा। किसी भी कुंडली में चाहे कितने भी राजयोग क्यों ना बनते हो ; केमद्रुम योग के विद्यमान होने के कारन शुभ योगों में कमी आ सकती है।<br>
यह योग जीवन में दुःख के अनेक कारण उत्पन्न करता है। प्रयास निष्फल होते हैं। संतान,पत्नी और सम्बन्धी भी व्यथा के कारन बनते हैं। निरर्थक यात्रा,धन का अपव्यय प्रायः उदास और निराश कर देती है। सभी प्रकार के सुख होते हुए भी मनुष्य स्वयं को उदासीन करता जाता है। धन कमाने और संचय करने में भ्रम की स्थिति रह कर अक्सर विपरीत चाल चल पड़ता है।<br>
विभिन्न ज्योतिष शास्त्रों और विद्वानोंने अपने -अपने ढंग से इसकी व्याख्या की है और इसे जन्म कुंडली में बाधक योग स्वीकार किया है।<br>
ज्योतिषतत्वम के अनुसार चन्द्रमा के दूसरे और बाहरवें स्थान में सूर्य के अतिरिक्त को ग्रह ना हो तो , केमद्रुम नामक दरिद्र योग निर्मित होता है। लग्न या सप्तम में चन्द्रमा हो और उसे वृहस्पति ना देखता हो तो :--<br>
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१ ). सभी ग्रह अल्प रेखा से युक्त हो और बल हीन हों।<br>
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२). यदि शुक्र और शनि शत्रु राशि में हों , पाप राशि या नीच राशि में हो ; दोनों परस्पर देखते हो या एक साथ स्थित हो।<br>
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३ ). चन्द्रमा पापग्रह से युक्त हो कर पापराशि तथा पाप नवांश में हो।<br>
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४ ). रात्रि का जन्म हो और निर्बल चन्द्रमा दशमेश से दृष्ट हो।<br>
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५ ). नीच का चन्द्रमा यदि पापग्रह से युक्त होकर नवमेश से दृष्ट हो।<br>
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६ ). रात्रि का जन्म हो और क्षीण चन्द्रमा यदि नीचराशिगत ग्रह से युक्त हो तो उक्त केमद्रुम योगों से उत्पन्न राजवंश का जातक भी दरिद्रता प्राप्त होता है।<br>
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केमद्रुम भङ्ग योग :--<br>
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केमद्रुम योग कुछ विशेष स्तिथियों में बेअसर हो जाता है। उसकी अशुभता का असर नहीं होता और इसका बाधक प्रभाव जीवन पर नहीं पड़ता है। ज्योतिषतत्वम के अनुसार ; केंद्र में चन्द्रमा और शुक्र हों और वह गुरु से दृष्ट हो तो :--<br>
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१) . चन्द्रमा यदि ग्रह से युक्त हो तो केमद्रुम दरिद्र योग भङ्ग हो जाता है ,<br>
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२). लग्न में पूर्ण चन्द्रमा हो और वह शुभ ग्रह से युक्त हो।<br>
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३). दशम भाव में उच्च का चन्द्रमा हो और वह गुरु से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग भङ्ग हो जाता है।<br>
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केमद्रुम योग का शमन :--<br>
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शिव उपासना या शिव जी की शरण ले कर सम्पूर्ण समर्पण कर देना ही इसका एक उपाय है। चन्द्रमा के तांत्रिक मन्त्र ' " ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः " का जप करना चाहिए।<br>
सोलह रत्ती ताम्बा , बारह रत्ती चाँदी एवं दस रत्ती सोना , इन तीन धातुओं की अंगूठी पुष्य-नक्षत्र में बना कर धारण की जाये तो कैसी भी दरिद्रता हो , धीरे-धीरे नष्ट हो जाती है।<br>
भगवन विष्णु की उपासना करें।<br>
दस या बीस रत्ती से अधिक का मोती अनामिका में धारण करें। मोती धारण करने से पूर्व अपनी कुंडली अच्छे से विश्लेषण करवा लें। क्यूंकि अगर चन्द्रमा 6,8,12 भावों में हो तो मोती धारण नहीं किया जा सकता है।<br>
चन्द्रमा के दान हेतु मोती,कपूर, गाय का दूध , दही , सफ़ेद बैल या गाय , चीनी ,चाँदी , खीर , बताशे , रेवड़ी , चावल , सफ़ेद कमल , सफेद वस्त्र, बाँस का पात्र ,धन आदि का दान सोमवार या पूर्णमासी की शाम को करना चाहिए।<br>
सोमवार का व्रत करना चाहिए। पूर्णमासिका व्रत करना भी उपयुक्त रहेगा। जिस सोमवार या चित्रा नक्षत्र को पूर्णिमा आती है ; उस दिन से व्रत का संकल्प ले कर 48 पूर्णिमा यानि चार साल व्रत करना चाहिए। सारा दिन निराहार रह कर शाम को पूजन कर खीर का भोग लगा कर , चन्द्रमा को अर्ध्य दे कर भोजन ग्रहण करना चाहिए। भोजन में सामान्य नमक का प्रयोग किया जा सकता है।<br>
शिव जी का पूजन - दर्शन करना चाहिए। शिवलिंग का दूध से अभिषेक करना चाहिए। रुद्राभिषेक करवाने से भी इस योग के प्रभाव में कमी आ सकती है।<br> <br>
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उपासना सियाग<br>
8264901089 </div>
nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-80925002507288897872017-02-01T07:32:00.001-08:002017-02-01T07:32:12.560-08:00जब मन्त्र जप करना हो<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हम अपने -अपने ईष्ट की पूजा तो अवश्य ही करते हैं। कभी ग्रह दोष मिटने के लिए पूजा-पाठ करते हैं तो कभी अपने ईष्ट के करीब रहने के लिए भी पूजन करते हैं। पूजन में मन्त्रों का बहुत महत्व है। मन्त्रों का उच्चारण और इनकी ध्वनि से वातावरण में सकारात्मकता उत्पन्न होती है। यही सकारत्मकता ही ग्रहों के दूषित प्रभाव का असर खत्म करती है और जीवन में नवसंचरण करती है।<br />
लेकिन हम में से सभी को तो मन्त्र उच्चारण नहीं आता है। ऐसे में तो पूजा का फल मिलने की बजाय कुफल ही मिलता है। एक कहानी कहीं पढ़ी थी, जिसमें एक व्यक्ति अपनी पत्नी की गम्भीर बीमारी की समस्या ले कर किसी बाबा जी के पास गया। बाबा जी ने एक श्लोक तो दिया साथ में एक सम्पुट भी दिया, जिसके अंत में " मम् भार्याम रक्षितुमम् " था। वह व्यक्ति बेध्यानी में रक्षितुम की जगह भक्षितुम पढता गया और उसकी पत्नी नहीं बच सकी।<br />
कहानी सच्ची थी या नहीं, पता नहीं। लेकिन मंत्रो का गलत उच्चारण तो उल्टा असर तो देता ही है। आज कल टीवी पर विभिन्न ज्योतिषियों के कार्यक्रम आते हैं। जो ज्ञानवर्धन तो करते ही हैं साथ में कुछ उपाय भी बताते हैं। जिनमें कभी -कभी मन्त्र जप भी होते हैं। उन मन्त्रों ज्योतिषी कुछ बोलते हैं और टीवी स्क्रीन पर कई बार शब्दों का हेर -फेर होता है। जिनको ज्ञान है उनका तो ठीक है , लेकिन जिनको नहीं पता वे तो स्क्रीन पर लिखा ही मन्त्र उतार लेते हैं। फिर परिणाम सही कैसे होगा !<br />
इसलिए जब भी मन्त्र जप करना हो तो जानकार से पूछ कर और सही उच्चारण से करें।<br />
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ॐ शांति।<br />
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उपासना सियाग </div>
nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-85040376518076977902016-10-21T07:17:00.000-07:002018-05-16T07:58:11.086-07:00वृहस्पति से प्रभावित बच्चे <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
वृहस्पति से प्रभावित बच्चे<br />
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वृहस्पति बुद्धि,ज्ञान, सम्मान, दया और न्याय का करक ग्रह है। वृहस्पति से प्रभावित बच्चे मेधावी और न्याय प्रिय होते हैं। अच्छा वृहस्पति ज्ञान के साथ -साथ मोटापा भी देता है। जो शरीर को थुल -थुला बना देता है। विशेषकर पेट और बाजू पर चर्बी की अधिकता रहेगी। ज्ञान की अधिकता से जिद्दी और अहंकारी बना देता है। अकेले रहने की प्रवृत्ति भी देता है।<br />
दूषित वृहस्पति बच्चे को पेट के रोग जैसे अपच, गैस आदि से ग्रसित करेगा। बच्चा चिड़चिड़ा भी रहेगा। वृहस्पति को संतुलित करने के लिए बच्चे को चपाती पर थोड़ी से हल्दी डाल कर खिलाना चाहिये। हींग का सेवन भी करवाना चाहिए।<br />
अगर मोटापा है और बच्चा अकेला रह कर खुश हो तो उसे पीले रंग से परहेज करवाना चाहिए।खेल, दौड़ -भाग वाले कार्यों में हिस्सा दिलवाना चाहिए। इससे बच्चे में सक्रियता आएगी और खुश रहेगा। बच्चे को बुजुर्गों के सानिध्य में भी छोड़ना चाहिए। बच्चे गाय की सेवा के लिए भी प्रेरित करें। पीली वस्तुओं का दान करवा दे। गुरुवार को केला खाने को न दें बल्कि गाय को खिलाये या मंदिर में दान दें। मुफ्त में किताबें न लें।<br />
विष्णु भगवान की आराधना और " ॐ नाराणय नमो नमः " मन्त्र का जप विशेष फलदायी रहेगा। ॐ शांति।<br />
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उपासना सियाग </div>
nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-34353765009729003612015-08-04T09:38:00.000-07:002016-07-27T06:38:46.279-07:00 बच्चे और उनके स्वभाव को प्रभावित करते ग्रह <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
बच्चे जैसे रंग बिरंगे फूल , सबका अलग रंग , खुशबू और स्वभाव भी। कोई चंचल , कोई सीधा सा , कोई शांत तो कोई एक पल भी चैन से ना बैठने वाला होता है। यानि कि हर बच्चा अलग होता है। पार्क ,स्कूल या हम अगर हमारे आस पास देखें तो हर बच्चे में अलग -अलग विशेषता पाई जाती है।यह विशेषता ग्रह जनित ही होती है।<br />
एक स्कूल और एक ही कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे चाहे एक जैसी यूनिफार्म पहनते हों या एक जैसे विषय पढ़ रहे हों तो भी उनकी प्रकृति में फर्क होता है।फिर क्यों कोई बच्चा अलग-अलग विषय चुनता है , कोई खेल में अच्छा है तो कोई कला में तो कोई ऑल राउंडर है तो कोई भी विषय में अच्छा नहीं। यह भी ग्रहों का कमाल होता है। यहाँ मैं सिर्फ एक ग्रह और स्वभाव ही बताऊँगी। वैसे ग्रहों की युति और स्थिति से कुछ परिस्तिथियाँ भिन्न हो सकती है , फिर भी हर इंसान किसी एक ग्रह से अधिक प्रभावित तो होता ही है।<br />
सूर्य :--<br />
जिस बच्चे का सूर्य अच्छा होगा वह कक्षा में अग्रणी रहेगा। अपने शिक्षकों का चहेता बनेगा।खुद के सर्वश्रेष्ठ होने का गर्व भी करेगा। शरारत कम करेगा लेकिन मन ही मन उद्ग्विन रहेगा।<br />
कमज़ोर सूर्य वाला बच्चा सदैव चिंतित रहेगा । पढाई में अच्छा होने के बावजूद परीक्षा या प्रतियोगिता के काफी समय पूर्व ही उसकी चिंता में रहेगा बल्कि परीक्षा /प्रतियोगिता के दिन भी बहुत तनाव में रहेगा। पिता के ना रहने पर या पिता से सम्बन्ध अच्छे ना होने पर भी सूर्य कमज़ोर हो सकता है।<br />
अपने स्कूल बैग को समय से पहले ही तैयार रखेगा। उसे अपनी अलमारी /बैग में कोई अवांछित चीज़ सहन नहीं होगी। गीत संगीत सुनने से दूर रहेगा और सुनेगा तो थोड़े धार्मिक संगीत। नज़र का चश्मा भी जल्दी लग सकता है।<br />
अगर किसी बच्चे में ऐसा कोई लक्षण है तो उसे संतरी रंग के सरहाने के कवर और रुमाल दिए जाएँ। ताम्बे के गिलास में पानी पिलाया जाये। अगर दृष्टि दोष अधिक हो तो वजन के बराबर गेहूं का दान किया जाये। बच्चे से गायत्री मंत्र का जाप करवाया जाये। अगर नहीं कर सकता तो सुबह जब स्कूल के लिए तैयार होते समय म्यूज़िक प्लेयर पर गायत्री मंत्र की सीडी चला दी जाये।<br />
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चन्द्रमा :--चन्द्रमा से प्रभावित बच्चा बहुत प्यारा, आकर्षक, भावुक और अति कल्पनाशील होगा। बात -बात पर रूठना, रोना या किसी की भी बात को दिल से लगा कर ना भूलने वाला और बार-बार दोहराने वाला होगा। बहुत जल्द गला खराब होना,जुकाम -नज़ले की शिकायत हो सकती है। चंचल होगा लेकिन शरारती नहीं होगा।<br />
चन्द्रमा के अच्छे होने या ना होने का सम्बन्ध हम उसके, उसकी माँ के साथ कैसा रिश्ता है, देख कर पहचान सकते हैं। अगर जन्म से माँ का साथ छूट जाये तो बच्चे का चन्द्रमा कमजोर हो जाता है। क्यूंकि माँ ही मन को समझ सकती है और चन्द्रमा मन को ही प्रभावित करता है। अगर माँ का साथ जन्म से ही छूट जाये तो बच्चा भावुक होगा।बड़े होने पर अवसाद ग्रस्त हो सकता है। शक/वहम् या फोबिया जैसी समस्याओं से ग्रसित हो सकता है।<br />
लेकिन अगर माँ का साथ है तो भी बच्चे में यह लक्षण मिलते हैं तो माँ को बच्चे के साथ अधिक समय बिताना चाहिए। भावुकता से परे भी एक दुनिया है यह उसे दृढ़ता से समझाए। चांदी के गिलास में पानी और दूध का सेवन करवाए। केवड़े का एसन्स की खुशबु सूंघने को दे और दिन में एक बार कुछ बूंदे पानी में डाल कर भी पिलाएं। सोमवार को मंदिर में एक मुट्ठी चावल और एक गिलास दूध का दान भी करें। शिव चालीसा / स्त्रोत का पाठ, सोमवार का व्रत और महामृत्युञ्जय का पाठ या श्रवण अनुकूल रहेंगे।<br />
मंगल :-- मंगल से प्रभावित बच्चा मज़बूत कद काठी का, अपनी उम्र से बड़ा दिखेगा। कद भी सामान्य से लम्बा, ऊर्जा से भरपूर होगा। पढाई में, खेल में अच्छा होगा। ईमानदार, सत्यवादी होगा और हमेशा न्याय करेगा। पुलिस / सेना या उच्च प्रशासनिक सेवा में पद प्राप्त करता है।<br />
मंगल के दूषित हो जाने पर बच्चा बहन /भाइयों से दिखावे का प्यार रखेगा। ज़िद्दी होगा। शरारती हो सकता है। शरारत भी कैसी ? तोड़/फोड़ वाली या मार /पीट की प्रवृत्ति वाली। सभी जगहों से हर दिन शिकायत मिलती है। बड़ा होने पर झूठ बोलने की प्रवृत्ति भी देखी गई है। नशे और अपराध की तरफ झुकाव भी हो सकता है।<br />
अगर ऐसा है तो सबसे पहले बच्चे के ऊर्जा के स्तर को संतुलित करना चाहिए।अगर छोटा है और स्कूल नहीं जाता है तो उसे छोटी बॉल ला कर दीजिये और उसे दीवार पर मारने को कहें या बॉल को फुटबॉल की तरह खेलने को कहें। लाल रंग से परहेज करें। स्कूल जाता है तो स्कूल में ही खेलों में भाग लेने में प्रेरित करें। ताम्बे के गिलास में पानी दें। ज़िद्द की तरफ अधिक ध्यान ना दे बल्कि जीवन में कुछ पाने के उद्देश्य को ज़िद में बदल दे। हनुमान जी के दर्शन करवाएं। हनुमान चालीसा सुन्दर कांड के पाठ का श्रवण कराएं।<br />
कमजोर मंगल से बच्चा दब्बू प्रवृत्ति का हो जाता है। दुबला/पतला, बुझा सा, ऊर्जा हीन दिखता है। यहाँ झूठ बोलने की प्रवृत्ति भी होगी। सच का सामना नहीं करेगा बल्कि पीठ पीछे वार की प्रवृत्ति रखेगा। मतलब कि दोहरे चेहरे वाला। ऐसे में बच्चे को सच बोलने के लिए प्रवृत्त करें। हाथ में लाल रंग का धागा या कलावा बाँध कर रखें। हनुमान जी की शरण में ले जाएँ। मसूर की दाल खिलाएं। ताम्बे के गिलास में पानी का सेवन भी करवाएं।<br />
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बुध :-- बुध ग्रह बुद्धि, वाणी, चर्म रोग का कारक होता है। बुध से प्रभावित बच्चे वाचाल होते हैं। अगर चंद्रमा का साथ मिल जाये तो अति कल्पनाशील भी हो जाते हैं।<br />
कमज़ोर बुध बच्चे की वाणी और लेखन को प्रभावित करेगा।बच्चा हकलाना,तुतलाना और प्रभावहीन वाणी , चर्म रोग , स्नायु रोग , कमजोर याददाश्त, दांतो के रोग और आलस्य आदि से ग्रसित रहेगा। कटु भाषा का प्रयोग करेगा।<br />
कुंडली का अच्छा बुध बच्चे को बुद्धिमान, वाक्पटु , हाजिरजवाब और हंसमुख बनाएगा।<br />
अगर बच्चा बुध के बुरे प्रभाव में हो तो हरी वस्तुओं का प्रयोग करें। भोजन में भी हरी-पत्ते वाली सब्जी का प्रयोग करें। हरी मूंग दाल का सेवन। हरी चारद बिछा कर सुलाएं। तांबे के गिलास में पानी का सेवन भी करवाएं। गणेश जी और दुर्गा माँ का पूजन-दर्शन करवाएं।<br />
कई बार बुध को केंद्र-अधिपत्य का दोष लग जाता है तो भी बच्चे की वाणी , त्वचा और बुद्धिमत्ता प्रभावित होती है। ऐसे में बच्चा बहुत अधिक वाचाल होकर कटुशब्दों का प्रयोग करेगा। याददाश्त भी प्रभावी होगी। ऐसी स्थिति में बच्चे के हाथों हरी वस्तुओं का दान करवाएं। तांबे के बर्तन में मूंगदाल का दान करवाएं। दुर्गा चालीसा और गणेश चालीसा का पाठ भी उचित रहेगा।<br />
ॐ शांति।<br />
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nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-77896755469051913002015-07-31T23:51:00.000-07:002015-07-31T23:51:16.906-07:00 सावन में शिव पूजा से दूर होगा अवसाद <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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ज्योतिष में मन का कारक ग्रह चन्द्रमा होता है और चन्द्रमा के स्वामी शिव जी है। कुंडली में जब चन्द्रमा दूषित होता है , पाप ग्रहों के साथ स्थित होता है या कमज़ोर जो जैसे अमावस्या का जन्म हो और यदि बचपन में माँ का साथ छूट जाये तो भी चन्द्रमा कमजोर हो जाता है। क्यूंकि माँ ही हमारे मन की सुन सकती है। ऐसे में व्यक्ति हर बात मन पर रखता है। उसे लगता है की उसे कोई नहीं समझता। शक करने की आदत पड़ जाती है। अति सावधान हो जाता है। अँधेरे से भय आता है या हम कह सकते हैं कि उसे किसी भी बात का चीज़ का फोबिया /वहम रहने लग जाता है।<br />
शिव जी की पूजा से चन्द्रमा मज़बूत होगा। वैसे तो साल भर /सारी उम्र ही शिव जी की शरण चाहिए होती है और शिव जी जल्द ही प्रसन्न होने वाले देवता है। कहा जाता है कि सावन के महीने शिव जी धरती पर निवास करते हैं।<br />
कई बार लोग सवाल करते हैं कि शिव पर भांग , धतूरा चढ़ता है , श्मशान के निवासी है। भूत-गण उनके भक्त है , तो इसे हम यह भी सोच सकते हैं कि हमारा मन भी तो अवसादित हो कर भटक जाता है , बार -बार श्मशान की तरफ जाता है। ऐसे में शिवजी श्मशान से मन का सम्बल बन कर मन को मज़बूत करते है।<br />
मंदिरों में शिव लिंग पर चढ़ाया जानेवाला दूध जो कि थोड़ी ही देर में नाली में बहता नज़र आता है तो क्या यह सही है। ऐसे क्या शिव प्रसन्न होते हैं ? नहीं ! वह दूध पुजारी को यूँ ही तो दिया जा सकता है। रोज़ एक मुट्ठी चावल और एक गिलास दूध देने की आदत डाल लेनी चाहिए , मन प्रसन्न रहने लग जायेगा।<br />
शिवजी को प्रसन्न करने के लिए सावन में इक्कीस लोटे गंगा जल से शिवजी का अभिषेक करना चाहिए। गंगा किनारे रहने वाले तो गंगा जल ले सकते हैं तो बाकी लोग अपने घर में पानी में गंगा जल डाल कर काम में ला सकते हैं। अक्सर यहाँ भी अज्ञानता वश कुछ गलती हो जाती है और पूजा का पूर्ण फल नहीं मिल पाता। गलती यह कि पानी भरने के बाद गंगाजल डाल दिया जाता है ऐसा करना गंगाजल का अपमान करना होता है। जबकि पहले गंगाजल डालिये और बाद में पानी। ओम नमः शिवाय मंत्र , महामृत्युंजय मन्त्र का जप विशेष फल दायी है।<br />
ओम शांति। </div>
nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-49658880584231257752015-06-12T02:48:00.001-07:002023-07-23T09:25:41.395-07:00पुरुषों के स्वभाव को प्रभावित करते नव ग्रह<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सौरमंडल के नौ ग्रह सारी प्रकृति पर अलग -अलग तरह से प्रभाव डालती है। महिला ,पुरुष और बच्चे सभी की अलग -अलग प्रवृति होती है तो ग्रह भी अलग तरह से ही प्रभाव डालेंगे। यह लेख , पुरुषों पर ग्रहों के प्रभाव से उनके स्वभाव किस तरह का बन जाता है , पर दृष्टिकोण डालता है।<br>
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सूर्य :-- सूर्य पिता और आत्मा का कारक ग्रह है। जिन पुरुषों का सूर्य बलवान और उच्च अंशों का होता है राज योग करक होता है। अग्रणी ,न्याय प्रिय , समाज में अच्छा नाम और रौब होता है। सूर्य की भांति ही तेज़ चेहरे पर होता है।<br>
जिनका सूर्य कमज़ोर होता है वे आत्मा पर बोझ सा लिए घूमते हैं। हर बात में संशय या अनिर्णय की सी स्थिति रखते हैं। घटना के घटने से पूर्व ही चिंता ग्रस्त रहते हैं। ऐसे व्यक्ति का पिता से अच्छा तालमेल नहीं होता। जो असमय पिता को खो देते है उनका भी सूर्य कमजोर हो जाता है। आत्मा -हृदय पर बोझ रखते -रखते वे एक दिन हृदय रोगी बन जाते हैं। खराब सूर्य नेत्र रोग भी देता है।<br>
कुण्डली में अगर सूर्य अच्छा हो कर उग्र हो जाए तो व्यक्ति अहंकारी हो जाता है। बिन मांगे राय देने वाला या अपनी बात थोपने वाला बन जाता है। जब बात नहीं मानी जाती तो धीरे -धीरे अवसाद में घिरने लग जाता है और हृदय रोग से ग्रसित हो जाता है। ऐसा इंसान ताम्बे में जल पिए। और सन्तरी रंग से परहेज़ करे बल्कि दान दे। गेहूं और गुड़ का दान भी लाभदायक रहेगा।<br>
इसके लिए सबसे अच्छा उपाय है कि पिता का सम्मान करे। नित्य सुबह उठते ही पिता के पैर छुए। पिता को कभी -कभी सफ़ेद वस्त्र भेंट दे। अगर पिता नहीं है तो पिता समान व्यक्तियों का सम्मान करे।<br>
उगते हुए सूर्य के दर्शन , रविवार का व्रत , आदित्य -हृदय स्त्रोत का पाठ और सूर्य को जल अर्पण करें। गायत्री मन्त्र का जप भी लाभदायक रहेगा। उगते हुए सूर्य के रंग के रुमाल , सिरहाने के कवर , बेड -शीट , कमीज़ का रंग अधिक प्रयोग करें तो फायदेमंद रहेगा। ताम्बे के गिलास में पानी पीना भी लाभप्रद रहेगा।माणिक्य भी पहना जा सकता है लेकिन कुंडली का अच्छी तरह से विश्लेषण करवा कर ही। सूर्य अगर अच्छा फल नहीं दे रहा हो तो या नेत्र रोग और हृदय रोग अधिक सता रहा हो तो जातक को जन्म-दिन या अमावस्या को अपने वजन के बराबर गेहूं और गुड़ गऊ -शाला में दान करे।<br>
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चन्द्रमा :-- चंद्रमा मन और माता का करक है। जिन पुरुषों कि जन्म-कुंडली में चंद्रमा अच्छा फल देता है वे उच्च कल्पनाशील होते हैं। दृढ़ निश्चयी होते हैं। शुक्र और बुध के साथ चंद्रमा का मेल होता है वे अच्छे कलाकार , लेखक और फैशन जगत में प्रसिद्ध होते हैं।<br>
कमज़ोर चंद्रमा मन की स्थिति को डांवाडोल रखती है। शक करने की आदत , बिना कहे ही बात का अंदाज़ा लगा कर अपनी राय प्रकट करना , मन के भाव या मन की बात ना कह पाना , बात करते हुए अगल-बगल झांकना और पैर हिलाना ये सब कमज़ोर चंद्रमा की निशानी है।<br>
अच्छा चंद्रमा उग्र हो जाये तो व्यक्ति अति कल्पना शील हो जाता और मानसिक उन्माद से घिर जाता है। ऐसे में सफ़ेद वस्त्रों का दान और सोमवार को मंदिर में चावल और दूध का दान करे।<br>
इसके लिए सलेटी , काले और नीले रंगों का इस्तेमाल ना किया जाय तो बेहतर रहेगा। यहाँ यह सवाल उठाया जा सकता है कि पुरुषों के परिधान अधिकतर इन्ही रंगों के होते हैं तो ये रंग छोड़े कैसे जा सकते हैं। इसके लिए सफ़ेद अंतर्वस्त्र पहने जाएँ। सफ़ेद रुमाल और हलके रंग कि बेड -शीट का प्रयोग किया जा सकता है। पानी का दुरूपयोग न करें। चाँदी के गिलास में पानी और दूध ,पानी में केवड़ा का एसेंस डाल कर पीना भी लाभदायक रहेगा। पूर्णिमा के चाँद को निहारना भी कमज़ोर चन्द्र को मज़बूत करता है।<br>
चंद्रमा को मज़बूत और शांत करने के लिए शिव आराधना भी लाभकारी होती है।<br>
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मंगल :-- मंगल रक्त और रक्त-संबधों ,भूमि और मकान का कारक है। यह शक्ति का परिचायक होता है। अच्छा मंगल व्यक्ति को सेनाध्यक्ष या समाज में अग्रणी बनाता है। यह जरूरी नहीं कि मज़बूत मंगल से प्रभावित व्यक्ति पुलिस या सेना में पद प्राप्त करता है। वह जो भी जिम्मेदारी उठता है उसे बखूबी निभाता भी है। शानदार व्यक्तित्व , भाइयों से अच्छे सबंध अच्छे मंगल का परिचायक है। उत्तम भूमि और भवन का स्वामी होता है।<br>
कुंडली में उग्र मंगल व्यक्ति को अपराधी प्रवृत्ति का बनाता है।<br>
कमज़ोर मंगल व्यक्ति को दब्बू और कायर बनाता है। चेहरा निस्तेज और कमज़ोर व्यक्तित्व , भाइयों से अनबन या उनसे दब कर रहना कमज़ोर मंगल का परिचायक है।<br>
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बुध :-- बुध ग्रह मौसी ,बुआ ,वाणी , बुद्धि और चर्म रोगों का कारक है। जन्म कुंडली का बुध अगर दूषित ग्रहों के सम्पर्क में हो या कमज़ोर अवस्था में हो तो वह इंसान को कम बुद्धिमान या भाषा में कमजोर बना देता है। वह एक तरह से दब्बू बन के रह जाता है। कमजोर बुध को बलवान करने के लिए गणेश जी , सरस्वती माँ की आराधना करे। हरे रंग की वस्तुओं का सेवन करे। हरे वस्त्रों का प्रयोग करें।<br>
लेकिन अगर यही बुध ग्रह कुंडली में बलवान हो जाता है तो ऐसे बुध से प्रभावित इंसान बोलने में , लेखन कला में और वाकपटुता में माहिर होता है। हास्य -व्यंग्य में सबसे आगे और बात में से बात निकलने वाला होता है। किसी इंसान का अच्छा बुध हो तो वह बात इस तरह से कह जाता है कि सामने वाले को मालूम भी हो जाये और किसी को पता भी नहीं चले।<br>
लेकिन जब भी बुध केंद्र का स्वामी हो कर केन्द्राधिपत्य दोष से ग्रसित हो जाता है। तब यह अपने विपरीत परिणाम देने लग जाता है। ऐसा बुध इंसान की बुद्धि पर हावी होकर बुद्धि पर नियंत्रण कर लेता है। उसे नहीं मालूम चलता कि वह क्या बोल रहा है। सामने वाले के मन को कितनी चोट पहुंचेगी। वह इंसान बुध के वशीभूत हो कर स्वयं ही निर्णायक बन जाता है कि क्या सही है और क्या गलत। वह सिर्फ अपने विचार ही दूसरे पर थोपता है। ऐसा बुध इंसान को अलग थलग कर देता है और वह एक दिन अवसाद में घिर जाता है।<br>
ऐसे में उसे हरे रंग से परहेज़ करना चाहिए। हरा वस्त्र , हरा चारा और मूँग की दाल का दान करे। फिटकरी से दांत साफ करे।<br>
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वृहस्पति :-- वृहस्पति बुद्धि ,ज्ञान , सम्मान , दया और न्याय का करक ग्रह है। जिस व्यक्ति का जन्म कुंडली में वृहस्पति ग्रह उत्तम स्थिति में होता है वह व्यक्ति विद्वान और धर्माधिकारी होता है। वह किसी के प्रति अन्याय नहीं करता और ना ही होने देता है। पूजा -पाठ मे अधिक ध्यान देता है।<br>
लेकिन ज्ञान की अधिकता होने से कभी -कभी व्यक्ति में अहंकार भी आने लगता है। बिन मांगे राय या कहिये कि अपनी बात ही सर्वोपरि रख कर थोप देना भी स्वभाव बना लेता है। और यह अहंकार व्यक्ति में अकेलापन और शरीर में मेद की अधिकता करता है। जिस कारण मोटापे में वृद्धि होकर शरीर थुलथुला हो जाता है।<br>
वृहस्पति को सुधारने के लिये व्यक्ति को पूजा -पाठ की अधिकता से बचना चाहिए। सुबह या शाम को मंदिर जाना चाहिए। लेकिन आरती के समय नहीं बल्कि पहले या बाद में। ऐसा करने से अपने ईष्ट से अधिक नज़दीकी महसूस कर सकता है और मन शांत रहेगा।<br>
लोगों से मेल -जोल अधिक बढ़ाये और उनका दुःख -दर्द सुने , समस्याओं का समाधान करें। अगर किसी वृद्धाश्रम मे जा कर उनका दर्द बाँट सके तो वृहस्पति अच्छे फ़ल देने लगता है। यहाँ पर मेरे कहने का अभिप्राय यह नही है कि वृद्धाश्रम मे जाकर फल -मिठाइयां बाँट कर आये। वह जाकर उनके चेहरे पर मुस्कान और दिल मे ख़ुशी बाँट कर आयें तो ज्यादा अच्छा रहेगा।<br>
पीले रंग से परहेज़ करें। वीरवार को पीली भोज्य वस्तु या वस्त्र दान दी जा सकती है। वीरवार का व्रत भी लाभक़ारी रहेगा। विष्णु भगवान की पूजा और मन्त्र भी लाभकारी हैं।<br>
कमज़ोर वृहस्पति व्यक्ति को निस्तेज , नास्तिक ,निराशावादी , पेट संबन्धित बीमारी और विवाह और संतान मे विलम्ब देता है। अगर ऐसा है तो वृहस्पति को मज़बूत करने के उपाय करने चाहिए। पीला भोजन ,वस्त्र का प्रयोग अधिक किया जाना चाहिए। व्रत करना भी लाभकारी रहेगा। वृद्ध ब्राह्मण की सेवा , मज़बूरों की शिक्षा में सहयोग भी वृहस्पति को मज़बूत बनाता है।<br>
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शुक्र :-- शुक्र ग्रह पुरुषों में विवाह , संतान , मनोरंजन , शयनसुख और ऐश्वर्य का कारक है। शुक्र से प्रभावित व्यक्ति ( अगर लग्न में शुक्र हो ) सांवले रंग का होता है। शुक्र गोरे रंग का नहीं बल्कि सौंदर्य का प्रतीक होता है। चेहरे से ही झलकता है अच्छा शुक्र। अच्छा शुक्र व्यक्ति को आकर्षक व्यक्तित्व के साथ -साथ उत्तम भवन ,वाहन , वस्त्राभूषण और सुखसुविधा प्रदान करता है। संगीत , कला और काव्य में पारंगत होता है। जन्म कुंडली का अच्छा शुक्र व्यक्ति को उत्तम चिकित्स्क और ज्योतिषी भी बना सकता है।<br>
कमज़ोर शुक्र सौंदर्य में कमी सुख सुविधा में कमी , जीवन साथी से दूरी ,<span style="background-color: white;"><span style="color: #453320; font-family: "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; font-size: 15px; line-height: 22.3199996948242px;"> </span><span style="font-family: "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; font-size: 15px; line-height: 22.3199996948242px;">नेत्र रोग, गुप्तेन्द्रीय रोग,वीर्य दोष से होने वाले रोग , प्रोस्ट्रेट ग्लैंड्स, प्रमेह,मूत्र विकार ,सुजाक , कामान्धता,श्वेत या रक्त प्रदर ,पांडु इत्यादि रोग उत्पन्न करता है। </span></span><br>
<span style="background-color: white;"><span style="font-family: "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; font-size: 15px; line-height: 22.3199996948242px;"> </span></span><span style="background-color: white; font-family: "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; font-size: 15px; line-height: 22.3199996948242px;"> कमज़ोर शुक्र को बलवान करने के लिए क्रीम रंग के कपड़ों का प्रयोग करना चाहिए। शुक्रवार का व्रत , देवी उपासना ( लक्ष्मी और दुर्गा ) करनी चाहिए। शुक्रवार को कन्याओं को खीर खिलाना , गाय को चारा डालना भी उचित रहेगा। आलू का दान भी शुक्र मज़बूत करता है। </span><br>
<span style="background-color: white; font-family: "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; font-size: 15px; line-height: 22.3199996948242px;"> </span><span style="background-color: white; font-family: "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; font-size: 15.1999998092651px; line-height: 22.3199996948242px;">दूषित शुक्र से प्रभावित व्यक्ति समाज विरोधी गतिविधियों में संलग्न रहता है। मित्रों से नहीं बनती ,स्त्रियों में अधिक रूचि लेता है। सिनेमा , अश्लील-साहित्य और काम-वासना की ओर अधिक ध्यान रहता है। ऐसे में व्यक्ति को दुर्गा माँ की आराधना , नारी जाति के प्रति सम्मान की भावना और सफ़ेद दूधिया रंग के वस्त्रों का दान करना चाहिए। खुशबुओं का प्रयोग अधिक मात्रा में ना करे। </span><br>
<span style="background-color: white; font-family: "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; font-size: 15.1999998092651px; line-height: 22.3199996948242px;"><br></span><span style="background-color: white; font-family: "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; font-size: 15.1999998092651px; line-height: 22.3199996948242px;">शनि :-- शनिग्रह के कुंडली में ग्रहों के साथ और किस भाव में स्थित है यह महत्वपूर्ण होता है क्यूंकि शनि जिस किसी भी भाव में </span><span style="background-color: white; font-family: "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; font-size: 15.1999998092651px; line-height: 22.3199996948242px;">स्थित</span><span style="background-color: white; font-family: "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; font-size: 15.1999998092651px; line-height: 22.3199996948242px;"> होता है उस भाव की वृद्धि करता है लेकिन जिस भाव पर दृष्टि पड़ती है उस भाव के सुखों में कमी लाता है।</span><br>
<span style="background-color: white; font-family: "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; font-size: 15.1999998092651px; line-height: 22.3199996948242px;"> अच्छा शनि व्यक्ति को न्याय प्रिय , विदेशी भाषा में पारंगत , उच्चाधिकारी , लोहे सम्बन्धी व्यापार का कारक बनता है। </span><span style="background-color: white; font-family: "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; font-size: 15.1999998092651px; line-height: 22.3199996948242px;">शनि ग्रह से प्रभावित व्यक्ति अपनी अलग विचारधारा बना कर रखता है। समाज से हट कर सोच रखता है।</span><span style="background-color: white; font-family: "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; font-size: 15.1999998092651px; line-height: 22.3199996948242px;"> </span><br>
<span style="background-color: white; font-family: "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; font-size: 15.1999998092651px; line-height: 22.3199996948242px;"> कमज़ोर शनि से व्यक्ति आलसी , कामचोर और निर्धन बनता है। झगड़ालू भी बनाता है शनि । </span><br>
<span style="background-color: white; font-family: "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; font-size: 15.1999998092651px; line-height: 22.3199996948242px;"> शनि अँधेरे का कारक है जिस कारण से व्यक्ति निशाचर बना रहता है मतलब यह है कि अपराधी प्रवृत्ति अपना लेता है। </span><span style="background-color: white; font-family: "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; font-size: 15.1999998092651px; line-height: 22.3199996948242px;">वात रोग , अस्थि रोग , मनोन्माद भी यही देता है। </span><span style="background-color: white; color: #252525; font-family: sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21px;">पेट के रोग,जंघाओं के रोग,टीबी,कैंसर आदि रोग भी शनि की देन है। </span><br>
<span style="background-color: white; font-family: "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; font-size: 15.1999998092651px; line-height: 22.3199996948242px;"> शनि को मज़बूत के लिए व्यक्ति को आचरण में सुधार लाना होगा। देश के प्रति प्रेम ,सेवा और सद्भावना रखनी होगी। हर कोई तो सीमा पर जा कर प्रहरी नहीं बन सकता तो देश सेवा के और भी मायने है जैसे राष्ट्रिय संपत्ति की सुरक्षा , पानी -बिजली की फिजूल खर्ची ना करना और अपने देश के प्रति कर्तव्यों का भली भांति पालन करना भी शनि ग्रह अच्छा फल देने लग जाता है। </span><br>
<span style="background-color: white; font-family: "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; font-size: 15.1999998092651px; line-height: 22.3199996948242px;"> अपने नौकरों दया भाव रखना भी शनि को अनुकूल बनाता है। </span><br>
<span style="background-color: white; font-family: "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; font-size: 15.1999998092651px; line-height: 22.3199996948242px;">काली माता , हनुमान जी और शिव जी की आराधना , शनि स्त्रोत ,हनुमान चालीसा , सुन्दरकाण्ड का पाठ तथा दुर्गा शप्तशती का पाठ शनि को शांत करने में सहायक है। काले , गहरे नीले रंगों का इस्तेमाल ना करें बल्कि शनिवार को दान दें। शनिवार को राज़मा , काले उड़द और तेल का दान भी उपयुक्त रहेगा। शनिवार को चमेली के तेल का दीपक हनुमान जी के आगे करना शनि को शांत करेगा। </span><br>
<span style="background-color: white; font-family: "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; font-size: 15.1999998092651px; line-height: 22.3199996948242px;"><br></span>
राहु :-- राहु एक तमोगुणी मलेच्छ और छाया ग्रह माना गया है। इसका प्रभाव शनि की भांति ही होता है।<br>
यह तीक्ष्ण बुद्धि , वाक्पटुता , आत्मकेंद्रिता ,स्वार्थ , विघटन और अलगाव , रहस्य मति भ्रम , आलस्य छल - कपट ( राजनीति ) , तस्करी ( चोरी ), अचानक घटित होने वाली घटनाओं , जुआ और झूठ का कारक है।<br>
राहू से प्रभावित पुरुष एक अच्छा जासूस या वकील , अच्छा राजनीतीज्ञ हो सकता है। वह आने वाली बात को पहले ही भांप लेता है। विदेश यात्राएं भी बहुत करवाता है राहु।<br>
कुंडली में राहू जिस राशि में स्थित होता है वैसे ही परिणाम देने लगता है। अगर वृहस्पति के साथ या उसकी राशि में हो तो ज्योतिष की तरफ रुझान देगा । शनि के प्रभाव में तो तांत्रिक - विद्या में निपुण होगा।<br>
राहु से प्रभावित पुरुष भ्रम में रहता है और कई बार गलत फैसले ले लेता है या अनैतिक कार्यों में फंसा देता है। यहाँ पर अगर राहु अच्छा हुआ तो बहुत रूपये , ऊँचा पद आदि दिलवाता है। लेकिन यही राहु व्यक्ति को रूपये और पद का अभिमान भी देता है। इसलिए व्यक्ति घमंडी ,पाखंडी और क्रूर हो जाता है।<br>
राहु की महादशा 18 वर्ष के लिए होती है। महादशा के शुरूआत में राहु व्यक्ति को भ्रम जाल में फंसाकर बहुत धन दिलवाता है लेकिन यही राहु महादशा के अंत में सब कुछ समेट कर ले भी जाता है। अगर इस दौरान व्यक्ति स्व विवेक से काम ले और सही मार्ग पर चले तो राहु के दुष्प्रभाव नहीं होंगे।<br>
दूषित राहु की स्थिति में व्यक्ति मलिन और फटे वस्त्र ( अंतर्वस्त्र भी ) पहनता है , चर्म -रोग ,मति -भ्रम , अवसाद रोग से ग्रस्त हो सकता है।<br>
राहु को शांत करने के लिए दुर्गा माँ की आराधना करनी चाहिए। खुल कर हँसना चाहिए। मलिन और फटे वस्त्र नहीं पहनना चाहिए। गहरे नीले रंग से परहेज़ करना चाहिए। काले रंग की गाय की सेवा करनी चाहिए।मधुर संगीत सुनना चाहिए। रामरक्षा स्त्रोत का पाठ भी लाभ दायक रहेगा।<br>
इसकी शांति के लिए गोमेद रत्न धारण किया जा सकता है लेकिन किसी अच्छे ज्योतिषी की राय ले कर ही।<br>
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केतु :-- केतु ग्रह उष्ण ,तमोगुणी पाप ग्रह है।केतु का अर्थ ध्वजा भी होता है किसी स्वग्रही ग्रह के साथ यह हो तो उस ग्रह का फल चौगुना कर देता है।यह नाना , ज्वर , घाव , दर्द , भूत -प्रेत , आंतो के रोग , बहरापन और हकलाने का कारक है। यह मोक्ष का कारक भी माना जाता है।<br>
केतु मंगल की भांति कार्य करता है। यदि दोनों की युति हो तो मंगल का प्रभाव दुगुना हो जाता है।यदि केतु शनि के साथ हो तो यहाँ शनि-मंगल की युति के सामान ही मानी जाती है।<br>
राहू की भांति केतु भी छाया ग्रह है इसलिए इसका अपना कोई फल नहीं होता है।जिस राशि में या जिस ग्रह के साथ युति करता है वैसा ही फल देता है।<br>
केतु से प्रभावित पुरुष कुछ भ्रमित सा रहता है है। शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता नहीं होती क्यूँ कि यह ग्रह मात्र धड़ का ही प्रतीक होता है और राहू इस देह का कटा सर होता है। अच्छा केतुपुरुष को उच्च पद , समाज में सम्मानित , तंत्र-मन्त्र और ज्योतिष का ज्ञाता बनाता है।<br>
बुरा केतु व्यक्ति की बुद्धि भ्रमित कर के उसे सही समय निर्णय लेने में बाधित करता है। बार -बार कार्य-नौकरी बदलने की सोचता है।<br>
चर्म रोग से ग्रसित कर देता है। काम-वासना की अधिकता भी कर देता है जिसके फलस्वरूप कई बार दाम्पत्य -जीवन कष्टमय हो जाता है। वाणी भी कटु कर देता है।<br>
केतु का प्रभाव अलग - अलग ग्रहों के साथ युति और अलग-अलग भावों में स्थिति होने के कारण इसका प्रभाव ज्यादा या कम हो सकता है। इसके लिए किसी अच्छे ज्योतिषी से कुंडली का विश्लेषण करवाकर ही उपाय करवाना चाहिए।<br>
केतु के लिए लहसुनिया नग उपयुक्त माना गया है।मंगल वार का व्रत और हनुमान जी की आराधना विशेष फलदायी होती है।चिड़ियों को बाजरी के दाने खिलाना और भूरे-चितकबरे वस्त्र का दान तथा इन्हीं रंगों के पशुओं की सेवा करना उचित रहेगा।<br><div style="-webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; margin: 0px; orphans: auto; text-align: left; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">ॐ शांति ...</div><div style="-webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; margin: 0px; orphans: auto; text-align: left; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;"><br></div><div style="-webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; margin: 0px; orphans: auto; text-align: left; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">,©Upasna siag</div><div style="-webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; margin: 0px; orphans: auto; text-align: left; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;"><br></div>
<span style="background-color: white;"><span style="font-family: "georgia" , "times new roman" , "times" , serif; font-size: 15px; line-height: 22.3199996948242px;"><br></span></span> <br>
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nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-67482005764258701062015-04-07T01:05:00.001-07:002016-09-15T09:52:48.982-07:00कुछ आसान और जरुरी बातें...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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कुछ बातें हम लोग देख सुन कर अनजान हैं। उसमे एक है चरण स्पर्श करना। पैरों में विष्णु निवास माना जाता है। चरण स्पर्श करने वाले को ना केवल जिसके सामने झुका गया है बल्कि विष्णु भगवान का आशीर्वाद भी स्वतः मिल जाता है। लेकिन इसका भी तरीका - नियम होता है<br />
१) भोजन करते हुए स्त्री /पुरुष के चरण स्पर्श करना चाहिए। जैसे हम किसी के घर जाते हैं और सामने वाला भोजन कर रहा हो। सभ्यता तो यही है कि अगर सामने वाला उम्र में बड़ा है , आशीर्वाद के लिए झुका जाये। यहाँ पर हम सिर्फ प्रणाम कर के बैठ जाएँ और सामने वाले के भोजन खत्म करके हाथ धोने का इंतज़ार करें तो बेहतर है। क्यूंकि जूठे हाथों से आशीर्वाद देना उचित नहीं है।<br />
२) जब हम मंदिर में जाएँ और कोई उम्र से बड़ा मिल जाये , या कोई जागरण - सत्संग हो वहां भी चरण स्पर्श उचित नहीं है। क्यूंकि वहां ईश्वर ही सबसे बड़ा है इंसान के आगे झुकना उचित नहीं। अभिवादन जरूर किया जा सकता है। </div>
nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-75276779710200572462014-02-04T10:31:00.002-08:002019-09-21T23:28:35.348-07:00लग्न कुंडली से जानिए अपने ईष्ट देव <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हम सब प्रतिदिन विभिन्न देवी -देवताओं का पूजन करते हैं। लगभग सभी सकाम पूजा ही करते हैं। कहने का मतलब यह है कि हम हमारी मनोकामना पूर्ण करने के लिए ही ईश्वर को मानते है। बहुत कम लोग होते हैं निष्काम पूजा करते हैं। बहुत सारे लोगों कि यह शिकायत होती है कि वो पूजा -व्रत आदि बहुत करते हैं फिर भी फल नहीं मिलता।<br>
मैं यहाँ कहना चाहूंगी कि हमें काम तो बिजली विभाग में होता है और चले जाते हैं जल-विभाग में ! जब हम गलत कार्यालय में जायेंगे तो काम कैसे होगा। इसी प्रकार हर कुंडली के अनुसार उसके अपने अनुकूल देवता होते हैं।<br>
किसी भी कुंडली के लग्न /प्रथम भाव , पंचम भाव और नवम भाव में स्थित राशि के अनुसार इष्ट देव निर्धारित होते है और इनके अनुसार ही रत्न धारण किये जा सकते हैं।<br>
मेष लग्न :-- जन्म कुंडली के प्रथम भाव में अगर प्रथम राशि मेष होती है तो वह मेष लग्न की कुंडली कही जायेगी। मेष लग्न में पांचवे भाव में सिंह राशि और नवम भाव में धनु राशि होती है।<br>
मेष राशि का स्वामी मंगल , सिंह राशि का स्वामी है सूर्य और धनु राशि का स्वामी वृहस्पति है। इस कुंडली के लिए अनुकूल देव हनुमान जी , सूर्य देव और विष्णु भगवान है ।<br>
मेष लग्न के लिए हनुमान जी की आराधना , मंगल के व्रत , सूर्य चालीसा , आदित्य - हृदय स्त्रोत , राम रक्षा स्त्रोत , रविवार का व्रत , वृहस्पति वार का व्रत , विष्णु पूजन करना चाहिए। मूंगा , माणिक्य और पुखराज रत्न अनुकूल रहेंगे।<br>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://1.bp.blogspot.com/-05nS-zWbEVI/UvExbJ-McOI/AAAAAAAABDU/WHM60WKA7Mw/s1600/download+(3).jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="319" src="http://1.bp.blogspot.com/-05nS-zWbEVI/UvExbJ-McOI/AAAAAAAABDU/WHM60WKA7Mw/s1600/download+(3).jpg" width="400"></a></div>
वृषभ लग्न :-- जन्म कुंडली के प्रथम भाव में अगर द्वितीय राशि वृषभ होती है तो वह वृषभ लग्न की कुंडली कही जायेगी। वृषभ लग्न में पांचवे भाव में कन्या राशि और नवम भाव में मकर राशि होती है।<br>
वृषभ राशि का स्वामी शुक्र , कन्या राशि का बुध और मकर राशि के स्वामी शनि देव है।<br>
वृषभ लग्न वालों के लिए लक्ष्मी देवी , गणेश जी और दुर्गा देवी की आराधना उचित रहेगी। लक्ष्मी चालीसा , दुर्गा चालीसा और गणेश चालीसा का पाठ करना चाहिए।<br>
इस लग्न के लिए हीरा , नीलम और पन्ना अनुकूल रत्न है ।<br>
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मिथुन लग्न :-- जन्म कुंडली के प्रथम भाव में अगर तृतीय राशि मिथुन होती है तो वह मिथुन लग्न की कुंडली कही जायेगी। मिथुन लग्न में पांचवे भाव में तुला राशि और नवम भाव में कुम्भ राशि होती है।<br>
मिथुन राशि का स्वामी बुध , तुला राशि का शुक्र और कुंभ राशि का स्वामी शनि देव हैं।<br>
इस लग्न के लिए गणेश जी , लक्ष्मी देवी और काली माता अराध्य होगी। कुम्भ राशि के स्वामी शनि होने के कारण शनि देव को प्रसन्न और शांत रखने के उपाय किये जा सकते हैं।<br>
इस लग्न के लिए पन्ना , हीरा और नीलम अनुकूल रत्न हैं।<br>
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कर्क लग्न :-- जन्म कुंडली के प्रथम भाव में अगर चतुर्थ राशि कर्क होती है तो वह कर्क लग्न की कुंडली कही जायेगी। कर्क लग्न के पांचवे भाव में वृश्चिक राशि और नवम भाव में मीन राशि होती है।<br>
कर्क राशि के स्वामी चंद्रमा,वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल और मीन राशि के स्वामी वृहस्पति होते है। इस लग्न के लिए शिव जी , हनुमान जी और विष्णु जी अराध्य देव होंगे।<br>
इस लग्न के लिए मोती , मूंगा और पुखराज अनुकूल रत्न हैं।<br>
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सिंह लग्न :-- जन्म कुंडली के प्रथम भाव में अगर पंचम राशि सिंह होती है तो वह सिंह लग्न की कुंडली कही जायेगी। सिंह लग्न के पांचवे भाव में धनु राशि और नवम भाव में मेष राशि होती है।<br>
सिंह राशि का स्वामी सूर्य देव , धनु राशि के स्वामी वृहस्पति और मेष राशि के स्वामी मंगल होता है।<br>
इस लग्न के लिए सूर्य देव , विष्णु जी और हनुमान जी आराध्य देव होंगे।<br>
इस लग्न के लिए माणिक्य , मूंगा और पुखराज रत्न अनुकूल होते हैं।<br>
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कन्या लग्न :-- जन्म कुंडली के प्रथम भाव में अगर षष्ठ राशि कन्या होती है तो वह कन्या लग्न की कुंडली कही जायेगी। इस लग्न के पांचवे भाव में मकर राशि और नवम भान में वृषभ राशि होती है।<br>
कन्या राशि का स्वामी बुध , मकर राशि का स्वामी शनि और वृषभ राशि का स्वामी शुक्र होता है।<br>
इस लग्न के लिए गणेश जी , दुर्गा देवी ,लक्ष्मी देवी आराध्य देव होते हैं और पन्ना, नीलम और हीरा अनुकूल रत्न होते हैं।<br>
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तुला लग्न :-- जन्म कुंडली के प्रथम भाव में अगर सप्तम राशि तुला हो तो वह तुला लग्न की कुंडली कही जायेगी। तुला लग्न में पांचवे भाव में कुम्भ राशि और नवम भाव में मिथुन राशि होती है। तुला राशि का स्वामी शुक्र , कुम्भ राशि का स्वामी शनि और मिथुन राशि का स्वामी बुध होता है। इस लग्न के लिए लक्ष्मी देवी , काली देवी , दुर्गा देवी और गणेश जी आराध्य देव हैं और हीरा , नीलम और पन्ना अनुकूल रत्न है।<br>
<br>
वृश्चिक लग्न :-- जन्म कुंडली के प्रथम भाव में अगर अष्ठम राशि वृश्चिक हो तो वह वृश्चिक लग्न की कुंडली कही जायेगी। वृश्चिक लग्न में पांचवे भाव में मीन राशि और नवम भाव में कर्क राशि होती है। वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल , मीन राशि का स्वामी वृहस्पति और कर्क राशि का स्वामी चन्द्रमा होता है। इस लग्न के लिए हनुमान जी , विष्णु जी और शिव जी अराध्य देव होते है और मूंगा , पुखराज और मोती अनुकूल रत्न है।<br>
<br>
धनु लग्न :-- जन्म कुंडली के प्रथम भाव में अगर नवम राशि धनु हो तो वह धनुलग्न की कुंडली कही जायेगी। धनु लग्न में पांचवे भाव में मेष राशि और नवम भाव में सिंह राशि होती है। धनु राशि का स्वामी वृहस्पति , मेष राशि का स्वामी मंगल और सिंह राशि का स्वामी सूर्य होता है। इस लग्न के लिए विष्णु जी ,हनुमान जी और सूर्य देव आराध्य देव हैं और पुखराज , मूंगा और माणिक्य अनुकूल रत्न है।<br>
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मकर लग्न :-- जन्म कुंडली के प्रथम भाव में अगर दशम राशि मकर हो तो वह मकर लग्न की कुंडली कही जायेगी। मकर लग्न में पांचवे भाव में वृषभ राशि और नवम भाव में कन्या राशि होती है। मकर राशि का स्वामी शनि , वृषभ राशि का स्वामी शुक्र और कन्या राशि का स्वामी बुध होता है। इस लग्न के लिए शनि देव , हनुमान जी , दुर्गा देवी , लक्ष्मी देवी और गणेश जी आराध्य देव है और नीलम , हीरा और पन्ना अनुकूल रत्न है।<br>
<br>
कुम्भ लग्न :-- जन्म कुंडली के प्रथम भाव में अगर एकादश राशि कुम्भ हो तो वह कुम्भ लग्न की कुंडली कही जायेगी। कुम्भ लग्न में पांचवे भाव में मिथुन राशि और नवम भाव में तुला राशि होती है।कुम्भ राशि का स्वामी शनि , मिथुन राशि का स्वामी बुध और तुला राशि का स्वामी शुक्र होता है। इस लगन के लिए शनि देव , काली देवी , गणेश जी , दुर्गा देवी और लक्ष्मी देवी आराध्य देव है और नीलम , पन्ना और हीरा अनुकूल रत्न है।<br>
<br>
मीन लग्न :-- जन्म कुंडली के प्रथम भाव में अगर द्वादश राशि मीन हो तो वह मीन लग्न की कुंडली कही जायेगी। मीन लग्न में पांचवे भाव में कर्क राशि और नवम भाव में वृश्चिक राशि होती है। मीन राशि का स्वामी वृहस्पति , कर्क राशि का स्वामी चन्द्र और वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल होता है। इस लग्न के लिए विष्णु जी , शिव जी और हनुमान जी आराध्य देव है और पुखराज , मोती और मूंगा अनुकूल रत्न है।<br>
<br>
लेकिन यहाँ यह भी देखा जायेगा कि उपरोक्त राशि स्वामी किस भाव में और कितने अंशो पर स्थित है। क्या वो उच्च या नीच के तो नहीं है। अक्सर विद्वान् जन ग्रह के उच्च या नीच के होने पर रत्न पहना देते हैं जो कि उचित नहीं है। उच्च का ग्रह तो स्वतः ही अच्छा फल देता है। नीच ग्रह का रत्न पहनने से उस ग्रह के नीचत्व में ही वृद्धि होती है। ऐसे में उस ग्रह को शांत करने के लिए पूजा और व्रत आदि उचित रहेगी। खराब ग्रह को अनुकूल बनाने के लिए उस देव का चालीसा का पाठ करना चाहिए।<br>
<br>
यहाँ पर यह ध्यान रखने वाली बात है कि जो ग्रह अधिक कमजोर हो उसे बलवान करने के लिए पूजा - व्रत आदि करें। रत्न भी धारण किया जा सकता है लेकिन कुंडली को अच्छी तरह विश्लेषण करवा कर ही। क्यूंकि कई बार उपरोक्त तीनों भावों के स्वामी तीसरे , छठे , आठवें और बाहरवें भाव में स्थित होते हैं। इन भावों में स्थित ग्रहों के रत्न भी धारण नहीं किये जा सकते। इस स्थिति में व्रत-पूजन और दान ही उचित रहेगा।<br>
<br>
जिनके पास कुंडली हैं वे तो यह जान सकते हैं कि उनके ईष्ट देव कौन है। लेकिन जिनके पास कुंडली नहीं है और ना ही कोई विवरण है तो वे क्या करे या कैसे जाने कि उनका ईष्ट कौन है !<br>
हर इंसान की प्रकृति और व्यवहार ग्रहों से ही तय होती है। किसी भी इंसान को उसके ईष्ट उसके अंतर्मन को आकर्षित करते हैं। अपनी पसंद के रंगो के अनुसार भी तय कर सकते हैं कि उनका ईष्ट देव कौन हो सकता है।<br>
<br>
उपासना सियाग ( अबोहर , पंजाब )<br>
ॐ शांति।।<br>
<br>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://4.bp.blogspot.com/-1bXctSbPCs0/UvExbWZQ8uI/AAAAAAAABDY/46iVwtrM5m4/s1600/images+(2).jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="http://4.bp.blogspot.com/-1bXctSbPCs0/UvExbWZQ8uI/AAAAAAAABDY/46iVwtrM5m4/s1600/images+(2).jpg" width="640"></a></div>
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nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-70148830360279854162014-01-27T05:24:00.002-08:002015-04-12T03:54:40.467-07:00गायत्री मन्त्र : एक अनुभूत प्रयोग <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<span style="font-family: Mangal;"><span style="background-color: white;"> " ॐ भूर्भुवः स्वः </span></span><span style="background-color: white; font-family: Mangal;">तत सवितुर्वरेण्यं </span><br />
<span style="background-color: white; font-family: Mangal;">भर्गो देवस्य धीमहि </span><span style="background-color: white; font-family: Mangal;">धियो यो नः </span><span style="background-color: white; font-family: Mangal;">प्रचोदयात।"</span><br />
<span style="background-color: white; font-family: Mangal;"><br /></span>
<strong style="background-color: white; font-family: Mangal;">गायत्री मन्त्र का अर्थ :-- </strong><span style="background-color: white; font-family: Mangal;">उस सर्वरक्षक प्राणों से प्यारे, दु:खनाशक, सुखस्वरूप श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंतरात्मा में धारण करें तथा परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें। </span><br />
<span style="background-color: white; font-family: Mangal;"><br /></span>
<span style="background-color: white; font-family: Mangal;"> गायत्री मन्त्र की महत्ता आदि काल से चली आ रही है। यह सूर्य देव को प्रसन्न करने का मन्त्र भी माना जाता है। जन्म-कुंडली में यही सूर्य कमजोर स्थिति में हो तो इस मन्त्र का जाप लाभदायक रहता है। </span><br />
<span style="background-color: white; font-family: Mangal;"> शांति कुञ्ज हरिद्वार से प्रकाशित पत्रिका ' अखंड-ज्योति ' के अनुसार इस मंत्र का मानसिक जाप भी फलदायक होता है। उनके अनुसार इसे आप जब चाहें चलते -फिरते , काम करते हुए , महिलाएं भोजन पकाते समय भी और रात को अगर अनिद्रा की शिकायत है तब भी इसका जाप करें तो नींद अच्छी आ जाती है। निरंतर जप से यह मन्त्र सिद्ध भी हो जाता है। </span><br />
<span style="background-color: white; font-family: Mangal;"><br /></span>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://1.bp.blogspot.com/-Cl9AIqKOBpc/UuZbrdTvTRI/AAAAAAAABCE/f1Y01H_WjwQ/s1600/download+(2).jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://1.bp.blogspot.com/-Cl9AIqKOBpc/UuZbrdTvTRI/AAAAAAAABCE/f1Y01H_WjwQ/s1600/download+(2).jpg" height="300" width="400" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<span style="background-color: white; font-family: Mangal;"> </span><br />
<span style="font-family: Mangal;"><span style="background-color: white;">हृदय रोगी इसका निरंतर जप करें तो बहुत राहत मिलती है </span></span><br />
<span style="background-color: white; font-family: Mangal;"> सुबह सूर्य को जल अर्पण करते हैं तब यदि अपनी मनोकामना के साथ तीन बार गायत्री मन्त्र बोला जाए तो कामना अवश्य पूर्ण होती है। </span><br />
<span style="background-color: white; font-family: Mangal;"> दिन में पौने बारह ( 11 :45 am ) से सवा बारह बजे( 12:15pm) तक इस मन्त्र का प्रसारण ( म्यूज़िक -सिस्टम से ) किया जाए तो वास्तु दोषों में बहुत सुधार होता है। </span><br />
<span style="background-color: white; font-family: Mangal;"> बच्चे को सुबह जगाते समय और रात को सोते समय बच्चे के बालों में उँगलियाँ फिराते हुए उसके उज्जवल भविष्य और सद्बुद्धि की कामना करने से बच्चे के मन-मस्तिष्क पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। </span><br />
<span style="background-color: white; font-family: Mangal;"> अपनी कोई भी मनोकामना को पूरा करने के लिए </span><span style="background-color: white; font-family: Mangal;">अपनी मनोकामना को बोलते हुए</span><span style="background-color: white; font-family: Mangal;"> इस मन्त्र का इक्कीस बार जप कीजिये तो </span><span style="background-color: white; font-family: Mangal;">जरुर पूरी होती है। </span><br />
<span style="background-color: white; font-family: Mangal;"> यह मन्त्र हम जन कल्याण और देश हित के लिए प्रयोग करें तो और भी अच्छा होगा। जब भी पूजा करें तो कम से कम ग्यारह बार इसका जप अपने देश के हित और कल्याण के लिए अवश्य करें। </span><br />
<span style="background-color: white; font-family: Mangal;"><br /></span>
<span style="background-color: white; font-family: Mangal;">ॐ शांति। </span><br />
<span style="background-color: white; font-family: Mangal;"> </span><br />
<span style="background-color: white; font-family: Mangal;"> </span><br />
<span style="background-color: white; font-family: Mangal;"></span><br />
<span style="background-color: white; font-family: Mangal;"><br /></span></div>
nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-30700737538498212692013-12-17T08:46:00.003-08:002023-05-04T21:10:47.317-07:00क्या ईश्वर लालची है ...!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
क्या ईश्वर लालची है ! यह प्रश्न मेरे मन में अक्सर उठता रहता है। जब मैं यह देखती -सुनती हूँ कि किसी ने अपनी मन्नत पूरी होने पर भगवान को बहुत सारा चढ़ावा चढ़ाया है या कोई कीमती वस्तु भेंट की है। तो प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है ! जब ईश्वर से ही माँगना होता है तो उसे भेंट स्वरुप कोई वस्तु क्यूँ दी जाय। क्या वह लालच में आ कर किसी मन्नत पूरी करता है ? मुझे तो ऐसा लगता है कि ईश्वर प्रेम के वशीभूत हो कर ही इंसान की पुकार सुनता है।<br>
मुझे याद है जब मेरा बड़ा बेटा अंशुमान आठवीं कक्षा में था। जिस दिन उसका गणित की परीक्षा थी। परीक्षा के बाद मेरे पास आया कि उसे रूपये चाहिए। वह ' बाला जी धाम '( हमारे शहर का प्रसिद्ध हनुमान जी का मंदिर ) में प्रसाद चढ़ा कर आएगा। क्यूंकि उसने हनुमान जी से मन्नत मांगी थी कि पेपर अच्छा होने पर वह उनको प्रसाद चढ़ायेगा। मैंने रूपये तो दिए क्यूंकि मन्नत जो मांगी थी। साथ ही समझाया भी कि ऐसे तो भगवान को रिश्वत देना ठीक नहीं है। अगर आपको श्रद्धा है तो भगवान से कहो कि मैं आपके मंदिर धन्यवाद करने पैदल आऊंगा। मेहनत करने वालों का साथ भगवान् देते ही हैं। वह समझ गया।<br>
लेकिन मेरे मन का प्रश्न तो ज्यों का त्यों ही है।एक तरफ तो मंदिरों में लाखों -करोड़ों की भेंट चढ़ाते भक्त गण और वही दूसरी और मंदिर के बाहर एक -एक सिक्के के लिए तरसती -झपटती दीन -हीन लोगों की भीड़ । तो क्या सच में ही ईश्वर प्रसन्न होता है यह सब देख कर।<br>
मेरे विचार से अगर अगर मन्नत का स्वरुप बदल दिया जाय। जैसे कोई साधन संपन्न मन्नत मांगने के बदले किसी मज़बूर कि कन्या का विवाह में सहायता कर दे , किसी मज़बूर के घर बनाने में सहायता करे या किसी भी जरूरत मंद की सहायता जैसे शिक्षा आदि में, और भी बहुत सारी सहायता हो सकती है। मुझे लगता है ऐसे में ईश्वर अधिक प्रसन्न होकर जल्दी मन्नत पूरी करेगा।<br>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://2.bp.blogspot.com/-2fUMDWSYMgk/UrB_kZUNLfI/AAAAAAAAA_U/J5MpRYm-AGI/s1600/1497538_690392120993955_2072753032_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="250" src="http://2.bp.blogspot.com/-2fUMDWSYMgk/UrB_kZUNLfI/AAAAAAAAA_U/J5MpRYm-AGI/s400/1497538_690392120993955_2072753032_n.jpg" width="400"></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br></div>
जो कम समर्थ हो वह एक गुल्लक बना ले। जब भी मन्नत पूरी हो , कुछ रूपये उसमे डाल दे। एक साल बाद किसी जरूरतमंद को दे दें। मैं तो ऐसे ही करती हूँ। जब मन्नत मांगनी होती है तो 21सुन्दरकाण्ड या 21दुर्गा सप्तशती के पाठ या 108 हनुमान चालीसा या 108 शिव चालीसा के पाठ बोलती हूँ। फिर जितने पाठ करती जाती हूँ उतनी ही कुछ धन राशि गुल्लक में डालती जाती हूँ। वर्ष के अंत में किसी भी जरुरी व्यक्ति को दे देती हूँ। जब हम भगवान से मांगते हैं तो थोड़ा कष्ट हमें भी तो उठाना चाहिए। </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> अंशुमान के जज बनने की मन्नत मैने मांगी थी कि जज बन जायेगा तो एक बच्चे की स्कूल की फीस भर दिया करूँगी और अब ऐसा करती भी हूँ.<br>
ऐसा करने पर ईश्वर बहुत अधिक प्रसन्न होगा। वह कतई लालची नहीं है। आखिर नेकी और भलाई का फल तो मिलता ही है। </div>
nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-84863019668431438992013-10-05T09:41:00.000-07:002023-02-05T18:36:06.237-08:00कुछ आसान और जरुरी बातें ( 2 )<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br>
बहुत सारी ऐसी बातें है जो हम जानते नहीं है या जान बूझ कर नजर अंदाज़ कर देते हैं। जैसे , अक्सर हम लोग हमारे मोबाईल फोन में कॉलर ट्यून या हेलो ट्यून कोई भी मन्त्र की लगा लेते हैं जोकि सर्वथा अनुचित है। क्यूंकि हर मन्त्र का अपना प्रभाव होता है। अपनी अलग ही तरंगे होती है। जब भी कभी कोई फोन करता है और घंटी की जगह मन्त्र उच्चारित होने लगता है। कई बार फोन जल्दी ही उठा लिया जाता है और मन्त्र आधा ही रह जाता है। यह आधा मन्त्र दोष दायक हो सकता है। आज कल फोन हर जगह ले जाया जाता है। बाथरूम में भी। अब सोचने वाली बात यह है क्या वह जगह मन्त्र के लिए उपयुक्त है। <br>
हम अपने इष्ट देव की तस्वीर का भी कवर फोटो फ़ोन पर लगा देते हैं। मोबाइल फोन है कहीं भी कभी आ सकता है। हम झट से उठा लेते हैं। डाइनिंग टेबल हो या बाथरूम। मुझे नहीं लगता कि हमें अशुद्ध हाथों से ईश्वर की तस्वीर छूनी चाहिए।<br>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://3.bp.blogspot.com/-9Rb2fmDopIE/UlA_rBMw4tI/AAAAAAAAA7g/_UswCFX94x4/s1600/download.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://3.bp.blogspot.com/-9Rb2fmDopIE/UlA_rBMw4tI/AAAAAAAAA7g/_UswCFX94x4/s1600/download.jpg"></a></div>
हम लोग घरों में भी जगह -जगह अपने इष्ट की तस्वीरें टांग देते है। यह तो सभी जानते हैं कि ईश्वर की तस्वीर शयनकक्ष में नहीं होनी चाहिए। लेकिन हम शयन कक्ष के अलावा भी अन्य कमरों में रसोई आदि में ईश्वर की तस्वीरे लगा देते हैं। बेशक ये हमारी धार्मिक प्रवृत्ति दर्शाती है। लेकिन ये उचित नहीं है। घर में हर वस्तु का एक नियत स्थान होता है। फिर भगवान् को इधर -उधर अपमानित क्यूँ किया जाय।<br>
बैठक हो या भोजन कक्ष , जहाँ पर परिवार हंसती खुशनुमा तस्वीर होनी चाहिए वहां ईश्वर को उपेक्षित क्यूँ किया जाय। बैठक में हर तरह के लोग मिलने आ सकते है। आज -कल उनके स्वागत के लिए विभिन्न प्रकार के 'पेय 'पदार्थ भी दिए जाते हैं। या छोटी -बड़ी पार्टियाँ भी की जाती है वहां भगवान का क्या काम। ऐसे तो घर में नकारात्मकता ही बढती है। रसोई में अगर चित्र लगाना हो तो अन्नपूर्णा देवी का लगाया जा सकता है। वह भी इस शर्त पर वहां मांसाहार न पकाया जाता हो।<br>
ईश्वर के लिए घर में जहाँ स्थान होता है। वहीँ होना चाहिए। सुबह शाम धूप -दीप किया जाना चाहिए। घंटी बजा कर आरती करनी चाहिए। अक्सर लोग घरों में पत्थर के बने मंदिर भी रहने लगे हैं। यह भी गलत है। मूर्तियों की स्थापना भी करते हैं। घर अगर घर बना रहे तो ही अच्छा है ,मूर्तियों के लिए देवालय बने हैं। क्यूंकि घर में ख़ुशी -गम ,रोग -मातम आदि होते ही रहते हैं।<br>
<br>
अक्सर देखने में यह भी आता है कि कई घरों में दिवगंत पूर्वजों की तस्वीरे भी लगा दी जाती है। मेरे विचार से यह उचित नहीं है। जो चले गए हैं वो हमारे मन में तो बसे ही होते है। उनकी तस्वीरें देख कर मन पर और भी बोझ सा पड़ता है। इस तरह से घर में नकारात्मकता ही बढती है।<br>
ऐसे बहुत सारी बातें और भी है जिन पर हम दृष्टि डाल कर भी अनदेख कर देते हैं।<br>
<br>
ॐ शांति ...<br>
<br>
( चित्र गूगल से साभार )<br>
<br></div>
nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-26079494552759281752013-10-02T23:11:00.000-07:002015-03-21T02:33:32.366-07:00 नवरात्रि यानि शक्ति पर्व<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://4.bp.blogspot.com/-Qs9ve92sy_g/Uk0KNNJEjCI/AAAAAAAAA7Q/3d5i1d4DI10/s1600/DurgaMaaDM.gif" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://4.bp.blogspot.com/-Qs9ve92sy_g/Uk0KNNJEjCI/AAAAAAAAA7Q/3d5i1d4DI10/s400/DurgaMaaDM.gif" height="400" width="300" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
नवरात्रि यानि शक्ति पर्व। मौसम अब बदलने लगा है तो शरीर में भी आन्तरिक परिवर्तन होते है। नौ दिन के व्रत या उपवास से शरीर को नयी उर्जा प्रदान हो जाती है।<br />
इस वर्ष 2013 के शारदीय नवरात्रे 5 अक्टूबर दिन शनिवार, आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होगें।<br />
इस दिन ब्राह्मण सरस्वती-पूजन तथा क्षत्रिय शस्त्र-पूजन आरंभ करते हैं। नवरात्रि के नौ रातो में तीन देवियों - महाकाली, महालक्ष्मी और सरस्वती तथा दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं ।<br />
<br />
घट स्थापना 05 अक्टूबर 2013, शनिवार (अश्विन शुक्ल प्रतिपदा) को श्रेष्ठ समय सुबह 08 बजकर 05 मिनट से प्रातः 09 बजे तक रहेगा।<br />
इसके बाद दोपहर 12 बजकर 03 मिनट से दोपहर 12 बजकर 50 मिनट तक बीच करना शुभ है।<br />
स्थिर लग्न वृश्चिक में प्रातः 09 बजकर 35 मिनट से सुबह 11 बजकर 50 मिनट तक भी घट स्थापना की जा सकती है।<br />
माँ दुर्गा की मूर्ति या तसवीर को लकड़ी की चौकी पर लाल अथवा पीले वस्त्र के उपर स्थापित करना चाहिए। जल से स्नान के बाद, मौली चढ़ाते हुए, रोली चावल धूप दीप एवं नैवेध से पूजा अर्चना करना चाहिए।<br />
व्रत करने वाले को लाल वस्त्र और लाल आसन पर बैठना चाहिए। मुख पूर्व या उत्तर की तरफ होना चाहिए।<br />
<br />
नवरात्रि के प्रत्येक दिन माँ भगवती के एक स्वरुप श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। यह क्रम आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को सुबह से शुरू होता है। प्रतिदिन जल्दी स्नान करके माँ भगवती का ध्यान तथा पूजन करना चाहिए।<br />
सर्वप्रथम कलश स्थापना की जाती है।<br />
यह स्थापना स्वयं या योग्य ब्राह्मण से करवाई जा सकती है। एक साफ मिटटी के बर्तन में जौ बोये जाते हैं। मिटटी के बीच में कलश की स्थापना की जाती है। इसके बाद दुर्गा माँ की तस्वीर या मूर्ति की स्थापना की जाती है। लाल चुनरी अर्पित करके। धूप -दीप , नारियल और नेवेध्य चढ़ा कर प्रतिदिन शप्तशती का पाठ करना चाहिए। पाठ के बाद सिद्धि -कुंजिका का पाठ भी विशेष फलदाई है। सुन्दर काण्ड का पाठ भी किया जा सकता है।<br />
<br />
नवरात्री में नित्य करने के नियम --<br />
१). अखंड ज्योति जलाये।<br />
२). दीपक के नीचे चावल रखें।<br />
३). शुद्धता और पवित्रता का ध्यान रखे ना केवल शारीरिक ही बल्कि मानसिक पवित्रता भी बनाये रखें। झूठ ,कपट , छल और परनिंदा से भी बचें। ब्रह्मचर्य का पालन भी आवश्यक है।<br />
४). देवी माँ दिखावे से नहीं भक्ति से प्रसन्न होती है।<br />
५). देवी की पूजा के बाद दूध पीने से पूजा का फल शीघ्र मिलता है।<br />
६). " ॐ एम् ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे " , गायत्री मन्त्र का मानसिक जप भी फलदायक होता है।<br />
<br />
नवरात्री के अंतिम दिन कन्याओं का पूजन - भोजन करवा कर उन्हें यथा शक्ति उपहार और दक्षिणा भी दीजिये।<br />
मेरे विचार में यह व्रत -पूजन सिर्फ उनको ही करना चाहिए या इस व्रत के करने के वे ही अधिकारी है जिन्होंने कभी कन्या भ्रूण हत्या ना की हों। जो भी यह व्रत करें वे एक बार अपने दिल पर हाथ रख कर सोचे कि क्या वे सच में ये व्रत करे या कन्याओं का पूजन करें। क्यूंकि हम कन्यायें तो चाहते है लेकिन सिर्फ दूसरों के यहाँ ही। अंत में नवरात्रों की शुभकामनाये देते हुए मैं यही कहूँगी की कन्याओं को पूजिये भी नहीं बल्कि सम्मान भी दीजिये।<br />
<br />
<br /></div>
nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-46297965966989292232013-09-17T06:32:00.001-07:002015-11-26T01:08:57.264-08:00 पितृ दोष <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
पितृ ऋण या पितृ दोष , जन्म -कुंडली में एक ऐसा दोष है जोकि इन्सान की प्रगति में बाधक होता है। किसी भी कुंडली को देखने से यह बताया है कि जातक को किस प्रकार का ऋण दोष है।<br />
सबसे पहले तो यह जानते हैं कि पितृ दोष क्या है। इसके बहुत सारे ज्योतिषीय कारण है। इसे राहू , सूर्य वृहस्पति की विभिन्न भावों में स्थिति से जाना जा सकता है। यह भी कई प्रकार के होते हैं जैसे पितृ ऋण , स्त्री ऋण , भगिनी ऋण , भ्राता ऋण , गुरु ऋण , मातृ ऋण आदि। यहाँ मैं सिर्फ सामान्य जन को समझ आये वह भाषा ही कहूँगी , क्यूंकि हर किसी को कुंडली की समझ नहीं होती।<br />
पूर्व जन्म में यदि किसी ने किसी को संताप दिया हो जैसे दैहिक , भौतिक या मानसिक भी , तो वह अगले जन्म में उस जातक की कुंडली में दोष बन कर जीवन में बाधा का कारण बन जाता है।<br />
लक्षण :--<br />
१) . परिवार में अशांति , विशेषतया भोजन के समय कोई बहस या तकरार।<br />
२ ). कन्या संतान का जन्म और पुत्र का अभाव।<br />
३ ). धन की बरकत न होना। <br />
४ ). घर में बीमारी बनी रहना। <br />
५ ). निसन्तान रहना।<br />
६ ). बच्चों के विवाह में अड़चन।<br />
७ ). कोई भी शुभ काम के बाद कोई अशुभ होना। जैसे झगड़ा , चोट लगना , आग लगना , मौत या मौत की खबर आदि कोई भी अशुभ समाचार मिलना।<br />
यदि उपरोक्त लक्षण घर में दिखाई देते जन्म कुंडली दिखा कर उचित उपचार से शांति पाई जा सकती है।<br />
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कई बार यह भी देखने में आया है कि जन्म कुंडली में कोई दोष नहीं होता है फिर भी जातक मुश्किलों में घिरा रहता है। तो इसके लिए उसे अपने परिवार की पृष्ठभूमि पर विचार करना चाहिए। क्या उनके परिवार में उनके पूर्वजों का विधिवत श्राद्ध किया जाता है। क्या उसके पूर्वजों को कहीं से मुफ्त का धन तो नहीं मिला।<br />
कुछ लोग श्राद्ध करने की बजाय मजबूरों को भोजन करवाना अधिक उचित समझते हैं। उनका तर्क होता है कि ब्राह्मणों की बजाय ये लोग ज्यादा आशीर्वाद देंगे। यह बात सही है कि किसी भी भूखे को भोजन करवाएंगे तो वह आशीर्वाद देगा ही। तो आशीर्वाद के लिए जरुर भोजन करवाएं। लेकिन श्राद्ध कर्म तो एक ब्राह्मण ही कर सकता है और तभी पूर्वजों का आशीर्वाद भी मिलेगा। यह श्राद्ध करने वाले को यह ध्यान रखना चाहिए कि वह सुपात्र को ही आमंत्रित करे। मंदिर का पुजारी हो तो अधिक उचित रहेगा नहीं तो कोई भी कर्मकांडी या जनेउ धारी ब्राह्मण होना चाहिए।<br />
मुफ्त का धन जिसे कोई निसन्तान व्यक्ति अपनी जायदाद विरासत में दे जाता है या ससुराल से मिला धन। मैं यहाँ उस धन की बात नहीं कर रही जो किसी स्त्री को उसके विवाह में मिला है। यहाँ मैं कहना चाहूंगी की यह वो धन है जो ससुराल में स्त्री के पिता की मृत्यु के बाद मिला है जबकि उसके भाई ना हो। ऐसी स्थिति में धन का उपभोग तो हो रहा है लेकिन जिसके धन का उपभोग हो रहा है उसके नाम का कोई भी दान -पुन्य नहीं किया जा रहा। <br />
हमारे समाज में वंश परम्परा चलती है इसी के सिलसिले में पुत्र का जन्म अनिवार्य माना गया है। अगर पुत्र ना हो तो उसकी विरासत पुत्रियों में बाँट दी जाती है। जैसे की समाज का चलन है तो विचार भी यही हैं कि अगर पुत्र नहीं होगा तो उसका कमाया धन लोग ही खायेंगे। उनका नाम लेने वाला कोई नहीं होगा , आदि -आदि। जब ऐसे इन्सान के धन का उपभोग किया जाये और उसके नाम को भी याद ना किया जाये तो घर में अशांति तो होगी ही। एक अशांत आत्मा किसी को खुश रहने का आशीर्वाद कैसे दे सकती है। ऐसी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध तो करना ही चाहिए। साथ ही वर्ष में एक बार उसके नाम का कोई दान कर देना चाहिए। जैसे किसी जरूरत मंद कन्या का विवाह , कहीं पानी की व्यवस्था , या किसी बच्चे की स्कूल की फीस आदि कुछ न कुछ धन राशि जरुर उसके नाम की निकालनी चाहिए।<br />
जब किसी को परिवार से ही जैसे ताऊ या चाचा जो कि या निसन्तान हो या अविवाहित हो। अथवा असमय अकाल मौत हुई हो और उनका कोई वारिस ना हो तो ऐसे धन का उपभोग भी परिवार में अशांति लाता है। अक्सर देखा गया है कि ऐसे धन को उपभोग वाले की सबसे छोटी संतान अधिक संताप भोगती है।<br />
'ऐसे में फिर क्या किया जाए ?'<br />
यहाँ भी जिसका भी धन उपभोग किया जा रहा है उसका विधिवत श्राद्ध और उसके नाम से कुछ धन राशी का दान किया जाये तो शांति बनी रह सकती है।<br />
कई बार परिवार के कुल देवता का अनादर भी परिवार में अशांति का कारण बनती है। ये जो कुल देवता या पितृ होते हैं , वे हमारे और ईश्वर के मध्य संदेशवाहक का कार्य हैं। यदि ये प्रसन्न होंगे तो ईश्वर की कृपा जल्दी प्राप्त होती है।<br />
कई बार कोई व्यक्ति किसी निसंतान दम्पति द्वारा गोद लिया जाता है। ऐसे में उसे , वह जिस परिवार में जन्मा है , उस परिवार के कुल देवताओं की पूजा भी करने पड़ती है। क्यूंकि उसमें उस परिवार का (जहाँ जन्म लिया है उसने ) भी ऋण चुकाना होता है। जहाँ वह रहता है वहां के कुल देवता की भी पूजा करनी होती है उसे। तभी उसके जीवन में शांति बनी रहती है।<br />
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://1.bp.blogspot.com/-IQBlW6AbyHQ/UjhZwyaXWoI/AAAAAAAAA4s/6IB8Xk0PpV4/s1600/img1130406028_2_1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="305" src="http://1.bp.blogspot.com/-IQBlW6AbyHQ/UjhZwyaXWoI/AAAAAAAAA4s/6IB8Xk0PpV4/s400/img1130406028_2_1.jpg" width="400" /></a></div>
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दोष हैं तो हल भी है :--<br />
१ ) . श्राद्ध कर के ब्राह्मण को वस्त्र -दक्षिणा आदि दीजिये।<br />
२ ). गाय की सेवा कीजिये। इसके लिए किसी भी मजबूर व्यक्ति की गाय के लिए साल भर के लिए चारे की व्यवस्था कीजिये।<br />
३ ). चिड़ियों को बाजरी के दाने डालिए।<br />
४ ). कोवों को रोटी।<br />
५ ). हर अमावस्या को मंदिर में सूखी रसोई और दूध का दान कीजिये।<br />
६ ). हर मौसम में जो भी नई सब्जी और फल हो उसे पहले अपने पितरों और कुल देवताओं के नाम मंदिर में दान दीजिये।<br />
७ ). हर अमावस्या को गाय को हरा चारा डलवायें।<br />
८ ) . किसी धार्मिक स्थल पर आम और पीपल का वृक्ष लगवा दे।<br />
९ ). तुलसी की सेवा।<br />
१०). अपने पूर्वजों के नाम पर जल की व्यवस्था करनी चाहिए।<br />
पितरो के निमित्त दूध देने की विधि :--- एक गिलास कच्चे दूध में चीनी मिला कर छान लीजिये। अब थोडा दूध एक कटोरी में डाल कर उसे अपनी हथेली से ढक कर विष्णु भगवान को स्मरण करते हुए कहिये , " विष्णु भगवान के लिए। " गिलास के बचे हुए दूध को भी हथेली से ढकते हुए कहिये , " सभी पितरों के लिए। " अब कटोरी के दूध को गिलास के दूध में मिला दीजिये। यह दूध पुजारी को पीने को दीजिये साथ ही श्रद्धा अनुसार दक्षिणा भी दीजिये।<br />
सुन्दर काण्ड , गीता और आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ भी पितृ दोष में शांति देता है।<br />
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ॐ शांति …।<br />
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nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-54311483093696808722013-08-15T22:15:00.002-07:002014-11-03T03:36:00.637-08:00शारीरिक हाव भाव और मानव का स्वभाव और प्रवृत्ति <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अक्सर कहा जाता है कि सच या झूठ इन्सान के चेहरे से नहीं पहचाना जा सकता है। किसी के चेहरे पर तो लिखा नहीं होता कि वह कैसा इन्सान है। लेकिन मशहूर ज्योतिष पवन सिन्हा के अनुसार हर इन्सान को थोड़ा ज्योतिष , थोड़ा आयुर्वेद और थोड़ा मनोविज्ञान तो आना ही चाहिए।<br />
मेरे विचार में ज्योतिष और आयुर्वेद का तो जब तक पूर्ण ज्ञान ना हो नहीं आजमाना चाहिए। कभी -कभी अधूरा ज्ञान ' नीम -हकीम ' खतरा -ए -जान ' वाली जाती है। जहाँ तक मनोविज्ञान की बात है , यह तो हर इंसान को थोडा बहुत समझना ही चाहिए। क्यूंकि हर इन्सान के हाव -भाव बोलते है। बात तो सिर्फ समझने की है। कभी फुर्सत मिले तो छत पर खड़े हो कर या खिड़की से या फिर घर के बाहर बैठ कर आते -जाते लोगों पर नज़र डालिए। हर इन्सान की चाल - ढाल , लोगों से बात करने का , देखने का तरीका अलग होगा। फोन पर आवाज़ सुन कर और लिखावट से भी इन्सान की पहचान हो सकती हैं।<br />
यहाँ मैं मेरे इस लेख में सिर्फ शारीरिक हाव -भाव से इन्सान का स्वभाव बताने की कोशिश करुँगी। लेकिन यहाँ मेरा किसी को आहत करने की मंशा नहीं है।<br />
सबसे पहले नमस्ते करने के अंदाज़ से जानते हैं के सामने वाले इन्सान की प्रवृति क्या है। सबसे पहले किसी से मिलेंगे तो अभिवादन ही करेंगे।<br />
1. अगर सामने वाला /वाली दूर से अपनी कुहनियों को मिलाते हुए हाथ जोड़ कर थोड़े से आगे की तरफ झुक कर और हाथ भी थोड़े बाहर की और निकलें हों और जबरन मुस्कुराते हुए आपकी तरफ आये तो जान लीजिये कि वह इन्सान बहुत राजनीति कुशल है। आप नेताओं को देख सकते हैं ऐसा करते हुए। अपना काम तो आपसे निकाल कर ही छोड़ेगा /छोड़ेगी। आप उसकी ही चले जायेंगे।<br />
2 . कोई आपसे आपके सामने खड़े हो कर दोनों हाथ जोड़ कर सीने के पास ले जा कर हलके से झुक कर नमस्ते करता /करती है तो वह इन्सान धार्मिक , थोडा डरपोक लेकिन मन का साफ होता /होती है।<br />
3 . अगर कोई अपने शरीर को कमर से झुका कर लम्बे हाथ जोड़ता ( कुहनियों को भी मिला कर ) तो जान जाइये की सामने वाला खुशामद पसंद है। आपको चने के झाड़ पर चढाता जायेगा आपकी तारीफें कर -कर के लेकिन दिल में उतनी ही बड़ी कैंची रखेगा /रखेगी आपके लिए। पीठ बुराई करने से भी नहीं चूकेगा।<br />
4 . अब कोई -कोई ना हाथ जोड़ता है ना ही मुहं से नमस्ते बोलता है सिर्फ सर को हल्का सा झुक कर या झटका दे कर नमस्ते जैसे होठ ही हिला देगा तो क्या वह घमंडी है ! नहीं ऐसा नहीं है। वह इन्सान दिल का अच्छा लेकिन संकोची होता /होती है।<br />
5. कई लोग दोनों हाथ जोड़ कर अपने सर तक ले जा कर नमस्ते करते हैं वे लोग छुपे रुस्तम होते हैं। यहाँ हम ढोंगी बाबाओं का उदाहरन दे सकते हैं।<br />
6. कुछ लोग दोनों हथेलियों को धप से बजाते हुए जोर से बोलते हुए नमस्ते बोलते हैं। वे अनगढ़ तरीके के होते हैं उनको नहीं पता होता कि किस से क्या बात कहनी है लेकिन मन के साफ होते हैं।<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://4.bp.blogspot.com/-cM08TPmBWD8/Ug21XK14H9I/AAAAAAAAA24/ZQKjmxh_2Ck/s1600/images+(2).jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://4.bp.blogspot.com/-cM08TPmBWD8/Ug21XK14H9I/AAAAAAAAA24/ZQKjmxh_2Ck/s640/images+(2).jpg" height="470" width="640" /></a></div>
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अब नमस्ते तो हो गया। इसके बाद हाथ भी मिलाते हैं कुछ लोग। सबका अपना अलग अंदाज़ और तरीका होता है। यहाँ भी इन्सान की प्रवृत्ति झलकती है।<br />
1 . जो लोग हाथ मिलाते तो हैं पर छोड़ते नहीं। कुछ देर तक थाम कर बातें करेंगे। वे लोग भावनात्मक रूप से कमजोर होते हैं। मन की कहना तो चाहते है लेकिन नहीं पाते। उनको एक दोस्त की तलाश होती है जिसे वह अपना हमराज़ लेकिन संदेह की आदत ऐसा करने नहीं देती।<br />
2 . कई लोग हाथ मिलाकर अपना दूसरा हाथ भी हाथ पर रख देतें है। ऐसे लोग बहुत आत्मीय किस्म के होते है। मिलनसार और दयालु भी होते हैं। चाहे कम बोले लेकिन आपको धोखा कभी नहीं देंगे।<br />
3 . कई लोग बहुत गर्मजोशी से हाथ मिलायेंगे और कई देर कर आपका हाथ हिला डालेंगे। ऐसे लोग बहुत खुशमिजाज होते है। खुद भी खुश रहते है दूसरों को भी खुश ही देखना चाहते हैं।<br />
4 . कुछ लोग जैसे हाथ को छू भर देंगे बस और आगे बढ़ कर बैठने का उपक्रम करेंगे। ऐसे लोग दुनियादारी से भरपूर होते है। ना काहू से दोस्ती और ना काहू से बैर वाली बात होती ऐसे लोगों में।<br />
5 . कुछ लोग हाथ आपसे मिलायेंगे देखेंगे दूसरी तरफ यानि एक साथ कई लोगों से मुलाक़ात के आकांक्षी होते हैं। ये लोग विश्वसनीय नहीं कहे जा सकते यानि राजनीति में पारंगत होते हैं।<br />
<br />
हाथ मिलाना भी हो गया। अब आपके पास बैठ कर बात चीत हो रही तो यह भी जानिए की बातों के करने के अंदाज़ से क्या प्रवृति झलकती है।अगर ज्यादा नहीं जान सकते हैं तो भी कुछ तो ऐसी हरकतें होती है जिनसे हम वाले बैठे इन्सान के मनोभावों को ताड़ सकते है।<br />
1. जैसे कोई नज़र मिला कर बात भी कर रहा/रही हो और झूठ भी बोल रहा हो तो ध्यान दीजिये कि जब वह बात कर रहा /रही हो तो अपना एक पैर जमीन घिसटते हुए अंदर ( कुर्सी या जहाँ भी वह बैठा /बैठी हो )की तरफ ले जायेगा।<br />
2.अक्सर हम सोचते हैं कि कोई इन्सान नज़र मिला बात नहीं करता तो वह झूठा ही होगा। लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता। वह इन्सान संकोची भी सकता है।<br />
साथ बैठा हुआ इन्सान बात करते हुए अगर दोनों हथेली रगड़ता है तो उसके मन में कुछ और चल रहा होता है।<br />
3. अगर कोई बात करते हुए चीज़ पेपर वेट या पेन आदि कोई अन्य वस्तु अपने हाथ में ले कर आपसे बात करता है तो वह आपसे लम्बे समय तक रिश्ता रखना चाहता है।<br />
4.अब आखिर में एक बात और विशेषकर महिलाओं के लिए , अगर आप किसी से मिलने जाते हैं और सामने बैठा आपका मित्र ही अपना हाथ घुटनों से उपर की तरफ लेजाता है तो वह आपसे मित्रता से अधिक शारीरिक सम्पर्क रखने में ज्यादा रूचि रखता है।<br />
यह मेरा अपना बहुत ही बारीक और सामान्य विश्लेष्ण है लेकिन हम अगर जान पायें तो सावधानी रख सकते हैं और इन्सान की पहचान भी कर सकते हैं।<br />
( ॐ शांति )<br />
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nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-18856017751698358062013-05-25T20:51:00.002-07:002021-04-06T07:59:46.524-07:00महिलाएँ और उनको प्रभावित करते नव -ग्रह <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
वैसे तो सौर - मंडल के सभी ग्रह धरती पर सभी प्राणियों पर एक जैसा ही प्रभाव डालते हैं। लेकिन सभी प्राणियों का रहन -सहन और प्रवृत्ति या प्रकृत्ति एक दूसरे से भिन्न होती है इसलिए ग्रहों का प्रभाव कुछ कम -ज्यादा तो होता ही है।<br>
यहाँ मैं सिर्फ महिलाओं पर सभी ग्रहों का प्रभाव का ही जिक्र करुँगी। क्यूंकि कई बार महिलाएं असामान्य व्यवहार करती है तो उन्हें बहुत झेलना पड़ता है कि उसे किसी ने कुछ सिखा दिया है या बहाने बना रही है जबकि कई बार ग्रहों की अच्छी ( उग्र ) या बुरी ( कुपित ) स्थिति भी कारण होती है।<br>
मेरा यह सामान्य सा विश्लेष्ण ही है। जन्म -कुंडली में विभिन्न ग्रहों के साथ युति का अलग -अलग प्रभाव हो सकता है।<br>
<span style="color: red;">सूर्य</span><br>
सूर्य एक उष्ण और सतोगुणी ग्रह है ,यह आत्मा और पिता का करक हो कर राज योग भी देता है।<br>
अगर जन्म कुंडली में यह अच्छी स्थिति में हो तो इंसान को स्फूर्तिवान ,प्रभावशाली व्यक्तित्व महत्वाकांक्षी और उदार बनता है।<br>
परन्तु निर्बल सूर्य या दूषित होने पर इंसान चिडचिडा ,क्रोधी ,घमंडी ,आक्रामक और अविश्वसनीय बना देता है।<br>
अगर किसी महिला कि कुंडली में सूर्य अच्छा हो तो वह हमेशा अग्रणी ही रहती है और निष्पक्ष न्याय में विश्वास करती है चाहे वो शिक्षित हो या नहीं पर अपनी बुद्धिमता का परिचय देती है।<br>
परन्तु जब यही सूर्य उसकी कुंडली में नीच का हो या दूषित हो जाये तो महिला अपने दिल पर एक बोझ सा लिए फिरती है अन्दर से कभी भी खुश नहीं रहती और आस -पास का माहौल भी तनाव पूर्ण बनाये रखती है।जो घटना अभी घटी ही ना हो उसके लिए पहले ही परेशान हो कर दूसरों को भी परेशान किये रहती है।<br>
बात -बात पर शिकायतें ,उलाहने उसकी जुबान पर तो रहते ही है ,धीरे -धीरे दिल पर बोझ लिए वह एक दिन रक्त चाप की मरीज बन जाती है और ना केवल वह बल्कि उसके साथ रहने वाले भी इस बीमारी के शिकार हो जाते है।<br>
दूषित सूर्य वाली महिलायें अपनी ही मर्ज़ी से दुनिया को चलाने में यकीन रखती है सिर्फ अपने नजरिये को ही सही मानती है दूसरा चाहे कितना ही सही हो उसे विश्वास नहीं होगा।<br>
सूर्य का आत्मा से सीधा सम्बन्ध होने के कारण यह अगर दूषित या नीच का हो तो दिल डूबा -डूबा सा रहता है जिस कारण चेहरा निस्तेज सा होने लगता है।<br>
अगर यह सब किसी महिला में लक्षण हो तो उसे अपनी जन्म कुंडली को एक अच्छे ज्योतिषी को दिखाना चाहिए क्यूँ की महिला ही तो परिवार की धुरी होती है और वही संतुष्ट नहीं हो तो परिवार में शांति कहाँ से होगी ..!<br>
सूर्य को जल देना ,सुबह उगते हुए सूर्य को कम से कम पंद्रह -मिनिट देखते हुए गायत्री मन्त्र का जाप ,आदित्य -ह्रदय का पाठ और अधिक परेशानी हो तो रविवार कर व्रत भी किया जा सकता है बिना नमक खा कर और कोई व्रत ना रख सके वह उस दिन नमक ना खाए या सूरज ढलने के बाद नमक ना खाएं .<br>
संतरी रंग (उगते हुए सूरज )का प्रयोग अधिक करें .<br>
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<span style="color: red;">चंद्रमा</span><br>
किसी भी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। स्त्री की कुंडली में इसका महत्व और भी अधिक है।</div>
चन्द्र राशि से स्त्री का स्वभाव ,प्रकृति ,गुण -अवगुण आदि निर्धारित होते है।<br>
चंद्रमा माता ,मन ,मस्तिष्क ,बुद्धिमता ,स्वभाव ,जननेन्द्रियों ,प्रजनन सम्बन्धी रोगों,गर्भाशय अंडाशय ,मूत्र -संस्थान छाती और स्तन कारक है .इसके साथ ही स्त्री के मासिक -धर्म ,गर्भाधान एवं प्रजनन आदि महत्वपूर्ण क्षेत्र भी इसके अधिकार क्षेत्र में आते है।<br>
चंद्रमा मन का कारक है ,इसका निर्बल और दूषित होना मन एवं मति को भ्रमित कर किसी भी इंसान को पागल तक बना सकता है।<br>
कुंडली में चंद्रमा की कैसी स्थिति होगी यह किसी भी महिला के आचार -व्यवहार से जाना जा सकता है।<br>
अच्छे चंद्रमा की स्थिति में कोई भी महिला खुश -मिजाज़ होती है। चेहरे पर चंद्रमा की तरह ही उजाला होता है।यहाँ गोरे रंग की बात नहीं की गयी है क्यूँ कि चंद्रमा की विभिन्न ग्रहों के साथ युति का अलग -अलग प्रभाव हो सकता है।<br>
कुंडली का अच्छा चंद्रमा किसी भी महिला को सुहृदय ,कल्पनाशील और एक सटीक विचार धारा युक्त करता है।<br>
अच्छा चन्द्र महिला को धार्मिक और जनसेवी भी बनाता है।<br>
लेकिन किसी महिला की कुंडली मे यही चन्द्र नीच का हो जाये या किसी पापी ग्रह के साथ या अमावस्या का जन्म को या फिर क्षीण हो तो महिला सदैव भ्रमित ही रहेगी . हर पल एक भय सा सताता रहेगा या उसको लगता रहेगा कोई उसका पीछा कर रहा है या कोई भूत -प्रेत का साया उसको परेशान कर रहा है। कमजोर या नीच का चन्द्र किसी भी महिला को भीड़ भरे स्थानों से दूर रहने को उकसाएगा और एकांतवासी कर देता है धीरे -धीरे।<br>
महिला को एक चिंता सी सताती रहती है जैसे कोई अनहोनी होने वाली है। बात -बात पर रोना या हिस्टीरिया जैसी बीमारी से भी ग्रसित हो सकती है। बहुत चुप रहने लगती या बहुत ज्यादा बोलना शुरू कर देती है।ऐसे में तो ना केवल घर -परिवार और आस पास का माहौल ख़राब होता ही है निस्संदेह रूप से क्यूँ कि वह हर किसी को संदेह कि नज़रों से देखती है ,<br>
बार -बार हाथ धोना ,अपने बिस्तर पर किसी को हाथ नहीं लगाने देना और कई -कई देर तक नहाना भी कमजोर चन्द्र कि निशानी है।<br>
ऐसे में जन्म -कुंडली का अच्छे से विश्लेष्ण करवाकर उपाय करवाना चाहिए।<br>
अगर किसी महिला के पास कुंडली नहीं हो तो ये सामान्य उपाय किये जा सकते है ,जैसे शिव आराधना ,अच्छा मधुर संगीत सुने,कमरे में अँधेरा ना रखे ,हलके रंगों का प्रयोग करें।<br>
पानी में केवड़े का एसेंस डाल कर पियें .सोमवार को एक गिलास ढूध और एक मुट्ठी चावल का दान मंदिर में दे ,और घर में बड़ी उम्र की महिलाओं के रोज़ चरण -स्पर्श करते हुए उनका आशीर्वाद अवश्य लें।<br>
अगर हो सके चांदी के गिलास में पानी और ढूध पियें, छोटी वाली ऊँगली में चांदी का गोल छल्ला पहने (पर यह तब करना है जब कुंडली दिखाई गयी हो और उसमे बताया हो ).<br>
छोटे बच्चों के साथ बैठने से भी चंदमा अनुकूल होता है।<br>
और सबसे बड़ी बात है दृढ -निश्चय , यह ही किसी इंसान को भ्रम कि स्थिति से बाहर निकल सकती है<br>
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<span style="color: red;"> मंगल</span></div>
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ग्रहों का सेनापति मंगल ,अग्नितत्व प्रधान तेजस ग्रह है।इसका रंग लाल और ये रक्त -संबंधो का प्रतिनिधित्व करता है। जिस किसी भी स्त्री की जन्म कुंडली में मंगल शुभ और मजबूत स्थिति में होता है उसे वह प्रबल राज योग प्रदान करता है। शुभ मंगल से स्त्री अनुशासित , न्यायप्रिय ,समाज में प्रिय और सम्मानित होती है।<br>
जब मंगल ग्रह का पापी और क्रूर ग्रहों का साथ हो जाता है तो स्त्री को मान -मर्यादा भूलने वाली ,क्रूर और ह्रदय हीन भी बना देता है।<br>
क्यूँ कि मंगल रक्त और स्वभाव में उत्तेजना ,उग्रता और आक्रमकता लाता है इसीलिए जन्म -कुंडली में विवाह से संबंधित भावों --जैसे द्वादश ,लग्न ,द्वितीय ,चतुर्थ ,सप्तम व अष्टम भाव में मंगल कि स्थिति को विवाह और दांपत्य जीवन के लिए अशुभ माना जाता है। ऐसी कन्या मांगलिक कहलाती है।<br>
मेरे विचार में मांगलिक होना कोई भयावह बात नहीं है क्यूँ की अच्छे औरशुभ मंगल से कोई भी स्त्री की सोच ऊँची और वह उच्च पद तक पहुँचती है और जहाँ तक विवाह का सवाल है वह जन्म कुंडली मिला कर ही करना चाहिए .<br>
लेकिन जिन स्त्रियों की जन्म कुंडली में मंगल कमजोर स्थिति में हो तो वह आलसी और बुझदिल होती है थोड़ी सी डरपोक भी होती है .<br>
मन ही मन सोचती है पर प्रकट रूप से कह नहीं पाती और मानसिक अवसाद में घिरती चली जाती है।कमजोर मंगल वाली स्त्रियाँ हाथ में लाल रंग का धागा बांध कर रखे और भोजन करने के बाद थोडा सा गुड जरुर खा लें। ताम्बे के गिलास में पानी पियें और अनामिका में ताम्बे का छल्ला पहन ले और एक अच्छे ज्योतिष को दिखा कर उसकी सलाह पर अगर जरुरी हो तो मूंगा धारण करें।<br>
जिन स्त्रियों की जन्म कुंडली में मंगल उग्र स्थिति में होता है उनको लाल रंग कम धारण करना चाहिए और मसूर की दाल का दान करना चाहिए। रक्त -सम्बन्धियों का सम्मान करना चाहिए जैसे बुआ ,मौसी बहन ,भाई और अगर शादी शुदा है तो पति के रक्त सम्बन्धियों का भी सम्मान करें .<br>
हनुमान जी की शरण में रहना कैसे भी मंगल दोष को शांत रखता है।<br>
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<span style="color: red;">बुध </span><br>
बुध ग्रह एक शुभ और रजोगुणी प्रवृत्ति का है।यह किसी भी स्त्री में बुद्धि ,निपुणता ,वाणी .वाक्शक्ति ,व्यापार ,विद्या में बुद्धि का उपयोग तथा मातुल पक्ष का नैसर्गिक करक है। यह द्विस्वभाव ,अस्थिर और नपुंसक ग्रह होने के साथ - साथ शुभ होते हुए भी जिस ग्रह के साथ स्थित होता है ,उसी प्रकार के फल देने लगता है। अगर शुभ ग्रह के साथ हो तो शुभ ,अशुभ ग्रह के अशुभ प्रभाव देता है।<br>
अगर यह पाप ग्रहों के दुष्प्रभाव में हो तो स्त्री कटु भाषी , अपनी बुद्धि से काम न लेने वाली यानि दूसरों की बातों में आने वाली या हम कह सकते हैं के कानो की कच्ची ...!, जो घटना घटित भी ना हुई उसके लिए पहले से ही चिंता करने वाली और चर्मरोगों से ग्रसित हो जाती है।<br>
क्यूँ की बुध बुद्धि का परिचायक भी है अगर यह दूषित चंद्रमा के प्रभाव में आ जाता है तो स्त्री को आत्मघाती कदम की तरफ भी ले जा सकता है।<br>
यहाँ मैं यह स्पष्ट कर देना चाहती हूँ ,यहाँ मेरा किसी भी महिला पर दोषारोपण करने का प्रयास नहीं है बल्कि मैंने बहुत सी महिलाओं में यह प्रवृत्ति देखी और उनको घुटते देखा है। वे कहती है कि उनके मन में कुछ नहीं होता फिर भी वो बोले बिना नहीं रहती और फिर बोलते ही विवाद हो जाता है। तो यहाँ दूषित बुध का ही परिणाम होता है।<br>
यह सूर्य के साथ हो कर भी अस्त नहीं होता। और बुध -आदित्य योग का निर्माण करता है।<br>
जिस किसी भी स्त्री का बुध शुभ प्रभाव में होता है वे अपनी वाणी के द्वारा जीवन की सभी उच्चाईयों को छूती है ,अत्यंत बुद्धिमान ,विद्वान् और चतुर और एक अच्छी सलाहकार साबित होती है।व्यापार में भी अग्रणी तथा कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सम्स्याओं का हल निकल लेती है।<br>
यह एक सामान्य विश्लेष्ण है ,बुध ग्रह के शुभ- अशुभ प्रभाव का। जन्म-कुंडली के अलग- अलग भावों और अलग - अलग ग्रहों के साथ होने पर इसका प्रभाव कम या ज्यादा भी हो सकता है। अगर जन्म कुंडली है तो उसका एक अच्छे ज्योतिष से विश्लेष्ण करवा कर उपाय करवा लेना चाहिए। अगर जरुरी हो तो 'पन्ना' रत्न छोटी वाली ऊँगली में पहना जा सकता है। गणेश जी और दुर्गा माँ की आराधना करनी चाहिए।<br>
हरे मूंग ( साबुत ), हरी पत्तेदार सब्जी का सेवन और दान ,हरे वस्त्र को धारण और दान देना भी उपुयक्त रहेगा। तांबे के गिलास में जल पीना चाहिए। अगर कुंडली ना हो और मानसिक अवसाद ज्यादा रहता हो तो सफ़ेद और हरे रंग के धागे को आपस में मिला कर अपनी कलाई में बाँध लेना चाहिए।<br>
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<span style="color: red;"> वृहस्पति</span></div>
<div>
वृहस्पति एक शुभ और सतोगुणी ग्रह है। क्यूँ कि यह आकर में सबसे बड़ा है , अन्य ग्रहों से , इसलिए इसे गुरु की संज्ञा भी दी गयी है और वृहस्पति देवताओं के गुरु भी थे।<br>
वृहस्पति बुद्धि ,विद्वता ,ज्ञान ,सदगुणों ,सत्यता ,सच्चरित्रता ,नैतिकता ,श्रद्धा ,समृद्धि ,सम्मान .दया एवं न्याय का नैसर्गिक कारक होता है। किसी भी स्त्री के लिए यह पति ,दाम्पत्य ,पुत्र और घर -गृहस्थी का कारक होता है।<br>
अशुभ ग्रहों के साथ या दूषित वृहस्पति स्त्री को स्वार्थी , लोभी और क्रूर विचार धारा की बना देता है।दाम्पत्य-जीवन भी दुखी होता है और पुत्र-संतान की भी कमी होती है। पेट और आँतों से सम्बन्धित रोग भी पीड़ा दे सकते है।<br>
जन्म- कुंडली में शुभ वृहस्पति किसी भी स्त्री को धार्मिक ,न्याय प्रिय और ज्ञान वान पति -प्रिय और उत्तम संतान वती बनाता है। स्त्री विद्वान होने के साथ -साथ बेहद विनम्र भी होती है।<br>
मैंने बहुत बार यह भी देखा है, यह कुंडली में शुभ होते हुए भी उग्र रूप धारण कर लेता है तो स्त्री में विनम्रता की जगह अहंकार भर जाता है। वह अपने सामने ,किसी और को तुच्छ समझती है क्यूँ की वृहस्पति के कारन ज्ञान की सीमा ही नहीं होती ,वह सिर्फ अपनी ही बात पर विश्वास करती है।<br>
अपने इसी व्यवहार के कारण वह घर और आस-पास के वातावरण से कटने भी लग जाती है और धीरे- धीरे अवसाद की और घिरने लग जाती है क्यूँ की उसे खुद ही मालूम नहीं होता की उसके साथ ऐसा क्यूँ हो रहा है वह तो आपकी बात ही तो रख रही होती है। और यही अहंकार उसमे में मोटापे का कारक भी बन जाता है। वैसे तो अन्य ग्रहों के कारण भी मोटापा आता है पर वृहस्पति जन्य मोटापा अलग से पहचान आता है यह शरीर में थुल थूला पन अधिक लाता है।क्यूँ की वृहस्पति शरीर में मेद कारक भी है तो मोटापा आना स्वाभाविक ही है।<br>
अगर ऐसा किसी स्त्री के साथ हो तो वह सबसे पहले अपनी जन्म -कुंडली का किसी अच्छे ज्योतिषी से विश्लेष्ण करवा लें।<br>
कमजोर वृहस्पति हो तो पुखराज रत्न धारण किया जा सकता है पर किसी ज्योतिषी की राय ले कर ही। गुरुवार का व्रत रखा जा सकता है। सोने का धारण,पीले रंग का धारण औरपीले भोजन सेवन किया जा सकता है। एक चपाती पर एक चुटकी हल्दी लगाकर खाने से भी वृहस्पति अनुकूल हो सकता है।<br>
उग्र वृहस्पति को शांत करने के लिए वृहस्पति वार का व्रत करना , पीले रंग और पीले रंग के भोजन से परहेज करना चाहिए बल्कि उसका दान करना चाहिए ,केले के वृक्ष की पूजा करनी चाहिए और विष्णु -भगवान् को केले अर्पण करना चाहिए। और छोटे बच्चों ,मंदिर में केले का दान और गाय को केला खिलाना चाहिए।<br>
अगर दाम्पत्य जीवन कष्मय हो तो हर वृहस्पति वार को एक चपाती पर आटे की लोई में थोड़ी सी हल्दी ,देशी घी और चने की दाल ( सभी एक चुटकी मात्र ही ) रख कर गाय को खिलाये।<br>
कई बार पति-पत्नी अगल -अलग जगह नौकरी करते हैं और चाह कर भी एक जगह नहीं रह पाते तो पति -पत्नी दोनों को ही गुरुवार को चपाती पर गुड की डली रख कर गाय को खिलाना चाहिए ।<br>
और सबसे बड़ी बात यह के झूठ से जितना परहेज किया जाय ,बुजुर्गों और अपने गुरु ,शिक्षकों के प्रति जितना सम्मान किया जायेगा उतना ही वृहस्पति अनुकूल होता जायेगा।<br>
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शुक्र<br>
शुक्र एक शुभ एवं रजोगुणी ग्रह है।यह विवाह , वैवाहिक जीवन , प्यार , रोमांस , जीवन साथी तथा यौन सम्बन्धों का नैसर्गिक कारक है। यह सौंदर्य , जीवन का सुख , वाहन , सुगंध और सौन्दर्य प्रसाधन का कारक भी है।<br>
किसी भी स्त्री की कुंडली में जैसे वृहस्पति ग्रह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है , वैसे ही शुक्र भी दाम्पत्य जीवन में प्रमुख भूमिका निभाता है।<br>
कुंडली का अच्छा शुक्र चेहरा देखने से ही प्रतीत हो जाता है। यह स्त्री के चेहरे को आकर्षण का केंद्र बनाता है। यहाँ यह जरुरी नहीं की स्त्री का रंग गोरा है या सांवला। सुन्दर -नेत्र और सुंदर केशराशि से पहचाना जा सकता है स्त्री का शुक्र शुभ ग्रहों के सानिध्य में है। वह सोंदर्य -प्रिय भी होती है।<br>
अच्छे शुक्र के प्रभाव से स्त्री को हर सुख सुविधा प्राप्त होती है। वाहन , घर , ज्वेलरी , वस्त्र सभी उच्च कोटि के। किसी भी वर्ग की औरत हो , उच्च , मध्यम या निम्न उसे अच्छा शुक्र सभी वैभव प्रदान करता ही है। यहाँ यह कहना भी जरुरी है अगर आय के साधन सीमित भी हो तो भी वह ऐशो आराम से ही रहती है।<br>
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अच्छा शुक्र किसी भी स्त्री को गायन , अभिनय ,काव्य -लेखन की और प्रेरित करता है। चन्द्र के साथ शुक्र हो तो स्त्री भावुक होती है। और अगर साथ में बुध का साथ भी मिल जाये तो स्त्री लेखन के क्षेत्र में पारंगत होती है और साथ ही में वाक् पटु भी , बातों में उससे शायद ही कोई जीत पाता हो।<br>
अच्छा शुक्र स्त्री में मोटापा भी देता है।जहाँ वृहस्पति स्त्री को थुलथुला मोटापा दे कर अनाकर्षक बनता है वही शुक्र से आने वाला मोटापा स्त्री को और भी सुन्दर दिखाता है।यहाँ हम शुभा मुदगल और किरन खेर , फरीदा जलाल का उदाहरण दे सकते हैं।<br>
कुंडली का बुरा शुक्र या पापी ग्रहों का सानिध्य या कुंडली के दूषित भावों का साथ स्त्री में चारित्रिक दोष भी उत्पन्न करवा सकता है।यह विलम्ब से विवाह , कष्ट प्रद दाम्पत्य जीवन , बहु विवाह , तलाक की और भी इशारा करता है। अगर ऐसा हो तो स्त्री को हीरा पहनने से परहेज़ करना चाहिए।<br>
कमज़ोर शुक्र स्त्री में मधुमेह , थाइराईड , यौन रोग , अवसाद और वैभव हीनता लाता है।<br>
शुक्र को अनुकूल करने के लिए शुक्रवार का व्रत और माँ लक्ष्मी जी की आराधना करनी चाहिए। चावल , दही , कपूर , सफ़ेद -वस्त्र , सफ़ेद पुष्प का दान देना अनुकूल रहता है। छोटी कन्याओं को चावल की इलाइची डाल कर खीर भी खिलानी चाहिए।<br>
कनक - धारा , श्री सूक्त , लक्ष्मी स्त्रोत , लक्ष्मी चालीसा का पाठ और लक्ष्मी मन्त्रों का जाप भी सुकर को बलवान करता है।माँ लक्ष्मी को गुलाब का इत्र अर्पण करना विशेष फलदायी है। हीरा भी धारण किया जा सकता है पर किसी अच्छे ज्योतिषी से कुंडली का विश्लेष्ण करवाने के बाद ही।<br>
जन्म -कुंडली के अलग -अलग भावों और ग्रहों के साथ शुक्र के प्रभाव में अंतर आ सकता है।यह मेरा एक सामान्य विश्लेष्ण ही है।<br>
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<span style="color: red;">शनि</span><br>
शनि ग्रह तमोगुणी और पाप प्रवृत्ति का है। यह सबसे धीमा चलने वाला , शीतल , निस्तेज , शुष्क , उदास और शिथिल ग्रह है। इसे वृद्ध ग्रह माना गया है। इसलिए इसे दीर्घायु प्रदायक या आयुष्कारक ग्रह कहा गया है।<br>
यह कुंडली में कान , दांत , अस्थियों , स्नायु , चर्म ,शरीर में लोह तत्व व वायु तत्व , आयु , जीवन , मृत्यु , जीवन शक्ति , उदारता , विपत्ति , भूमिगत साधनों और अंग्रेजी शिक्षा का कारक है।</div>
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किसी भी स्त्री की कुंडली में अच्छा शनि उसे उदार , लोकप्रिय बनता है और तकनीकी ज्ञान में अग्रणी रखता है। वह हर क्षेत्र में अग्रणी हो कर प्रतिनिधित्व करती है। राजनीति में भी उच्च पद प्राप्त करती है।<br>
दूषित शनि विवाह में विलम्ब कारक भी है। और निम्न स्तर का जीवन साथी की प्राप्ति की ओर भी संकेत करता है।<br>
दूषित शनि स्त्री को ईर्ष्यालु और हिंसक भी बना देता है।यह स्त्री में निराशा ,उदासीनता और नीरसता का समावेश कर उसके दाम्पत्य जीवन को कष्टमय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता। और धीरे - धीरे स्त्री अवसाद की तरफ बढ़ने लग जाती है।<br>
स्त्रियों में कमर -दर्द , घुटनों का दर्द या किसी भी तरह का मांसपेशियों का दर्द दूषित शनि का ही परिणाम है। चंदमा के साथ शनि स्त्री को पागलपन का रोग तक दे सकता है। इसके लिए स्त्री को काले रंग का परहेज़ और अधिक से अधिक हलके और श्वेत रंगों का प्रयोग करना चाहिए।<br>
शनि को अनुकूल बनाने के लिए स्त्री को ना केवल अपने परिवार के ही बल्कि सभी वृद्ध जनो का सम्मान करना चाहिए। अपने अधीनस्थ कर्मचारियों और सेवकों के प्रति स्नेह और उनके हक़ और हितों की रक्षा भी करें। देश के प्रति सम्मान की भावना रखे। शनि ईमानदारी और सच्चाई से प्रसन्न रहता है।<br>
क्यूंकि शनि को न्यायाधीश भी माना गया है तो यह अपनी दशा -अंतर दशा में अपना सुफल या कुफल जरुर देता है कर्मो के अनुसार।<br>
शनि अगर प्रतिकूल फल दे रहा हो तो हनुमान जी की आराधना करनी चाहिए। मंगलवार को चमेली के तेल का दीपक हनुमान जी के आगे करना चाहिए। शनि चालिसा , हनुमान चालीसा का पाठ विशेष लाभ देगा। अगर शनि के कारण हृदय रोग परेशान करता हो तो सूर्य को जल और आदित्य -ह्रदय स्त्रोत का पाठ लाभ देगा और अगर मानसिक रोग के साथ सर्वाइकल का दर्द हो तो शिव आराधना विशेष लाभ देगी। काले और गहरे नीले रंग का परित्याग शनि को अनुकूल बना सकता है।<br>
नीलम का धारण भी शनि को अनुकूल बनता है पर किसी अच्छे ज्योतिषी से पूछ कर ही।<br>
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<span style="color: red;">राहु</span><br>
राहु एक तमोगुणी मलेच्छ और छाया ग्रह माना गया है। इसका प्रभाव शनि की भांति ही होता है।<br>
यह तीक्ष्ण बुद्धि , वाक्पटुता , आत्मकेंद्रिता ,स्वार्थ , विघटन और अलगाव , रहस्य मति भ्रम , आलस्य छल - कपट ( राजनीति ) , तस्करी ( चोरी ), अचानक घटित होने वाली घटनाओं , जुआ और झूठ का कारक है।<br>
राहू से प्रभावित स्त्री एक अच्छी जासूस या वकील , अच्छी राजनीतीज्ञ हो सकती है। वह आने वाली बात को पहले ही भांप लेती है। विदेश यात्राएं बहुत करती है।<br>
कुंडली में राहू जिस राशि में स्थित होता है वैसे ही परिणाम देने लगता है। अगर वृहस्पति के साथ या उसकी राशि में हो तो स्त्री को ज्योतिष में रूचि होगी। शनि के प्रभाव में तो तांत्रिक - विद्या में निपुण होगी।चंद्रमा के साथ हो तो वह कई सारे वहमो में उलझी रहेगी , जैसे उसे कुछ दिखाई दे रहा है ( भूत-प्रेत आदि )...., या भयभीत रहती है। अगर वह ऐसा कहती है तो गलत नहीं कह रही होती क्यूंकि अगर स्त्री के लग्न में राहू हो या राहू की दशा -अन्तर्दशा में ऐसी भ्रम की स्थिति हो जाया करती है।<br>
जब हमारे देश की कुंडली में राहू की दशा थी तब देश में भी भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुयी थी जैसे गणेश जी का दूध पीना , समुन्दर का पानी मीठा हो जाना ....आदि -आदि।<br>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://4.bp.blogspot.com/-S78OuHkhYts/UaGGljuI9iI/AAAAAAAAAvU/C3VQ21EEzAM/s1600/images+(2).jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="400" src="https://4.bp.blogspot.com/-S78OuHkhYts/UaGGljuI9iI/AAAAAAAAAvU/C3VQ21EEzAM/s400/images+(2).jpg" width="400"></a></div>
ऐसे में स्त्री पर आक्षेप लगाने से बेहतर होगा के उसकी कुंडली दिखा कर सही उपचार किया जाय।अगर कुंडली ना हो तो शिव जी शरण में जाना चाहिए। मोती भी धारण किया जा सकता है पर सही ज्योतिषी की राय लेकर ही।<br>
राहु से प्रभावित स्त्री की वाणी में कटुता आ जाती है।वह थोड़ी घमंडी भी हो जाया करती है।। भ्रमित रहने के कारण वह कई बार सही गलत की पहचान भी नहीं कर पाती। जिसके फलस्वरूप उसका दाम्पत्य जीवन भी नष्ट होते देखा गया है। राहु के दूषित प्रभाव के कारण स्त्री में चर्म -रोग ,मति -भ्रम , अवसाद रोग से ग्रस्त हो सकती है।<br>
राहु को शांत करने के लिए दुर्गा माँ की आराधना करनी चाहिए। खुल कर हँसना चाहिए। मलिन और फटे वस्त्र नहीं पहनना चाहिए। गहरे नीले रंग से परहेज़ करना चाहिए। काले रंग की गाय की सेवा करनी चाहिए।मधुर संगीत सुनना चाहिए।रामरक्षा स्त्रोत का पाठ भी लाभ दायक रहेगा।<br>
इसकी शांति के लिए गोमेद रत्न धारण किया जा सकता है लेकिन किसी अच्छे ज्योतिषी की राय ले कर ही।</div>
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<span style="color: red;">केतु</span><br>
केतु ग्रह उष्ण ,तमोगुणी पाप ग्रह है।केतु का अर्थ ध्वजा भी होता है किसी स्वग्रही ग्रह के साथ यह हो तो उस ग्रह का फल चौगुना कर देता है।यह नाना , ज्वर , घाव , दर्द , भूत -प्रेत , आंतो के रोग , बहरापन और हकलाने का कारक है। यह मोक्ष का कारक भी माना जाता है।</div>
केतु मंगल की भांति कार्य करता है। यदि दोनों की युति हो तो मंगल का प्रभाव दुगुना हो जाता है।यदि केतु शनि के साथ हो तो यहाँ शनि-मंगल की युति के सामान ही मानी जाती है।<br>
राहू की भांति केतु भी छाया ग्रह है इसलिए इसका अपना कोई फल नहीं होता है।जिस राशि में या जिस ग्रह के साथ युति करता है वैसा ही फल देता है।<br>
केतु से प्रभावित महिला कुछ भ्रमित सी रहती है। शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता नहीं होती क्यूँ कि यह ग्रह मात्र धड़ का ही प्रतीक होता है और राहू इस देह का कटा सर होता है।<br>
अच्छा केतु महिला को उच्च पद , समाज में सम्मानित , तंत्र-मन्त्र और ज्योतिष का ज्ञाता बनाता है। बुरा केतु महिला की बुद्धि भ्रमित कर के उसे सही समय निर्णय लेने में बाधित करता है। चर्म रोग से ग्रसित कर देता है। काम-वासना की अधिकता भी कर देता है जिसके फलस्वरूप कई बार दाम्पत्य -जीवन कष्टमय हो जाता है। वाणी भी कटु कर देता है।<br>
केतु का प्रभाव अलग - अलग ग्रहों के साथ युति और अलग-अलग भावों में स्थिति होने के कारण इसका प्रभाव ज्यादा या कम हो सकता है। इसके लिए किसी अच्छे ज्योतिषी से कुंडली का विश्लेषण करवाकर ही उपाय करवाना चाहिए।<br>
केतु के लिए लहसुनिया नग उपयुक्त माना गया है।मंगल वार का व्रत और हनुमान जी की आराधना विशेष फलदायी होती है।गणेश चालीसा का पाठ भी विशेष फलदायी हो सकता है।<br>
चिड़ियों को बाजरी के दाने खिलाना और भूरे-चितकबरे वस्त्र का दान तथा इन्हीं रंगों के पशुओं की सेवा करना उचित रहेगा।<br>
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--© उपासना सियाग</div><div>अबोहर </div><div>8264901089<br>
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nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-42866938202387475142013-05-25T07:49:00.003-07:002015-05-17T03:26:58.851-07:00महिलाएँ और केतु ग्रह <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
केतु ग्रह उष्ण ,तमोगुणी पाप ग्रह है।केतु का अर्थ ध्वजा भी होता है किसी स्वग्रही ग्रह के साथ यह हो तो उस ग्रह का फल चौगुना कर देता है।यह नाना , ज्वर , घाव , दर्द , भूत -प्रेत , आंतो के रोग , बहरापन और हकलाने का कारक है। यह मोक्ष का कारक भी माना जाता है।<br />
केतु मंगल की भांति कार्य करता है। यदि दोनों की युति हो तो मंगल का प्रभाव दुगुना हो जाता है।यदि केतु शनि के साथ हो तो यहाँ शनि-मंगल की युति के सामान ही मानी जाती है।<br />
राहू की भांति केतु भी छाया ग्रह है इसलिए इसका अपना कोई फल नहीं होता है।जिस राशि में या जिस ग्रह के साथ युति करता है वैसा ही फल देता है।<br />
केतु से प्रभावित महिला कुछ भ्रमित सी रहती है। शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता नहीं होती क्यूँ कि यह ग्रह मात्र धड़ का ही प्रतीक होता है और राहू इस देह का कटा सर होता है।<br />
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<a href="http://3.bp.blogspot.com/-ixOorwXBXc8/UaDPbFTgNGI/AAAAAAAAAvE/u9tNdr3XnQE/s1600/ketu.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="640" src="http://3.bp.blogspot.com/-ixOorwXBXc8/UaDPbFTgNGI/AAAAAAAAAvE/u9tNdr3XnQE/s640/ketu.jpg" width="368" /></a></div>
अच्छा केतु महिला को उच्च पद , समाज में सम्मानित , तंत्र-मन्त्र और ज्योतिष का ज्ञाता बनाता है। बुरा केतु महिला की बुद्धि भ्रमित कर के उसे सही समय निर्णय लेने में बाधित करता है। चर्म रोग से ग्रसित कर देता है। काम-वासना की अधिकता भी कर देता है जिसके फलस्वरूप कई बार दाम्पत्य -जीवन कष्टमय हो जाता है। वाणी भी कटु कर देता है।<br />
केतु का प्रभाव अलग - अलग ग्रहों के साथ युति और अलग-अलग भावों में स्थिति होने के कारण इसका प्रभाव ज्यादा या कम हो सकता है। इसके लिए किसी अच्छे ज्योतिषी से कुंडली का विश्लेषण करवाकर ही उपाय करवाना चाहिए।<br />
केतु के लिए लहसुनिया नग उपयुक्त माना गया है।मंगल वार का व्रत और हनुमान जी की आराधना विशेष फलदायी होती है।<br />
चिड़ियों को बाजरी के दाने खिलाना और भूरे-चितकबरे वस्त्र का दान तथा इन्हीं रंगों के पशुओं की सेवा करना उचित रहेगा।<br />
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ॐ शांति ...<br />
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nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-21322049584748542652013-01-23T03:10:00.004-08:002015-03-25T04:53:24.605-07:00जन्म-कुंडली के ग्रह और उनका परिवार के लोगों पर प्रभाव <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
जन्म-कुंडली के ग्रह और उनका परिवार के लोगों पर प्रभाव। …<br />
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ज्योतिष एक विज्ञान है यह सभी लोग जानते हैं। जो लोग ज्योतिष को नहीं मानते वे अक्सर कहते हैं कि ज्योतिष गलत है या कुंडलियों में कुछ नहीं रखा। यह सभी का अपना-अपना विश्वास है कि कोई क्या सोचता है।जन्म-कुंडली कभी गलत नहीं हो सकती क्यूंकि यह तो खगोल में घटित होने वाली घटना होती है जो झुठलाई नहीं जा सकती। हां ...! उसको पढने वाले की विद्या और ज्ञान में कमी हो सकती है।<br />
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लेकिन कई बार जो लोग ज्योतिष में विश्वास रखते हैं वे भी यही कह देते हैं , उनकी जन्म-कुंडली में तो ऐसा लिखा हुआ था और वैसी कोई भी घटना घटित हुई ही नहीं। तो क्या ज्योतिषी गलत है जिसने कुंडली बना कर उसका विश्लेष्ण किया था ?मेरे विचार में ऐसा नहीं है।<br />
एक घर में रहने वाले सभी लोगों के ग्रह आपस में एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।परिवार में जिसके भी ग्रह अधिक प्रभावशाली हो कर कुंडली में स्थापित होते हैं उसके ग्रहों का प्रभाव परिवार के दूसरे लोगों पर भी अवश्य पड़ता है।<br />
किसी बच्चे के जन्म या घर में नई बहू के आने से घर की परिस्थितियों में बदलाव आता है , चाहे अच्छा या बुरा कैसा भी , तो कहा जाता है इसके आने से हमारे घर में यह बरकत हुयी या नुकसान हुआ। यह भी ग्रहों का प्रभाव ही होता है जो कि घर में जुड़ने वाले सदस्यों पर असर डालता है।<br />
इसका प्रमाण मैं मेरे ही जीवन की सच्ची घटना से दे सकती हूँ।<br />
बात तब की है जब मैं चौदह वर्ष की थी , तभी मुझे हस्त - रेखा देखने का शौक लगा था। मुझे मेरे ननिहाल में कबाड़ में पड़ी एक हस्त रेखा से सबंधित किताब मिली और उसे मैंने झाड -पौंछ कर पढने के लिए रख लिया।स्कूल की पढाई के बाद जब भी समय मिलता उसे मैं पढ़ती रहती। यह भी ग्रहों का ही खेल था कि मुझे समझ भी जल्दी आने लगा।<br />
मेरा ध्यान एक दिन मेरी माँ के हाथो पर गया तो मैं चौंक पड़ी और मन ही मन सहम भी गयी।माँ की तो उम्र की रेखा ही बहुत छोटी थी।अब हम क्या करेंगे और मुझे तो मेरी माँ से लगाव ही बहुत है। बताई भी तो क्या बताती। रोज़ सोचती और उदास हो जाती फिर घर में जो मंदिर था उसमे शिव जी से माँ की उम्र बढ़ाने की प्रार्थना भी करती। रही सही कसर एक बाबा जी ने भी पूरी कर दी जो की पड़ोस के घर में नियमित आया -जाया करते थे।कहा जाता था कि उनकी उम्र 105 साल थी।उन्होंने माँ का हाथ देख कर कहा कि उनकी उम्र मात्र 35 वर्ष ही है। उस रात घर में कोई सोया नहीं , सभी उदास हो गए। आखिरकार माँ ने कहा ," अरे उन बाबा जी को खुद का भी पता है क्या वो कितना जियेंगे ...!" और अगर मेरी अभी उम्र कम भी है तो क्या हुआ मेरे पास अभी 7 साल है , इन 7 सात में पता नहीं क्या होगा , जो होना होगा वह तो होगा ही ,यह ईश्वर ही जानता है।"<br />
बात पुरानी होने के साथ हम सब भूलने लगे। उन बाबा जी भी क्या हुआ पता नहीं।<br />
1994 में हमारे एक परिचित जो की अच्छे ज्योतिष भी है। तब तक मुझे जन्म-कुंडली का ज्ञान नहीं था।सभी की कुंडली दिखाई और अचानक माँ पूछ बैठी कि उनकी तो उम्र कम थी यानि 35 वर्ष ही तो वह अब तक कैसे जीवित है। माँ ने अपना हाथ दिखाया तो पाया की उनकी उम्र की रेखा तो बढ़ी हुयी है।इस पर उन परिचित ज्योतिषी ने मेरे पिता जी की कुंडली देखी और माँ को कहा , "आपके पति की कुंडली में पत्नी-वियोग नहीं है।तभी आपकी उम्र को बढ़ना पड़ा।"<br />
तो यह था ग्रहों के असर का प्रत्यक्ष प्रमाण। इसीलिए जन्म-कुंडली में लिखी हुई घटनाएँ नहीं भी घटित होती। इसकेलिए हम ज्योतिष को जिम्मेवार नहीं ठहरा सकते।जन्म -कुंडली का समय समय पर विश्लेष्ण करवाते भी रहना चाहिए।<br />
ॐ शांति .......<br />
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nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-20185244960104663142012-11-26T00:59:00.001-08:002013-05-25T08:02:14.336-07:00राहु ग्रह और महिलाएं ......<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
राहु एक तमोगुणी मलेच्छ और छाया ग्रह माना गया है। इसका प्रभाव शनि की भांति ही होता है।<br />
यह तीक्ष्ण बुद्धि , वाक्पटुता , आत्मकेंद्रिता ,स्वार्थ , विघटन और अलगाव , रहस्य मति भ्रम , आलस्य छल - कपट ( राजनीति ) , तस्करी ( चोरी ), अचानक घटित होने वाली घटनाओं , जुआ और झूठ का कारक है।<br />
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राहू से प्रभावित स्त्री एक अच्छी जासूस या वकील , अच्छी राजनीतीज्ञ हो सकती है। वह आने वाली बात को पहले ही भांप लेती है। विदेश यात्राएं बहुत करती है।<br />
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कुंडली में राहू जिस राशि में स्थित होता है वैसे ही परिणाम देने लगता है। अगर वृहस्पति के साथ या उसकी राशि में हो तो स्त्री को ज्योतिष में रूचि होगी। शनि के प्रभाव में तो तांत्रिक - विद्या में निपुण होगी।<br />
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<a href="http://3.bp.blogspot.com/-ax1KM0ola_8/ULMu6rM9udI/AAAAAAAAAdM/Kr685cW2EbA/s1600/rahu_ketu.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="http://3.bp.blogspot.com/-ax1KM0ola_8/ULMu6rM9udI/AAAAAAAAAdM/Kr685cW2EbA/s320/rahu_ketu.jpg" width="288" /></a></div>
चंद्रमा के साथ हो तो वह कई सारे वहमो में उलझी रहेगी , जैसे उसे कुछ दिखाई दे रहा है ( भूत-प्रेत आदि )...., या भयभीत रहती है। अगर वह ऐसा कहती है तो गलत नहीं कह रही होती क्यूंकि अगर स्त्री के लग्न में राहू हो या राहू की दशा -अन्तर्दशा में ऐसी भ्रम की स्थिति हो जाया करती है। जब हमारे देश की कुंडली में राहू की दशा थी तब देश में भी भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुयी थी जैसे गणेश जी का दूध पीना , समुन्दर का पानी मीठा हो जाना ....आदि -आदि।<br />
ऐसे में स्त्री पर आक्षेप लगाने से बेहतर होगा के उसकी कुंडली दिखा कर सही उपचार किया जाय।अगर कुंडली ना हो तो शिव जी शरण में जाना चाहिए। मोती भी धारण किया जा सकता है पर सही ज्योतिषी की राय लेकर ही।<br />
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राहु से प्रभावित स्त्री की वाणी में कटुता आ जाती है।वह थोड़ी घमंडी भी हो जाया करती है।। भ्रमित रहने के कारण वह कई बार सही गलत की पहचान भी नहीं कर पाती। जिसके फलस्वरूप उसका दाम्पत्य जीवन भी नष्ट होते देखा गया है।<br />
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राहु के दूषित प्रभाव के कारण स्त्री में चर्म -रोग ,मति -भ्रम , अवसाद रोग से ग्रस्त हो सकती है।<br />
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राहु को शांत करने के लिए दुर्गा माँ की आराधना करनी चाहिए। खुल कर हँसना चाहिए। मलिन और फटे वस्त्र नहीं पहनना चाहिए। गहरे नीले रंग से परहेज़ करना चाहिए। काले रंग की गाय की सेवा करनी चाहिए।मधुर संगीत सुनना चाहिए।रामरक्षा स्त्रोत का पाठ भी लाभ दायक रहेगा।<br />
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इसकी शांति के लिए गोमेद रत्न धारण किया जा सकता है लेकिन किसी अच्छे ज्योतिषी की राय ले कर ही।<br />
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ॐ शांति ...<br />
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nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-71464259975895064632012-11-25T10:04:00.001-08:002013-05-25T08:01:27.201-07:00शनि ग्रह और महिलाएं ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
शनि ग्रह तमोगुणी और पाप प्रवृत्ति का है। यह सबसे धीमा चलने वाला , शीतल , निस्तेज , शुष्क , उदास और शिथिल ग्रह है। इसे वृद्ध ग्रह माना गया है। इसलिए इसे दीर्घायु प्रदायक या आयुष्कारक ग्रह कहा गया है।<br />
<br />
यह कुंडली में कान , दांत , अस्थियों , स्नायु , चर्म ,शरीर में लोह तत्व व वायु तत्व , आयु , जीवन , मृत्यु , जीवन शक्ति , उदारता , विपत्ति , भूमिगत साधनों और अंग्रेजी शिक्षा का कारक है।<br />
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<a href="http://2.bp.blogspot.com/-1t5bpuymvcg/ULJdumhBm8I/AAAAAAAAAc8/ehFe0oUORAg/s1600/Shani+Garha.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="266" src="http://2.bp.blogspot.com/-1t5bpuymvcg/ULJdumhBm8I/AAAAAAAAAc8/ehFe0oUORAg/s400/Shani+Garha.jpg" width="400" /></a></div>
किसी भी स्त्री की कुंडली में अच्छा शनि उसे उदार , लोकप्रिय बनता है और तकनीकी ज्ञान में अग्रणी रखता है। वह हर क्षेत्र में अग्रणी हो कर प्रतिनिधित्व करती है। राजनीति में भी उच्च पद प्राप्त करती है।<br />
<br />
दूषित शनि विवाह में विलम्ब कारक भी है। और निम्न स्तर का जीवन साथी की प्राप्ति की ओर भी संकेत करता है।<br />
<br />
दूषित शनि स्त्री को ईर्ष्यालु और हिंसक भी बना देता है।यह स्त्री में निराशा ,उदासीनता और नीरसता का समावेश कर उसके दाम्पत्य जीवन को कष्टमय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता। और धीरे - धीरे स्त्री अवसाद की तरफ बढ़ने लग जाती है।<br />
<br />
स्त्रियों में कमर -दर्द , घुटनों का दर्द या किसी भी तरह का मांसपेशियों का दर्द दूषित शनि का ही परिणाम है। चंदमा के साथ शनि स्त्री को पागलपन का रोग तक दे सकता है। इसके लिए स्त्री को काले रंग का परहेज़ और अधिक से अधिक हलके और श्वेत रंगों का प्रयोग करना चाहिए।<br />
<br />
शनि को अनुकूल बनाने के लिए स्त्री को ना केवल अपने परिवार के ही बल्कि सभी वृद्ध जनो का सम्मान करना चाहिए। अपने अधीनस्थ कर्मचारियों और सेवकों के प्रति स्नेह और उनके हक़ और हितों की रक्षा भी करें। देश के प्रति सम्मान की भावना रखे। शनि इम्मंदारी और सच्चाई से प्रसन्न रहता है।<br />
<br />
क्यूंकि शनि को न्यायाधीश भी माना गया है तो यह अपनी दशा -अंतर दशा में अपना सुफल या कुफल जरुर देता है कर्मो के अनुसार।<br />
<br />
शनि अगर प्रतिकूल फल दे रहा हो तो हनुमान जी की आराधना करनी चाहिए। मंगलवार को चमेली के तेल का दीपक हनुमान जी के आगे करना चाहिए। शनि चालिसा , हनुमान चालीसा का पाठ विशेष लाभ देगा। अगर शनि के कारण हृदय रोग परेशान करता हो तो सूर्य को जल और आदित्य -ह्रदय स्त्रोत का पाठ लाभ देगा और अगर मानसिक रोग के साथ सर्वाइकल का दर्द हो तो शिव आराधना विशेष लाभ देगी। काले और गहरे नीले रंग का परित्याग शनि को अनुकूल बना सकता है।<br />
<br />
नीलम का धारण भी शनि को अनुकूल बनता है पर किसी अच्छे ज्योतिषी से पूछ कर ही।<br />
<br />
ॐ शांति .....</div>
nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-40541460270035034712012-11-25T08:47:00.002-08:002013-05-25T08:00:28.682-07:00शुक्र ग्रह और महिलाएं ......<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
शुक्र एक शुभ एवं रजोगुणी ग्रह है।यह विवाह , वैवाहिक जीवन , प्यार , रोमांस , जीवन साथी तथा यौन सम्बन्धों का नैसर्गिक कारक है। यह सौंदर्य , जीवन का सुख , वाहन , सुगंध और सौन्दर्य प्रसाधन का कारक भी है।<br />
<br />
किसी भी स्त्री की कुंडली में जैसे वृहस्पति ग्रह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है , वैसे ही शुक्र भी दाम्पत्य जीवन में प्रमुख भूमिका निभाता है।<br />
<br />
कुंडली का अच्छा शुक्र चेहरा देखने से ही प्रतीत हो जाता है। यह स्त्री के चेहरे को आकर्षण का केंद्र बनाता है। यहाँ यह जरुरी नहीं की स्त्री का रंग गोरा है या सांवला।<br />
<br />
सुन्दर -नेत्र और सुंदर केशराशि से पहचाना जा सकता है स्त्री का शुक्र शुभ ग्रहों के सानिध्य में है। वह सोंदर्य -प्रिय भी होती है।<br />
<br />
अच्छे शुक्र के प्रभाव से स्त्री को हर सुख सुविधा प्राप्त होती है। वाहन , घर , ज्वेलरी , वस्त्र सभी उच्च कोटि के। किसी भी वर्ग की औरत हो , उच्च , मध्यम या निम्न उसे अच्छा शुक्र सभी वैभव प्रदान करता ही है। यहाँ यह कहना भी जरुरी है अगर आय के साधन सीमित भी हो तो भी वह ऐशो आराम से ही रहती है।<br />
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<a href="http://4.bp.blogspot.com/-uPAzxaxpHhw/ULJLnRIJznI/AAAAAAAAAcs/2KHXZRhxa24/s1600/Shukra_NASA_2008.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="379" src="http://4.bp.blogspot.com/-uPAzxaxpHhw/ULJLnRIJznI/AAAAAAAAAcs/2KHXZRhxa24/s400/Shukra_NASA_2008.jpg" width="400" /></a></div>
अच्छा शुक्र किसी भी स्त्री को गायन , अभिनय ,काव्य -लेखन की और प्रेरित करता है। चन्द्र के साथ शुक्र हो तो स्त्री भावुक होती है। और अगर साथ में बुध का साथ भी मिल जाये तो स्त्री लेखन के क्षेत्र में पारंगत होती है और साथ ही में वाक् पटु भी , बातों में उससे शायद ही कोई जीत पाता हो।<br />
<br />
अच्छा शुक्र स्त्री में मोटापा भी देता है।जहाँ वृहस्पति स्त्री को थुलथुला मोटापा दे कर अनाकर्षक बनता है वही शुक्र से आने वाला मोटापा स्त्री को और भी सुन्दर दिखाता है।यहाँ हम शुभा मुदगल और किरन खेर , फरीदा जलाल का उदाहरण दे सकते हैं।<br />
<br />
कुंडली का बुरा शुक्र या पापी ग्रहों का सानिध्य या कुंडली के दूषित भावों का साथ स्त्री में चारित्रिक दोष भी उत्पन्न करवा सकता है।यह विलम्ब से विवाह , कष्ट प्रद दाम्पत्य जीवन , बहु विवाह , तलाक की और भी इशारा करता है। अगर ऐसा हो तो स्त्री को हीरा पहनने से परहेज़ करना चाहिए।<br />
<br />
कमज़ोर शुक्र स्त्री में मधुमेह , थाइराईड , यौन रोग , अवसाद और वैभव हीनता लाता है।<br />
<br />
शुक्र को अनुकूल करने के लिए शुक्रवार का व्रत और माँ लक्ष्मी जी की आराधना करनी चाहिए। चावल , दही , कपूर , सफ़ेद -वस्त्र , सफ़ेद पुष्प का दान देना अनुकूल रहता है। छोटी कन्याओं कोचावल की इलाइची डाल कर खीर भी खिलानी चाहिए।<br />
<br />
कनक - धारा , श्री सूक्त , लक्ष्मी स्त्रोत , लक्ष्मी चालीसा का पाठ और लक्ष्मी मन्त्रों का जाप भी सुकर को बलवान करता है।माँ लक्ष्मी को गुलाब का इत्र अर्पण करना विशेष फलदायी है।<br />
<br />
हीरा भी धारण किया जा सकता है पर किसी अच्छे ज्योतिषी से कुंडली का विश्लेष्ण करवाने के बाद ही।<br />
<br />
जन्म -कुंडली के अलग -अलग भावों और ग्रहों के साथ शुक्र के प्रभाव में अंतर आ सकता है।यह मेरा एक सामान्य विश्लेष्ण ही है।<br />
<br />
ॐ शांति .....</div>
nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-69832566198585614852012-08-30T07:32:00.001-07:002018-08-30T22:59:21.778-07:00ज्योतिष द्वारा चोरी गयी वस्तू का ज्ञान ... <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कभी -कभी घरों में छोटी मोटी चोरी की घटना घट जाती है। तब एक छट -पटाहट सी रहती है ,चोर कौन हो सकता है। ज्योतिष द्वारा इसका सटीक पता प्रश्न कुंडली से लगाया जाता है।<br>
<div>
जब भी चोरी का पता लगता है उस समय को नोट कर लीजिये। अगर किसी को जन्मकुंडली देखने का ज्ञान है तो ठीक है नहीं तो किसी भी ज्योतिष के पास समय को बता कर समस्या का समाधान किया जा सकता है।</div>
<div>
चोरी होने की सूचना मिलते ही तुरंत प्रश्न कुंडली बनायें।</div>
<div>
मेष या वृषभ लग्न ----पूर्व दिशा </div>
<div>
मिथुन लग्न ----- अग्नि कोण </div>
<div>
कर्क लग्न ---- दक्षिण </div>
<div>
सिंह लग्न ------------ नैरित्य कोण </div>
<div>
कन्या लग्न --------- उत्तर दिशा </div>
<div>
तुला और वृश्चिक लग्न -- पश्चिम दिशा </div>
<div>
धनु लग्न ------------ वायव्य कोण </div>
<div>
मकर और कुम्भ लग्न ---उत्तर दिशा </div>
<div>
मीन लग्न ------------इशान कोण </div>
<div>
उपरोक्त लग्नो में खोयी वस्तु ,उसके दिखाए गए लग्नो के सामने की दिशा में गयी है।</div>
<div>
--------------------------------------------------------------------------------------</div>
<div>
अब सवाल उठता है चोरी करने वाला कौन हो सकता है तो नीचे लिखे लग्नो के आधार पर पता लगाया जा सकता है।</div>
<div>
मेष लग्न ---ब्राह्मण या सम्मानीय भद्र पुरुष </div>
<div>
वृषभ लग्न--क्षत्रिय </div>
<div>
मिथुन लग्न -----वेश्य </div>
<div>
कर्क लग्न -------शुद्र या सेवक वर्ग </div>
<div>
सिंह लग्न ------स्वजन या आत्मीय व्यक्ति </div>
<div>
कन्या लग्न---- कुलीन स्त्री ,घर की बहू -बेटी या बहन </div>
<div>
तुला लग्न ----पुत्र ,भाई या जमाता </div>
<div>
वृश्चिक लग्न-- इतर जाति का व्यक्ति </div>
<div>
धनु लग्न ---स्त्री </div>
<div>
मकर लग्न ---वेश्य या व्यापारी </div>
<div>
कुम्भ लग्न---चूहा </div>
<div>
मीन लग्न----खोयी घर में ही पड़ी है कहीं ( मिस-प्लेस )</div>
<div>
---------------------------------------------------------------------------------</div>
<div>
यह सब जानने के बाद यह भी प्रश्न उठता है , जो सामान चोरी हुआ है वह मिलेगा या नहीं ? इसके लिए प्रश्न कुंडली में चंद्रमा की स्थिति देखी जाती है। यहाँ पर चंद्रमा को मालिक और सातवें भाव को चोर माना जाता है।चौथे भाव को धन -प्राप्ति की जगह और लग्न -भाव को चोरी गया सामान माना जाता है।</div>
<div>
1) लग्न -भाव का स्वामी अगर सातवें घर या उसके स्वामी के साथ हो तो कोशिश करने पर चोरी गया धन मिल जाता है।</div>
<div>
2)अगर लग्न -भाव का स्वामी अष्ठम में हो तो चोर खुद ही चोरी की गयी वस्तु लौटा देगा।लेकिन ग्रह अस्त होगा तो चोरी का पता चलेगा पर वस्तु नहीं मिलेगी।</div>
<div>
3)लग्न-भाव का स्वामी दसवें घर के स्वानी के साथ है तो चोर माल सहित पकड़ा जायेगा।</div>
<div>
4) अगर लग्नेश की दृष्टि दसवें घर के स्वामी पर नहीं पद रही हो तो चोरी गयी वस्तु नहीं मिलेगी।</div>
<div>
5)अगर सातवें घर का स्वामी सूर्य के साथ अस्त हो तो बहुत समय बाद चोर का तो पता चल जायेगा पर वास्तु नहीं मिलेगी।</div>
<div>
6)अगर सप्तमेश और लग्नेश साथ में हो तो चोर राज भय से डर कर खुद ही माल को दे देता है।</div>
<div>
7)अगर सप्तमेश पर लग्नेश की दृष्टि ना पड़ रही हो तो ना चोर को लाभ लाभ होता है ना मालिक को ,माल को मध्यस्थ ही हड़प लेता है।</div>
<div>
8)प्रश्न कुंडली में अष्ठम भाव चोर के धन रखने का स्थान होता है इसलिए अगर धन भाव का स्वामी अष्ठम में ही बैठा हो तो माल नहीं मिलेगा।और अगर धन भाव का स्वामी सप्तम में हो तो भी माल नहीं मिलता क्यूँ कि "चंद्रास्वामी चोर सप्तम " के अनुसार सप्तम भाव स्वयं चोर है।</div>
<div>
9) धनेश अगर अष्टमेश के साथ हो तो धन मिल जाता है।</div>
<div>
10) अगर अष्टमेश ,दशमेश के साथ हो तो राज-पुरुष चोर का पक्षपाती ही माल नहीं मिलेगा।</div>
<div>
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<div>
अब चोरी हुई वस्तु कहाँ छिपाई गयी है इस पर विचार करते हैं।</div>
<div>
1) लग्नेश और सप्तमेश का आपस में परिवर्तन या दोनों एक ही भाव में हो तो वस्तु घर में ही कहीं छुपी या छुपाई गयी है।</div>
<div>
2) चंद्रमा अगर लग्न में हो तो वस्तु पूर्व दिशा में होगी और अगर सप्तम में हो तो वस्तु पश्चिम में मिलेगी।चंद्रमा अगर दशम ने हो तो दक्षिण और चतुर्थ में हो तो वस्तु उत्तर दिशा में मिलेगी।</div>
<div>
3) अगर लग्न में अग्नितत्व राशि ( मेष ,सिंह ,धनु ) हो तो वस्तु घर के पूर्व,अग्नि -स्थान , रसोई घर में ही मिल जाती है।</div>
<div>
4 ) लग्न में अगर पृथ्वी -तत्व राशि ( वृषभ ,कन्या ,मकर ) हो तो वस्तु दक्षिण दिशा में भूमि में दबी मिलेगी।</div>
<div>
5 ) अगर लग्न में वायु -तत्व राशि ( मिथुन ,तुला कुम्भ ) हो तो वस्तु पश्चिम दिशा में हवा में लटकाई गयी है।</div>
<div>
6 )लग्न में जल-तत्व राशि ( कर्क ,वृश्चिक ,कुम्भ ) हो तो वस्तु जलाशय के पास या उसके आस-पास उत्तर दिशा में मिलेगी।</div>
<div>
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<div>
ग्रहों के हिसाब से चोर कौन है और कितनी उम्र का है ये भी पता लगाने की कोशिश करते हैं।</div>
<div>
1) प्रश्न -कुंडली में यदि लग्न पर सूर्य-चन्द्र दोनों की दृष्टि पड़ रही हो तो वस्तु किसी घर के व्यक्ति ने ही चुराई है।और यदि लग्नेश ,सप्तमेश से युक्त हो कर लग्न में हो तो भी चोरी किसी घर के व्यक्ति ने ही की है।</div>
<div>
2)लग्न पर सूर्य या चन्द्र किसी एक ही की दृष्टि पड़ रही हो तो वस्तु किसी आस पास रहने वाले व्यक्ति ने चुराई है।</div>
<div>
3)अगर सप्तमेश द्वादश या तृतीय स्थान में हो तो घर के नौकर ने चोरी की है।</div>
<div>
4 )अगर सप्तमेश स्वग्रही या अपनी उच्च राशि में हो तो चोरी पेशेवर चोर ने की है। यहाँ पर चोर की शक्ति का ज्ञान लग्न,सप्तम और दशम भाव के बल के अनुसार करना चाहिए।</div>
<div>
5) प्रश्न -कुंडली में अगर सूर्य बलवान हो तो पिता या पितातुल्य व्यक्ति ,चंद्रमा बलि हो तो माँ या मातातुल्य महिला ,शुक्र बली हो तो महिला ,वृहस्पति बलि हो तो घर के मालिक ने ,शनि बलि हो तो पुत्र ने और मंगल बलि हो तो भाई या सगा भतीजा तथा बुध बलवान हो तो मित्र या मित्र -सम्बन्धियों ने चोरी की है।</div>
<div>
------------------------------------------------------------------------------------------------------</div>
<div>
लग्न में अगर शुक्र ----युवक </div>
<div>
बुध ---- बालक </div>
<div>
गुरु -----वृद्ध </div>
<div>
मंगल--युवक </div>
<div>
शनि --- वृद्ध ....चोर है।</div>
<div>
लग्न और दशम भाव के मध्य सूर्य है तो चोर बालक है। दशम भाव और सप्तम भाव के मध्य सूर्य हो तो चोर युवक है। लग्न और चतुर्थ भाव के मध्य सूर्य हो तो चोर अत्यंत वृद्ध है।</div>
<div>
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ॐ शांति।...............<br>
<br>
शब्द साभार।</div>
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nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-86005201577843207682012-08-26T06:14:00.002-07:002023-02-05T18:36:56.279-08:00कुछ आसान और जरुरी बातें ( 1 )<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
जन्म-दिन पर किया जाने वाला कर्म<br>
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जन्म -दिन वाले दिन सुबह-सुबह ,जिस किसी का भी जन्म -दिन हो , एक नारियल ( पानी वाला )ले कर उस पर मोली लपेट कर ,घडी की उलटी दिशा ( एंटी क्लोक वाइज़ )में सात बार घुमाएं और बहते हुए पानी में छोड़ दें। और इस दिन जातक के वजन के बराबर गायों को हरा चारा भी डाल दें।साल भर सुख-शान्ति बनी रहती है।<br>
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आकस्मिक विपदा से बचाव<br>
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कई बार अचानक विपदा आती है या कभी निर्दोष होते हुए भी बहुत गम्भीर आरोपों का सामना करना पड जाता है।तो सबसे सरल उपाय है सुन्दर -काण्ड का पाठ। यह नौ दिन करना होता है। पहले दिन एक पाठ , दूसरे दिन दो पाठ ऐसे ही दिन के साथ-साथ पाठों की संख्या बढती जाएगी। नवें दिन पाठ समाप्त करके एक वृद्ध ब्राह्मण को भोजन करवा कर उसे -वस्त्र - दक्षिणा आदि दें। बहुत कारगार उपाय है ये , नौ दिन अखंड ज्योति जरुर जलना चाहिए और ये पाठ स्वयं ही करें किसी पंडित से ना करवाएं।<br>
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झगडे से तुरंत बचाव का उपाय<br>
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अगर कभी कंही ( किसी भी जगह ,चाहे सार्वजनिक हो या घर या ऑफिस ) कोई बात तर्क-वितर्क से बढ़ कर बहस और फिर झगडे का रूप लेने वाली हो तो वहां " ॐ शांति " का जाप कर लेना चाहिए। इसका ग्यारह से इक्कीस बार जाप ही पर्याप्त है। जिन घरों में गृह -कलह की स्थिति बनी रहती है ,वहां पर कोई भी घर का सदस्य एक माला ( एक सौ आठ बार ) का जाप अवश्य कर ले।<br>
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<span style="color: #333333; font-family: "lucida grande" , "tahoma" , "verdana" , "arial" , sans-serif;"><span style="line-height: 13.600000381469727px;">खज़ाना चाहिए तो गुप्त दान कीजिये </span></span><br>
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कहा जाता है अगर खज़ाना चाहिए तो गुप्त दान करना चाहिए। इसके लिए एक मिटटी का गुल्लक चाहिए होता है। इस गुल्लक में जब भी घर के किसी भी सदस्य का जन्म-दिन हो या जब घर में व्रत - अनुष्ठान हो तो कुछ धन राशि अपनी इच्छा के अनुसार इसमें डालते रहिये। और एक साल के बाद किसी भी जरूरत-मंद को दे दीजिये। और फिर एक नया गुल्लक ले आइये। जब हम किसी जरूरत-मंद को ये गुल्लक देतें है उसके चेहरे की ख़ुशी किसी खजाने से कम तो ना होगी। और एक साथ हम ,कई बार किसी की सहायता कर भी नहीं सकते।हो सकता उसका आशीर्वाद एक दिन सचमुच ही हमें खजाना दिलवा ही दें।<br>
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कुंडली ना हो तो भी ग्रहों को अनुकूल किया जा सकता है<br>
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अक्सर इंसान बहुत सी परेशानी से जूझता रहता है और सोचता है के काश उसके पास जन्म-कुंडली हो तो किसी से पूछ लेता ( यह भी एक कटु -सत्य है एक हारा हुआ इंसान ही ज्योतिष के पास ही जाता है ,नहीं तो वो खुद ही चाँद-तारे अपनी झोली में लिए घूमता है ) ....<br>
मेरा मानना है अगर इन्सान अपने आचार व्यवहार सही रखे तो ग्रह अपने आप ही अनुकूल हो जाते है।<br>
1) माता-पिता की सेवा ( सूर्य-चन्द्र)<br>
2) गुरु और वृद्ध जानो के प्रति सेवा और आदर भाव ( वृहस्पति)<br>
3) देश -भक्ति की भावना ( शनि )<br>
4) मजबूर और अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के प्रति स्नेह भाव ( शनि )<br>
5) अपने रक्त -सम्बन्धियों ,बहन-भाई आदि के साथ स्नेह और कर्तव्य भाव ( मंगल)<br>
6) नारी जाति के प्रति सम्मान और श्रद्धा भाव ( शुक्र)<br>
7) मधुर और अच्छी भाषा का प्रयोग ( बुध)<br>
8) इस धरा के समस्त प्राणी -मात्र के प्रति दया भाव ( राहू-केतु)<br>
उपरोक्त बातें अगर कोई भी इंसान अपने जीवन में उतार लेता है तो ...ना ही कभी कोई दुःख पास आएगा और ना ही किसी ज्योतिष के पास जाने की जरुरत ही पड़ेगी ....<br>
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ॐ शांति ....</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">उपासना सियाग</div>
nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-69870577217798110182012-08-24T01:07:00.001-07:002013-05-25T07:59:19.629-07:00वृहस्पति ग्रह और महिलाये <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
वृहस्पति एक शुभ और सतोगुणी ग्रह है। क्यूँ कि यह आकर में सबसे बड़ा है , अन्य ग्रहों से , इसलिए इसे गुरु की संज्ञा भी दी गयी है और वृहस्पति देवताओं के गुरु भी थे।<br />
वृहस्पति बुद्धि ,विद्वता ,ज्ञान ,सदगुणों ,सत्यता ,सच्चरित्रता ,नैतिकता ,श्रद्धा ,समृद्धि ,सम्मान .दया एवं न्याय का नैसर्गिक कारक होता है।<br />
किसी भी स्त्री के लिए यह पति ,दाम्पत्य ,पुत्र और घर -गृहस्थी का कारक होता है।<br />
अशुभ ग्रहों के साथ या दूषित वृहस्पति स्त्री को स्वार्थी , लोभी और क्रूर विचार धारा की बना देता है।दाम्पत्य-जीवन भी दुखी होता है और पुत्र-संतान की भी कमी होती है। पेट और आँतों से सम्बन्धित रोग भी पीड़ा दे सकते है।<br />
जन्म- कुंडली में शुभ वृहस्पति किसी भी स्त्री को धार्मिक ,न्याय प्रिय और ज्ञान वान पति -प्रिय और उत्तम संतान वती बनाता है। स्त्री विद्वान होने के साथ -साथ बेहद विनम्र भी होती है।<br />
मैंने बहुत बार यह भी देखा है, यह कुंडली में शुभ होते हुए भी उग्र रूप धारण कर लेता है तो स्त्री में विनम्रता की जगह अहंकार भर जाता है। वह अपने सामने ,किसी और को तुच्छ समझती है क्यूँ की वृहस्पति के कारन ज्ञान की सीमा ही नहीं होती ,वह सिर्फ अपनी ही बात पर विश्वास करती है।<br />
<br />
अपने इसी व्यवहार के कारण वह घर और आस-पास के वातावरण से कटने भी लग जाती है और धीरे- धीरे अवसाद की और घिरने लग जाती है क्यूँ की उसे खुद ही मालूम नहीं होता की उसके साथ ऐसा क्यूँ हो रहा है वह तो आपकी बात ही तो रख रही होती है।<br />
और यही अहंकार उसमे में मोटापे का कारक भी बन जाता है। वैसे तो अन्य ग्रहों के कारण भी मोटापा आता है पर वृहस्पति जन्य मोटापा अलग से पहचान आता है यह शरीर में थुल थूला पन अधिक लाता है।क्यूँ की वृहस्पति शरीर में मेद कारक भी है तो मोटापा आना स्वाभाविक ही है।<br />
अगर ऐसा किसी स्त्री के साथ हो तो वह सबसे पहले अपनी जन्म -कुंडली का किसी अच्छे ज्योतिषी से विश्लेष्ण करवा लें।<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://2.bp.blogspot.com/-MTfGe5-jnKw/UDc2Oax6D7I/AAAAAAAAAaA/0N-Ro0gWwYc/s1600/97px-Jupiter_on_2010-06-07_(captured_by_the_Hubble_Space_Telescope).jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="400" src="http://2.bp.blogspot.com/-MTfGe5-jnKw/UDc2Oax6D7I/AAAAAAAAAaA/0N-Ro0gWwYc/s400/97px-Jupiter_on_2010-06-07_(captured_by_the_Hubble_Space_Telescope).jpg" width="388" /></a></div>
कमजोर वृहस्पति हो तो पुखराज रत्न धारण किया जा सकता है पर किसी ज्योतिषी की राय ले कर ही। गुरुवार का व्रत रखा जा सकता है। सोने का धारण,पीले रंग का धारण औरपीले भोजन सेवन किया जा सकता है। एक चपाती पर एक चुटकी हल्दी लगाकर खाने से भी वृहस्पति अनुकूल हो सकता है।<br />
उग्र वृहस्पति को शांत करने के लिए वृहस्पति वार का व्रत करना , पीले रंग और पीले रंग के भोजन से परहेज करना चाहिए बल्कि उसका दान करना चाहिए ,केले के वृक्ष की पूजा करनी चाहिए और विष्णु -भगवान् को केले अर्पण करना चाहिए। और छोटे बच्चों ,मंदिर में केले का दान और गाय को केला खिलाना चाहिए।<br />
अगर दाम्पत्य जीवन कष्मय हो तो हर वृहस्पति वार को एक चपाती पर आटे की लोई में थोड़ी सी हल्दी ,देशी घी और चने की दाल ( सभी एक चुटकी मात्र ही ) रख कर गाय को खिलाये।<br />
कई बार पति-पत्नी अगल -अलग जगह नौकरी करते हैं और चाह कर भी एक जगह नहीं रह पाते तो पति -पत्नी दोनों को ही गुरुवार को चपाती पर गुड की डली रख कर गाय को खिलाना चाहिय।<br />
और सबसे बड़ी बात यह के झूठ से जितना परहेज किया जाय ,बुजुर्गों और अपने गुरु ,शिक्षकों के प्रति जितना सम्मान किया जायेगा उतना ही वृहस्पति अनुकूल होता जायेगा।<br />
ॐ शांति ......</div>
nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-57152055511453768442012-08-16T22:40:00.000-07:002013-05-25T07:57:50.534-07:00महिलाएं और बुध ग्रह <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
बुध ग्रह एक शुभ और रजोगुणी प्रवृत्ति का है।यह किसी भी स्त्री में बुद्धि ,निपुणता ,वाणी .वाक्शक्ति ,व्यापार ,विद्या में बुद्धि का उपयोग तथा मातुल पक्ष का नैसर्गिक करक है। यह द्विस्वभाव ,अस्थिर और नपुंसक ग्रह होने के साथ - साथ शुभ होते हुए भी जिस ग्रह के साथ स्थित होता है ,उसी प्रकार के फल देने लगता है। अगर शुभ ग्रह के साथ हो तो शुभ ,अशुभ ग्रह के अशुभ प्रभाव देता है।<br />
अगर यह पाप ग्रहों के दुष्प्रभाव में हो तो स्त्री कटु भाषी , अपनी बुद्धि से काम न लेने वाली यानि दूसरों की बातों में आने वाली या हम कह सकते हैं के कानो की कच्ची ...!, जो घटना घटित भी ना हुई उसके लिए पहले से ही चिंता करने वाली और चर्मरोगों से ग्रसित हो जाती है।<br />
क्यूँ की बुध बुद्धि का परिचायक भी है अगर यह दूषित चंद्रमा के प्रभाव में आ जाता है तो स्त्री को आत्मघाती कदम की तरफ भी ले जा सकता है।<br />
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<a href="http://1.bp.blogspot.com/-KYr2R5EON04/UC3WtoEUdOI/AAAAAAAAAYg/aitptiJ_F00/s1600/mercury.gif" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="400" src="http://1.bp.blogspot.com/-KYr2R5EON04/UC3WtoEUdOI/AAAAAAAAAYg/aitptiJ_F00/s400/mercury.gif" width="396" /></a></div>
यहाँ मैं यह स्पष्ट कर देना चाहती हूँ ,यहाँ मेरा किसी भी महिला पर दोषारोपण करने का प्रयास नहीं है बल्कि मैंने बहुत सी महिलाओं में यह प्रवृत्ति देखी और उनको घुटते देखा है। वे कहती है कि उनके मन में कुछ नहीं होता फिर भी वो बोले बिना नहीं रहती और फिर बोलते ही विवाद हो जाता है। तो यहाँ दूषित बुध का ही परिणाम होता है।<br />
यह सूर्य के साथ हो कर भी अस्त नहीं होता। और बुध -आदित्य योग का निर्माण करता है।<br />
जिस किसी भी स्त्री का बुध शुभ प्रभाव में होता है वे अपनी वाणी के द्वारा जीवन की सभी उच्चाईयों को छूती है ,अत्यंत बुद्धिमान ,विद्वान् और चतुर और एक अच्छी सलाहकार साबित होती है।व्यापार में भी अग्रणी तथा कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सम्स्याओं का हल निकल लेती है।<br />
यह एक सामान्य विश्लेष्ण है ,बुध ग्रह के शुभ- अशुभ प्रभाव का। जन्म-कुंडली के अलग- अलग भावों और अलग - अलग ग्रहों के साथ होने पर इसका प्रभाव कम या ज्यादा भी हो सकता है। अगर जन्म कुंडली है तो उसका एक अच्छे ज्योतिष से विश्लेष्ण करवा कर उपाय करवा लेना चाहिए। अगर जरुरी हो तो 'पन्ना' रत्न छोटी वाली ऊँगली में पहना जा सकता है। गणेश जी और दुर्गा माँ की आराधना करनी चाहिए।<br />
हरे मूंग ( साबुत ), हरी पत्तेदार सब्जी का सेवन और दान ,हरे वस्त्र को धारण और दान देना भी उपुयक्त रहेगा। तांबे के गिलास में जल पीना चाहिए। अगर कुंडली ना हो और मानसिक अवसाद ज्यादा रहता हो तो सफ़ेद और हरे रंग के धागे को आपस में मिला कर अपनी कलाई में बाँध लेना चाहिए।<br />
ॐ शांति ....<br />
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nayee duniahttp://www.blogger.com/profile/12166123843123960109noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-2642859602889144672.post-49213191776273762852012-04-11T05:38:00.001-07:002013-05-25T07:56:10.359-07:00महिलायें और मंगल ग्रह<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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ग्रहों का सेनापति मंगल ,अग्नितत्व प्रधान तेजस ग्रह है .इसका रंग लाल और ये रक्त -संबंधो का प्रतिनिधित्व करता है .जिस किसी भी स्त्री की जन्म कुंडली में मंगल शुभ और मजबूत स्थिति में होता है उसे वह प्रबल राज योग प्रदान करता है .शुभ मंगल से स्त्री अनुशासित , न्यायप्रिय ,समाज में प्रिय और सम्मानित होती है .<br />
जब मंगल ग्रह का पापी और क्रूर ग्रहों का साथ हो जाता है तो स्त्री को मान -मर्यादा भूलने वाली ,क्रूर और ह्रदय हीन भी बना देता है .<br />
क्यूँ कि मंगल रक्त और स्वभाव में उत्तेजना ,उग्रता और आक्रमकता लता है इसीलिए जन्म -कुंडली में विवाह से संबंधित भावों --जैसे द्वादश ,लग्न ,द्वितीय ,चतुर्थ ,सप्तम व अष्टम भाव में मंगल कि स्थिति को विवाह और दांपत्य जीवन के लिए अशुभ माना जाता है .ऐसी कन्या मांगलिक कहलाती है . मेरे विचार में मांगलिक होना कोई भयानक बात नहीं है क्यूँ की अच्छे औरशुभ मंगल से कोई भी स्त्री की सोच ऊँची और वह उच्च पद तक पहुँचती है और जहाँ तक विवाह का सवाल है वह जन्म कुंडली मिला कर ही करना चाहिए .<br />
<a href="http://4.bp.blogspot.com/-9MCE_5PPXD0/T4V7I0olJrI/AAAAAAAAAOo/P_qTADAKYII/s1600/Mars_fantasy_landscape-76055.jpeg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="300" src="http://4.bp.blogspot.com/-9MCE_5PPXD0/T4V7I0olJrI/AAAAAAAAAOo/P_qTADAKYII/s400/Mars_fantasy_landscape-76055.jpeg" width="400" /></a>लेकिन जिन स्त्रियों की जन्म कुंडली में मंगल कमजोर स्थिति में हो तो वह आलसी और बुझदिल होती है थोड़ी सी डरपोक भी होती है .<br />
मन ही मन सोचती है पर प्रकट रूप से कह नहीं पाती और मानसिक अवसाद में घिरती चली जाती है ,कमजोर मंगल वाली स्त्रियाँ हाथ में लाल रंग का धागा बांध कर रखे और भोजन करने के बाद थोडा सा गुड जरुर खा लें , ताम्बे के गिलास में पानी पियें और अनामिका में ताम्बे का छल्ला पहन ले और एक अच्छे ज्योतिष को दिखा कर उसकी सलाह पर अगर जरुरी हो तो मूंगा धारण करें .<br />
जिन स्त्रियों की जन्म कुंडली में मंगल उग्र स्थिति में होता है उनको लाल रंग कम धारण करना चाहिए और मसूर की दाल का दान करना चाहिए ...रक्त -सम्बन्धियों का सम्मान करना चाहिए जैसे बुआ ,मौसी बहन ,भाई और अगर शादी शुदा है तो पति के रक्त सम्बन्धियों का भी सम्मान करें .<br />
हनुमान जी की शरण में रहना कैसे भी मंगल दोष को शांत रखता है<br />
एक अच्छे ज्योतिष को कुंडली दिखा कर ही कोई भी उपाय करना चाहिए ..</div>
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