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Saturday, October 5, 2013

कुछ आसान और जरुरी बातें ( 2 )

     
बहुत सारी ऐसी बातें है जो हम जानते नहीं है या जान बूझ  कर  नजर अंदाज़ कर देते हैं।  जैसे , अक्सर हम लोग हमारे मोबाईल फोन में कॉलर ट्यून या हेलो ट्यून कोई भी मन्त्र की लगा लेते हैं जोकि सर्वथा अनुचित है। क्यूंकि हर मन्त्र का अपना प्रभाव होता है। अपनी अलग ही तरंगे होती है। जब भी कभी   कोई फोन करता है और घंटी की जगह मन्त्र उच्चारित होने लगता है। कई बार फोन जल्दी ही उठा लिया जाता है और मन्त्र आधा ही रह जाता है। यह आधा मन्त्र दोष दायक हो सकता है। आज कल फोन हर जगह ले जाया जाता है। बाथरूम में भी। अब सोचने वाली बात यह है  क्या वह जगह मन्त्र के लिए उपयुक्त है।
          हम अपने इष्ट देव की तस्वीर का भी कवर फोटो फ़ोन पर लगा देते हैं। मोबाइल फोन है कहीं भी कभी आ सकता है। हम झट से उठा लेते हैं। डाइनिंग टेबल हो या बाथरूम। मुझे नहीं लगता कि हमें अशुद्ध हाथों से ईश्वर की तस्वीर छूनी चाहिए।
        हम लोग घरों में भी जगह -जगह अपने  इष्ट की तस्वीरें टांग देते है। यह  तो सभी जानते हैं कि  ईश्वर की तस्वीर शयनकक्ष में नहीं होनी चाहिए। लेकिन हम शयन कक्ष के अलावा भी  अन्य कमरों में रसोई  आदि में ईश्वर की तस्वीरे लगा देते हैं। बेशक ये हमारी धार्मिक प्रवृत्ति दर्शाती है। लेकिन ये उचित नहीं है। घर में हर वस्तु का एक नियत स्थान होता है। फिर भगवान् को इधर -उधर अपमानित क्यूँ किया जाय।
         बैठक हो या भोजन कक्ष , जहाँ पर परिवार हंसती खुशनुमा तस्वीर होनी चाहिए वहां ईश्वर को उपेक्षित क्यूँ किया जाय। बैठक में हर तरह के लोग मिलने आ सकते है। आज -कल उनके स्वागत के लिए विभिन्न प्रकार के 'पेय 'पदार्थ भी दिए जाते हैं। या छोटी -बड़ी पार्टियाँ भी की जाती है वहां भगवान का क्या काम। ऐसे तो घर में नकारात्मकता ही बढती है। रसोई में अगर चित्र लगाना हो तो अन्नपूर्णा देवी का लगाया जा सकता है। वह भी इस शर्त पर वहां मांसाहार न पकाया जाता हो।
      ईश्वर के लिए घर में  जहाँ स्थान  होता है। वहीँ होना चाहिए। सुबह शाम धूप -दीप किया जाना चाहिए।  घंटी बजा कर आरती करनी चाहिए। अक्सर लोग घरों में पत्थर के बने मंदिर भी रहने लगे हैं। यह भी गलत है। मूर्तियों की स्थापना भी करते हैं। घर अगर घर बना रहे तो ही अच्छा है  ,मूर्तियों के लिए देवालय बने हैं। क्यूंकि घर में ख़ुशी -गम ,रोग -मातम आदि होते ही रहते हैं।
 
       अक्सर देखने में यह भी आता है कि कई घरों में दिवगंत पूर्वजों की तस्वीरे भी लगा दी जाती है। मेरे विचार से यह उचित नहीं है। जो चले गए हैं वो हमारे मन में तो बसे ही होते है। उनकी तस्वीरें देख कर मन पर और भी बोझ सा पड़ता है। इस तरह से घर में नकारात्मकता ही बढती है।
    ऐसे बहुत सारी  बातें और भी है जिन पर हम दृष्टि डाल  कर भी अनदेख  कर देते हैं।

ॐ शांति ...

( चित्र गूगल से साभार )

Wednesday, October 2, 2013

नवरात्रि यानि शक्ति पर्व


 नवरात्रि यानि शक्ति पर्व। मौसम अब बदलने लगा है तो शरीर में भी आन्तरिक परिवर्तन होते है। नौ दिन के व्रत या उपवास से शरीर को नयी उर्जा प्रदान हो जाती है।
  इस वर्ष 2013 के शारदीय नवरात्रे 5 अक्टूबर दिन शनिवार, आश्विन  शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होगें।
इस दिन ब्राह्मण सरस्वती-पूजन तथा क्षत्रिय शस्त्र-पूजन आरंभ करते हैं।   नवरात्रि के नौ रातो में तीन देवियों - महाकाली, महालक्ष्मी और  सरस्वती  तथा दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं ।

घट स्थापना  05 अक्टूबर 2013, शनिवार (अश्विन शुक्ल प्रतिपदा) को श्रेष्ठ समय सुबह 08 बजकर 05 मिनट से प्रातः 09 बजे तक रहेगा।
इसके  बाद  दोपहर 12 बजकर 03 मिनट से दोपहर 12 बजकर 50 मिनट तक बीच करना शुभ है।
 स्थिर लग्न वृश्चिक में प्रातः 09 बजकर 35 मिनट से सुबह 11 बजकर 50 मिनट तक भी घट स्थापना की जा सकती है।
माँ दुर्गा  की मूर्ति  या तसवीर को लकड़ी की चौकी पर लाल अथवा पीले वस्त्र  के उपर स्थापित करना चाहिए। जल से स्नान के बाद, मौली चढ़ाते हुए, रोली चावल  धूप दीप एवं नैवेध से पूजा अर्चना करना चाहिए।
व्रत करने वाले को लाल वस्त्र और लाल आसन पर बैठना चाहिए। मुख पूर्व या उत्तर की तरफ होना चाहिए।

     नवरात्रि के प्रत्येक दिन माँ भगवती के एक स्वरुप श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। यह क्रम आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को  सुबह  से शुरू होता है। प्रतिदिन जल्दी स्नान करके माँ भगवती का ध्यान तथा पूजन करना चाहिए।
     सर्वप्रथम कलश स्थापना की जाती है।
    यह स्थापना स्वयं  या योग्य ब्राह्मण से करवाई जा सकती है।  एक साफ मिटटी के बर्तन में जौ बोये  जाते हैं। मिटटी के बीच में कलश की स्थापना की जाती है। इसके बाद दुर्गा माँ की  तस्वीर या मूर्ति की स्थापना की जाती है। लाल चुनरी अर्पित करके। धूप -दीप , नारियल  और नेवेध्य चढ़ा कर प्रतिदिन शप्तशती का पाठ करना चाहिए। पाठ के बाद सिद्धि -कुंजिका का पाठ भी विशेष फलदाई   है। सुन्दर काण्ड का पाठ भी किया जा सकता है।

नवरात्री में नित्य करने के नियम --
 १). अखंड ज्योति जलाये।
२). दीपक के नीचे चावल रखें।
३). शुद्धता और पवित्रता का ध्यान रखे  ना केवल शारीरिक ही बल्कि मानसिक पवित्रता भी बनाये रखें।  झूठ ,कपट , छल और परनिंदा से भी बचें। ब्रह्मचर्य का पालन भी आवश्यक है।
४). देवी माँ दिखावे से नहीं भक्ति से प्रसन्न होती है।
५). देवी की पूजा के बाद दूध पीने से पूजा का फल शीघ्र मिलता है।
६). " ॐ एम् ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे " , गायत्री मन्त्र का मानसिक जप भी फलदायक होता है।

       नवरात्री के अंतिम दिन कन्याओं का पूजन - भोजन करवा कर उन्हें यथा शक्ति उपहार और दक्षिणा भी दीजिये।
           मेरे विचार में यह व्रत -पूजन सिर्फ उनको ही करना चाहिए या इस व्रत के करने के वे ही अधिकारी है जिन्होंने कभी कन्या भ्रूण हत्या ना की हों। जो  भी यह  व्रत करें वे एक बार अपने दिल पर हाथ रख कर सोचे कि क्या वे सच में ये व्रत करे या कन्याओं का पूजन करें। क्यूंकि  हम कन्यायें तो चाहते है लेकिन सिर्फ दूसरों के यहाँ ही।    अंत में नवरात्रों की शुभकामनाये देते हुए मैं यही कहूँगी की कन्याओं को पूजिये  भी नहीं बल्कि सम्मान भी दीजिये।