Text selection Lock by Hindi Blog Tips

Friday, June 12, 2015

पुरुषों के स्वभाव को प्रभावित करते नव ग्रह

     सौरमंडल के नौ ग्रह सारी  प्रकृति पर अलग -अलग तरह से प्रभाव डालती है। महिला ,पुरुष और बच्चे सभी की अलग -अलग प्रवृति होती है तो ग्रह भी अलग तरह से ही प्रभाव डालेंगे। यह लेख , पुरुषों पर ग्रहों के प्रभाव से उनके स्वभाव किस तरह का बन जाता है , पर दृष्टिकोण डालता है।

सूर्य :--  सूर्य पिता और आत्मा का कारक ग्रह है। जिन पुरुषों का सूर्य बलवान और उच्च अंशों का होता है राज योग करक होता है। अग्रणी ,न्याय प्रिय , समाज में अच्छा नाम और रौब होता है। सूर्य की  भांति ही तेज़ चेहरे पर होता है।
   जिनका सूर्य कमज़ोर होता है वे आत्मा पर बोझ सा लिए घूमते हैं। हर बात में संशय या अनिर्णय की  सी स्थिति रखते हैं। घटना के घटने से पूर्व ही चिंता ग्रस्त रहते हैं। ऐसे व्यक्ति का पिता से अच्छा तालमेल नहीं होता। जो असमय पिता को खो देते है उनका भी सूर्य कमजोर हो जाता है। आत्मा -हृदय पर बोझ रखते -रखते वे एक दिन हृदय रोगी बन जाते हैं। खराब सूर्य नेत्र रोग भी देता है।
   कुण्डली में अगर सूर्य अच्छा हो कर उग्र हो जाए तो व्यक्ति अहंकारी हो जाता है। बिन मांगे राय देने वाला या अपनी बात थोपने वाला बन जाता है। जब बात नहीं मानी  जाती तो धीरे -धीरे अवसाद में घिरने लग जाता है और हृदय रोग से ग्रसित हो जाता है। ऐसा इंसान ताम्बे में जल पिए। और सन्तरी रंग से परहेज़ करे बल्कि दान दे। गेहूं और गुड़ का दान भी लाभदायक रहेगा।
    इसके लिए सबसे अच्छा उपाय है कि पिता का सम्मान करे। नित्य सुबह उठते ही पिता के पैर छुए। पिता को कभी -कभी सफ़ेद वस्त्र भेंट दे। अगर पिता नहीं है तो पिता समान व्यक्तियों  का सम्मान करे।
   उगते हुए सूर्य के दर्शन , रविवार का व्रत , आदित्य -हृदय स्त्रोत का पाठ और सूर्य को जल अर्पण करें। गायत्री मन्त्र का जप भी लाभदायक रहेगा। उगते हुए सूर्य के रंग के रुमाल , सिरहाने के कवर , बेड -शीट , कमीज़ का रंग अधिक प्रयोग करें तो फायदेमंद रहेगा। ताम्बे के गिलास में पानी पीना भी लाभप्रद रहेगा।माणिक्य भी पहना जा सकता है लेकिन कुंडली का अच्छी तरह से विश्लेषण करवा कर ही।  सूर्य अगर अच्छा फल नहीं दे रहा हो तो या नेत्र रोग और हृदय रोग अधिक सता रहा हो तो जातक को जन्म-दिन या अमावस्या को अपने वजन के बराबर गेहूं और गुड़ गऊ -शाला में दान करे।

      चन्द्रमा :-- चंद्रमा मन और माता का करक है। जिन पुरुषों कि जन्म-कुंडली में चंद्रमा अच्छा फल देता है वे उच्च कल्पनाशील होते हैं। दृढ़ निश्चयी होते हैं। शुक्र और बुध के साथ चंद्रमा का मेल होता है वे अच्छे कलाकार , लेखक और फैशन जगत में प्रसिद्ध होते हैं।
      कमज़ोर चंद्रमा मन की स्थिति को डांवाडोल रखती है। शक करने की आदत , बिना कहे ही बात का अंदाज़ा लगा कर अपनी राय  प्रकट करना , मन के भाव या मन की बात ना कह पाना , बात करते हुए अगल-बगल झांकना और पैर हिलाना ये सब कमज़ोर चंद्रमा की  निशानी है।
 अच्छा चंद्रमा उग्र हो जाये तो व्यक्ति अति कल्पना शील हो जाता और मानसिक उन्माद से घिर जाता है। ऐसे में सफ़ेद वस्त्रों का दान और सोमवार को मंदिर में चावल और दूध का दान करे।
       इसके लिए सलेटी , काले और नीले रंगों का इस्तेमाल ना किया जाय तो बेहतर रहेगा। यहाँ यह सवाल उठाया जा सकता है कि पुरुषों के परिधान अधिकतर इन्ही रंगों के होते हैं तो ये रंग छोड़े कैसे जा सकते हैं। इसके लिए सफ़ेद अंतर्वस्त्र पहने जाएँ। सफ़ेद रुमाल और हलके रंग कि बेड -शीट का प्रयोग किया जा सकता है। पानी का दुरूपयोग न करें। चाँदी के गिलास  में पानी और दूध ,पानी में केवड़ा का एसेंस डाल  कर पीना भी लाभदायक रहेगा। पूर्णिमा के चाँद को निहारना भी कमज़ोर चन्द्र को मज़बूत करता है।
      चंद्रमा को मज़बूत और शांत करने के लिए शिव आराधना भी लाभकारी होती है।

   मंगल :-- मंगल रक्त और रक्त-संबधों ,भूमि और मकान का कारक है। यह शक्ति का परिचायक होता है। अच्छा मंगल व्यक्ति को सेनाध्यक्ष या समाज में अग्रणी बनाता है। यह जरूरी नहीं कि मज़बूत मंगल से प्रभावित व्यक्ति पुलिस या सेना में पद प्राप्त करता है। वह जो भी जिम्मेदारी उठता है उसे बखूबी निभाता  भी है। शानदार व्यक्तित्व , भाइयों से अच्छे सबंध अच्छे मंगल का परिचायक है। उत्तम भूमि और भवन का स्वामी होता है।
 कुंडली में उग्र मंगल व्यक्ति को अपराधी प्रवृत्ति का बनाता  है।
   कमज़ोर मंगल व्यक्ति को दब्बू और कायर बनाता है। चेहरा निस्तेज और कमज़ोर व्यक्तित्व , भाइयों से अनबन या उनसे दब कर रहना कमज़ोर मंगल का परिचायक है।

बुध :-- बुध ग्रह मौसी ,बुआ ,वाणी , बुद्धि और चर्म रोगों का कारक  है। जन्म कुंडली का बुध अगर दूषित ग्रहों के सम्पर्क में हो या कमज़ोर अवस्था में हो तो वह इंसान को कम बुद्धिमान या भाषा में कमजोर बना देता है। वह एक तरह से दब्बू बन के रह जाता है। कमजोर बुध को बलवान करने के लिए गणेश जी , सरस्वती माँ की आराधना करे। हरे रंग की  वस्तुओं का सेवन करे। हरे वस्त्रों का प्रयोग करें।
     लेकिन अगर यही बुध ग्रह कुंडली में बलवान हो जाता है तो  ऐसे बुध से प्रभावित इंसान बोलने में , लेखन कला में और वाकपटुता में माहिर होता है। हास्य -व्यंग्य में सबसे आगे और बात में से बात निकलने वाला होता है। किसी इंसान का अच्छा बुध हो तो वह बात इस तरह से कह जाता है कि सामने वाले को मालूम भी हो जाये और किसी को पता भी नहीं चले।
      लेकिन जब भी बुध  केंद्र का स्वामी हो कर केन्द्राधिपत्य दोष से ग्रसित हो जाता है। तब यह अपने विपरीत परिणाम देने लग जाता है। ऐसा बुध इंसान की  बुद्धि पर हावी होकर बुद्धि पर नियंत्रण कर लेता है। उसे नहीं मालूम चलता कि वह क्या बोल रहा है। सामने वाले के मन को  कितनी चोट पहुंचेगी। वह इंसान बुध के वशीभूत हो कर स्वयं ही निर्णायक बन जाता है कि क्या सही है और क्या गलत। वह सिर्फ अपने विचार ही दूसरे पर थोपता है। ऐसा बुध इंसान को अलग थलग कर देता है और वह एक दिन अवसाद में घिर जाता है।
    ऐसे में उसे हरे रंग से परहेज़ करना चाहिए। हरा वस्त्र , हरा चारा और मूँग की दाल का दान करे। फिटकरी से दांत साफ करे।

वृहस्पति :-- वृहस्पति बुद्धि ,ज्ञान , सम्मान , दया और न्याय का करक ग्रह है। जिस व्यक्ति का जन्म कुंडली में वृहस्पति ग्रह उत्तम स्थिति में होता है वह व्यक्ति विद्वान और धर्माधिकारी होता है। वह किसी के प्रति अन्याय नहीं करता और ना ही होने देता है। पूजा -पाठ मे अधिक ध्यान देता है।
   लेकिन ज्ञान की अधिकता होने से कभी -कभी व्यक्ति में अहंकार भी आने लगता है। बिन मांगे राय या कहिये कि अपनी  बात ही सर्वोपरि रख कर थोप देना भी स्वभाव बना लेता है।  और यह अहंकार व्यक्ति में अकेलापन और  शरीर में मेद की अधिकता करता है। जिस कारण मोटापे में वृद्धि होकर शरीर थुलथुला हो जाता है।
  वृहस्पति को सुधारने के लिये व्यक्ति को पूजा -पाठ की  अधिकता से बचना चाहिए। सुबह या शाम को मंदिर जाना चाहिए। लेकिन आरती के समय नहीं बल्कि पहले या बाद में। ऐसा करने से अपने ईष्ट से अधिक नज़दीकी महसूस कर सकता है और मन शांत रहेगा।
   लोगों से मेल -जोल अधिक बढ़ाये और उनका दुःख -दर्द सुने , समस्याओं का समाधान करें। अगर किसी वृद्धाश्रम मे जा कर उनका दर्द बाँट सके तो वृहस्पति अच्छे फ़ल देने लगता है। यहाँ पर मेरे कहने का अभिप्राय यह नही है कि वृद्धाश्रम मे जाकर फल -मिठाइयां बाँट कर आये। वह जाकर उनके चेहरे पर मुस्कान और दिल मे ख़ुशी बाँट कर आयें तो ज्यादा अच्छा रहेगा।
   पीले रंग से परहेज़ करें। वीरवार को पीली  भोज्य वस्तु या वस्त्र दान दी जा सकती है। वीरवार का व्रत भी लाभक़ारी रहेगा। विष्णु भगवान की पूजा और मन्त्र भी लाभकारी हैं।
 कमज़ोर वृहस्पति व्यक्ति को निस्तेज , नास्तिक ,निराशावादी , पेट संबन्धित बीमारी और विवाह और संतान मे विलम्ब देता है। अगर ऐसा है तो वृहस्पति को मज़बूत करने के उपाय करने चाहिए। पीला भोजन ,वस्त्र का प्रयोग अधिक किया जाना चाहिए। व्रत करना भी लाभकारी रहेगा। वृद्ध ब्राह्मण की सेवा , मज़बूरों की  शिक्षा में सहयोग भी वृहस्पति को मज़बूत बनाता है।

शुक्र :-- शुक्र ग्रह पुरुषों में विवाह , संतान , मनोरंजन , शयनसुख और ऐश्वर्य  का कारक  है। शुक्र से प्रभावित व्यक्ति ( अगर लग्न में शुक्र हो ) सांवले रंग का होता है। शुक्र गोरे रंग का नहीं बल्कि सौंदर्य का प्रतीक होता है। चेहरे से ही झलकता है अच्छा शुक्र। अच्छा शुक्र व्यक्ति को आकर्षक व्यक्तित्व के साथ -साथ उत्तम भवन ,वाहन , वस्त्राभूषण और सुखसुविधा प्रदान करता है। संगीत , कला और काव्य में पारंगत होता है। जन्म कुंडली का अच्छा शुक्र व्यक्ति को उत्तम चिकित्स्क और ज्योतिषी भी बना सकता है।
      कमज़ोर शुक्र  सौंदर्य में कमी सुख सुविधा में कमी , जीवन साथी से दूरी , नेत्र रोग,  गुप्तेन्द्रीय रोग,वीर्य दोष से होने वाले रोग , प्रोस्ट्रेट ग्लैंड्स, प्रमेह,मूत्र विकार ,सुजाक , कामान्धता,श्वेत या रक्त प्रदर ,पांडु इत्यादि रोग  उत्पन्न करता है।  
     कमज़ोर शुक्र को बलवान करने के लिए क्रीम रंग के कपड़ों का प्रयोग करना चाहिए। शुक्रवार का व्रत , देवी उपासना ( लक्ष्मी और दुर्गा ) करनी चाहिए। शुक्रवार को कन्याओं को खीर खिलाना , गाय को चारा डालना भी उचित रहेगा।  आलू का दान भी शुक्र मज़बूत करता है। 
   दूषित शुक्र से प्रभावित व्यक्ति समाज विरोधी गतिविधियों में संलग्न रहता है। मित्रों से नहीं बनती ,स्त्रियों में अधिक रूचि लेता है। सिनेमा , अश्लील-साहित्य और काम-वासना की ओर अधिक ध्यान रहता है। ऐसे में व्यक्ति को दुर्गा माँ की आराधना , नारी जाति  के प्रति सम्मान की भावना और सफ़ेद दूधिया रंग के वस्त्रों का दान करना चाहिए। खुशबुओं का प्रयोग अधिक मात्रा में ना करे। 

शनि :--  शनिग्रह के कुंडली में ग्रहों के साथ और किस भाव में स्थित है यह महत्वपूर्ण होता है क्यूंकि शनि जिस किसी भी भाव में स्थित होता है उस भाव की वृद्धि करता है लेकिन जिस भाव पर दृष्टि पड़ती है उस भाव के सुखों में कमी लाता है।
  अच्छा शनि व्यक्ति को न्याय प्रिय , विदेशी भाषा में पारंगत , उच्चाधिकारी , लोहे सम्बन्धी व्यापार का कारक बनता है। शनि ग्रह से प्रभावित व्यक्ति अपनी अलग विचारधारा बना कर रखता है। समाज से हट कर सोच रखता है। 
     कमज़ोर शनि से व्यक्ति आलसी , कामचोर और निर्धन बनता है। झगड़ालू भी बनाता है शनि । 
   शनि अँधेरे का कारक है जिस कारण से व्यक्ति निशाचर बना रहता है मतलब यह है कि अपराधी प्रवृत्ति अपना लेता है। वात रोग , अस्थि रोग , मनोन्माद भी यही देता है। पेट के रोग,जंघाओं के रोग,टीबी,कैंसर आदि रोग भी शनि की देन है। 
      शनि  को मज़बूत के लिए व्यक्ति को आचरण में सुधार लाना होगा। देश के प्रति प्रेम ,सेवा और सद्भावना रखनी होगी। हर कोई तो सीमा पर जा कर प्रहरी नहीं बन सकता तो देश सेवा के और भी मायने है जैसे राष्ट्रिय संपत्ति की सुरक्षा , पानी -बिजली की फिजूल खर्ची ना करना और अपने देश के प्रति कर्तव्यों का भली  भांति पालन करना भी शनि ग्रह अच्छा फल देने लग जाता है। 
    अपने नौकरों  दया भाव रखना भी शनि को अनुकूल बनाता है। 
काली माता , हनुमान जी और शिव जी की आराधना , शनि स्त्रोत ,हनुमान चालीसा , सुन्दरकाण्ड का पाठ तथा दुर्गा शप्तशती का पाठ शनि को शांत करने में सहायक है। काले , गहरे नीले रंगों का इस्तेमाल ना करें बल्कि शनिवार को दान दें। शनिवार को राज़मा , काले उड़द और तेल का दान भी उपयुक्त रहेगा। शनिवार को चमेली के तेल का दीपक हनुमान जी के आगे करना शनि को शांत करेगा। 

राहु :--   राहु एक तमोगुणी मलेच्छ और छाया  ग्रह माना गया है। इसका प्रभाव शनि की भांति  ही होता है।
यह तीक्ष्ण  बुद्धि , वाक्पटुता , आत्मकेंद्रिता ,स्वार्थ , विघटन और अलगाव , रहस्य  मति भ्रम , आलस्य  छल - कपट ( राजनीति ) , तस्करी ( चोरी ), अचानक घटित होने वाली घटनाओं , जुआ  और  झूठ का कारक  है।
  राहू से प्रभावित पुरुष  एक अच्छा  जासूस या वकील , अच्छा राजनीतीज्ञ  हो सकता  है। वह आने वाली बात को पहले ही भांप लेता है। विदेश यात्राएं भी बहुत करवाता है राहु।
  कुंडली में राहू जिस राशि में स्थित होता है वैसे ही परिणाम देने लगता है। अगर वृहस्पति के साथ या उसकी राशि में हो तो ज्योतिष की तरफ रुझान देगा । शनि के प्रभाव में तो तांत्रिक - विद्या में निपुण होगा।
    राहु से प्रभावित पुरुष भ्रम में रहता है और कई बार गलत फैसले ले लेता है या अनैतिक कार्यों में फंसा देता है। यहाँ पर अगर राहु अच्छा हुआ तो बहुत रूपये , ऊँचा पद आदि दिलवाता है। लेकिन यही राहु व्यक्ति को रूपये और पद का अभिमान भी देता है। इसलिए व्यक्ति घमंडी ,पाखंडी और क्रूर हो जाता है।
        राहु की महादशा 18 वर्ष के लिए होती है। महादशा के शुरूआत में राहु व्यक्ति को भ्रम जाल में फंसाकर बहुत धन दिलवाता है लेकिन यही राहु महादशा के अंत में सब कुछ समेट कर ले भी जाता है। अगर इस दौरान व्यक्ति स्व विवेक से काम ले और सही मार्ग पर चले तो राहु के दुष्प्रभाव नहीं होंगे।
          दूषित राहु की स्थिति में व्यक्ति मलिन और फटे वस्त्र ( अंतर्वस्त्र भी ) पहनता है , चर्म  -रोग ,मति -भ्रम , अवसाद रोग से ग्रस्त हो सकता है।
          राहु को शांत करने के लिए दुर्गा माँ की आराधना करनी चाहिए। खुल कर हँसना चाहिए। मलिन और फटे वस्त्र नहीं पहनना चाहिए। गहरे नीले रंग से परहेज़ करना चाहिए। काले रंग की गाय की सेवा करनी चाहिए।मधुर संगीत सुनना चाहिए। रामरक्षा स्त्रोत का पाठ भी लाभ दायक रहेगा।
     इसकी शांति के लिए गोमेद रत्न धारण किया जा सकता है लेकिन किसी अच्छे ज्योतिषी की राय ले कर ही।

केतु :-- केतु ग्रह उष्ण ,तमोगुणी पाप ग्रह है।केतु का अर्थ ध्वजा भी होता है किसी स्वग्रही ग्रह के साथ यह हो तो उस ग्रह का फल चौगुना कर देता है।यह नाना , ज्वर , घाव , दर्द , भूत -प्रेत , आंतो के रोग , बहरापन और हकलाने का कारक है। यह मोक्ष का कारक भी माना  जाता है।
   केतु मंगल की भांति कार्य करता है। यदि दोनों की युति हो तो मंगल का प्रभाव दुगुना हो जाता है।यदि केतु शनि के साथ हो तो यहाँ शनि-मंगल की युति के सामान ही मानी जाती है।
      राहू की भांति केतु भी छाया ग्रह है इसलिए इसका अपना कोई फल नहीं होता है।जिस राशि में या जिस ग्रह के साथ युति करता है वैसा ही फल देता है।
   केतु से प्रभावित पुरुष कुछ भ्रमित  सा रहता है  है। शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता नहीं होती क्यूँ कि यह ग्रह मात्र धड़ का ही प्रतीक होता है और राहू इस देह का कटा सर होता है।   अच्छा केतुपुरुष  को उच्च पद , समाज में सम्मानित , तंत्र-मन्त्र और ज्योतिष का ज्ञाता बनाता है।
                      बुरा केतु व्यक्ति  की बुद्धि भ्रमित कर के उसे  सही समय  निर्णय लेने में बाधित करता है। बार -बार कार्य-नौकरी बदलने की सोचता है।
          चर्म रोग से ग्रसित कर देता है। काम-वासना की अधिकता भी कर देता है जिसके फलस्वरूप कई बार दाम्पत्य -जीवन कष्टमय हो जाता है। वाणी भी कटु कर देता है।
       केतु का प्रभाव अलग - अलग ग्रहों के साथ युति और अलग-अलग भावों में स्थिति होने के कारण इसका प्रभाव ज्यादा या कम हो सकता है। इसके लिए किसी अच्छे ज्योतिषी से कुंडली का विश्लेषण करवाकर ही उपाय करवाना चाहिए।
     केतु के लिए लहसुनिया नग उपयुक्त माना  गया है।मंगल वार का व्रत और हनुमान जी की आराधना विशेष फलदायी होती है।चिड़ियों को बाजरी के दाने खिलाना और भूरे-चितकबरे वस्त्र का दान तथा इन्हीं रंगों के पशुओं की सेवा करना उचित रहेगा।
ॐ शांति ...

,©Upasna siag