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Tuesday, September 17, 2013

पितृ दोष

       पितृ ऋण या पितृ दोष , जन्म -कुंडली में एक ऐसा दोष है जोकि  इन्सान की प्रगति में बाधक होता  है।  किसी भी कुंडली को देखने से यह बताया  है कि जातक को किस प्रकार का ऋण दोष है।
 सबसे पहले तो यह जानते हैं कि पितृ दोष क्या है। इसके बहुत सारे ज्योतिषीय कारण  है। इसे  राहू , सूर्य        वृहस्पति की विभिन्न भावों में स्थिति से जाना जा सकता है।  यह भी कई प्रकार के होते हैं जैसे पितृ ऋण , स्त्री ऋण , भगिनी ऋण , भ्राता ऋण , गुरु ऋण , मातृ ऋण आदि। यहाँ मैं सिर्फ सामान्य जन को समझ आये वह भाषा  ही कहूँगी , क्यूंकि हर किसी को कुंडली की समझ नहीं होती।
         पूर्व जन्म में यदि किसी ने किसी को संताप दिया हो जैसे दैहिक , भौतिक  या मानसिक भी , तो वह अगले जन्म में उस जातक की कुंडली में दोष बन कर जीवन में बाधा का कारण  बन जाता है।
लक्षण :--
   १) . परिवार में अशांति , विशेषतया भोजन के  समय कोई बहस या तकरार।
   २ ). कन्या संतान का जन्म और पुत्र का अभाव।
   ३ ). धन की  बरकत न होना।
   ४ ). घर में बीमारी बनी रहना।
   ५ ). निसन्तान रहना।
   ६ ). बच्चों के विवाह में अड़चन।
   ७ ). कोई भी शुभ काम के बाद कोई अशुभ होना। जैसे झगड़ा , चोट लगना , आग लगना , मौत या मौत की खबर आदि कोई भी अशुभ समाचार मिलना।
 यदि उपरोक्त लक्षण  घर में दिखाई देते  जन्म कुंडली दिखा कर उचित उपचार से शांति पाई जा सकती है।
   
    कई बार यह भी देखने में आया है कि जन्म कुंडली में कोई दोष नहीं होता है फिर भी जातक मुश्किलों में घिरा रहता है।  तो इसके लिए उसे अपने परिवार की पृष्ठभूमि  पर विचार करना चाहिए।  क्या उनके परिवार में उनके पूर्वजों का विधिवत श्राद्ध किया जाता है। क्या उसके पूर्वजों को  कहीं से मुफ्त का धन तो नहीं मिला।
       कुछ लोग श्राद्ध करने की बजाय मजबूरों को भोजन करवाना अधिक उचित समझते हैं। उनका तर्क होता है कि ब्राह्मणों की बजाय ये लोग ज्यादा आशीर्वाद देंगे।  यह बात सही है कि किसी भी भूखे को भोजन करवाएंगे तो वह आशीर्वाद देगा ही।  तो आशीर्वाद के लिए जरुर भोजन करवाएं।  लेकिन श्राद्ध कर्म तो एक ब्राह्मण ही कर सकता है और तभी पूर्वजों का आशीर्वाद भी मिलेगा।  यह श्राद्ध करने वाले को यह ध्यान रखना चाहिए कि वह सुपात्र को ही आमंत्रित करे।  मंदिर का पुजारी हो तो अधिक  उचित रहेगा नहीं तो कोई भी कर्मकांडी या जनेउ धारी ब्राह्मण होना चाहिए।
           मुफ्त का धन जिसे  कोई निसन्तान व्यक्ति अपनी जायदाद विरासत में दे जाता है या ससुराल से मिला धन। मैं यहाँ उस धन की बात नहीं कर रही जो किसी स्त्री को उसके विवाह में मिला है। यहाँ मैं कहना चाहूंगी की यह वो धन है जो ससुराल में स्त्री के पिता की मृत्यु के बाद मिला है जबकि उसके भाई ना हो। ऐसी स्थिति में धन का उपभोग तो हो रहा है लेकिन जिसके धन का उपभोग हो रहा है उसके नाम का कोई भी दान -पुन्य नहीं किया जा रहा।
           हमारे समाज में वंश परम्परा चलती है इसी के सिलसिले में पुत्र का जन्म अनिवार्य माना गया है। अगर पुत्र ना हो तो उसकी विरासत पुत्रियों में बाँट दी जाती है। जैसे की समाज का चलन है तो विचार भी यही  हैं कि अगर पुत्र नहीं होगा तो उसका कमाया धन लोग ही खायेंगे। उनका नाम लेने वाला कोई नहीं होगा , आदि -आदि। जब ऐसे इन्सान के धन का उपभोग किया जाये और उसके नाम को भी याद ना किया जाये तो घर में अशांति तो होगी ही। एक अशांत आत्मा किसी को खुश रहने का आशीर्वाद कैसे दे सकती है। ऐसी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध तो करना ही चाहिए।  साथ ही वर्ष में एक बार उसके नाम का कोई दान कर देना चाहिए।  जैसे किसी जरूरत मंद कन्या का विवाह , कहीं पानी की व्यवस्था , या किसी बच्चे की स्कूल की फीस आदि कुछ न कुछ धन राशि जरुर उसके नाम की निकालनी चाहिए।
         जब किसी को परिवार से ही जैसे ताऊ या  चाचा जो कि या  निसन्तान हो या अविवाहित हो।  अथवा असमय अकाल मौत हुई हो और उनका कोई वारिस ना  हो तो ऐसे धन का उपभोग भी  परिवार में अशांति लाता है। अक्सर देखा गया है कि ऐसे धन को उपभोग  वाले की सबसे  छोटी संतान अधिक संताप भोगती है।
            'ऐसे में  फिर क्या किया जाए  ?'
    यहाँ भी जिसका भी धन उपभोग किया जा रहा है उसका विधिवत श्राद्ध और उसके नाम से कुछ धन राशी का दान किया जाये तो शांति  बनी रह सकती है।
        कई बार परिवार के कुल देवता का अनादर भी परिवार में अशांति  का कारण बनती है। ये जो  कुल देवता या पितृ होते हैं , वे हमारे और ईश्वर के मध्य संदेशवाहक का कार्य हैं।  यदि ये प्रसन्न होंगे तो ईश्वर की कृपा जल्दी प्राप्त होती है।
         कई बार कोई व्यक्ति किसी निसंतान दम्पति द्वारा  गोद लिया जाता है। ऐसे में उसे , वह जिस परिवार में जन्मा है , उस परिवार के कुल देवताओं की पूजा भी करने पड़ती है। क्यूंकि उसमें उस परिवार का (जहाँ जन्म लिया है उसने ) भी ऋण चुकाना होता है। जहाँ वह रहता है वहां के कुल देवता की भी पूजा करनी होती है उसे। तभी उसके जीवन में शांति बनी रहती है।


          दोष हैं तो हल भी है :--
 १ ) .  श्राद्ध कर के ब्राह्मण को वस्त्र -दक्षिणा आदि दीजिये।
२ ).  गाय की सेवा कीजिये।  इसके लिए किसी भी मजबूर व्यक्ति की गाय के लिए साल भर के लिए चारे की व्यवस्था कीजिये।
३ ). चिड़ियों को बाजरी के दाने  डालिए।
४ ). कोवों को रोटी।
५ ). हर अमावस्या को मंदिर में सूखी रसोई और दूध का दान कीजिये।
६ ).  हर मौसम में जो भी नई सब्जी और फल हो उसे पहले अपने पितरों और कुल देवताओं के नाम मंदिर में दान दीजिये।
७ ). हर अमावस्या को गाय को हरा चारा डलवायें।
८ ) . किसी धार्मिक स्थल पर आम और पीपल का वृक्ष लगवा दे।
९ ). तुलसी की सेवा।
१०). अपने पूर्वजों के नाम पर जल की व्यवस्था करनी चाहिए।
पितरो  के निमित्त  दूध देने की विधि :--- एक गिलास कच्चे  दूध में  चीनी मिला कर  छान लीजिये। अब थोडा दूध एक कटोरी में डाल  कर उसे अपनी हथेली से ढक कर विष्णु भगवान को स्मरण करते हुए कहिये , " विष्णु भगवान के लिए। " गिलास के बचे हुए दूध को भी हथेली से ढकते हुए कहिये , " सभी पितरों के लिए। " अब कटोरी के दूध को गिलास के दूध में मिला दीजिये।  यह दूध पुजारी को पीने को दीजिये साथ ही श्रद्धा अनुसार दक्षिणा भी दीजिये।
        सुन्दर काण्ड , गीता और आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ भी पितृ दोष में शांति देता है।


ॐ शांति  …।