केमद्रुम योग
जन्म कुंडली केमद्रुम योग तब बनता है जब चन्द्रमा से बाहरवें और दूसरे स्थान ( भाव/घर ) में कोई ग्रह ना हो। यह योग किसी भी मनुष्य को प्रगति के पथ पर जाने को रोकने वाला होता है। जीवन में हर जगह बाधक होता है। बार-बार प्रयास करने पर भी सफलता नहीं मिलती है। कई बार निराशा, व्यग्रता, तथा असफलता व्यक्ति को संतप्त कर देती है।
जब चन्द्रमा से गुरु द्विद्वादश या षडाष्टक हो या चन्द्रमा अशुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तथा शुभ ग्रहों और पूर्व जन्म का पुण्य फल ना हो तो इस योग की अशुभता में प्रचुर वृद्धि होती है।
विद्वानों के शोधानुसार यदि चन्द्रमा किसी शुभ ग्रह से युक्त हो तो अशुभ प्रभाव में कमी तो आ सकती है लेकिन समाप्त नहीं होगा। किसी भी कुंडली में चाहे कितने भी राजयोग क्यों ना बनते हो ; केमद्रुम योग के विद्यमान होने के कारन शुभ योगों में कमी आ सकती है।
यह योग जीवन में दुःख के अनेक कारण उत्पन्न करता है। प्रयास निष्फल होते हैं। संतान,पत्नी और सम्बन्धी भी व्यथा के कारन बनते हैं। निरर्थक यात्रा,धन का अपव्यय प्रायः उदास और निराश कर देती है। सभी प्रकार के सुख होते हुए भी मनुष्य स्वयं को उदासीन करता जाता है। धन कमाने और संचय करने में भ्रम की स्थिति रह कर अक्सर विपरीत चाल चल पड़ता है।
विभिन्न ज्योतिष शास्त्रों और विद्वानोंने अपने -अपने ढंग से इसकी व्याख्या की है और इसे जन्म कुंडली में बाधक योग स्वीकार किया है।
ज्योतिषतत्वम के अनुसार चन्द्रमा के दूसरे और बाहरवें स्थान में सूर्य के अतिरिक्त को ग्रह ना हो तो , केमद्रुम नामक दरिद्र योग निर्मित होता है। लग्न या सप्तम में चन्द्रमा हो और उसे वृहस्पति ना देखता हो तो :--
१ ). सभी ग्रह अल्प रेखा से युक्त हो और बल हीन हों।
२). यदि शुक्र और शनि शत्रु राशि में हों , पाप राशि या नीच राशि में हो ; दोनों परस्पर देखते हो या एक साथ स्थित हो।
३ ). चन्द्रमा पापग्रह से युक्त हो कर पापराशि तथा पाप नवांश में हो।
४ ). रात्रि का जन्म हो और निर्बल चन्द्रमा दशमेश से दृष्ट हो।
५ ). नीच का चन्द्रमा यदि पापग्रह से युक्त होकर नवमेश से दृष्ट हो।
६ ). रात्रि का जन्म हो और क्षीण चन्द्रमा यदि नीचराशिगत ग्रह से युक्त हो तो उक्त केमद्रुम योगों से उत्पन्न राजवंश का जातक भी दरिद्रता प्राप्त होता है।
केमद्रुम भङ्ग योग :--
केमद्रुम योग कुछ विशेष स्तिथियों में बेअसर हो जाता है। उसकी अशुभता का असर नहीं होता और इसका बाधक प्रभाव जीवन पर नहीं पड़ता है। ज्योतिषतत्वम के अनुसार ; केंद्र में चन्द्रमा और शुक्र हों और वह गुरु से दृष्ट हो तो :--
१) . चन्द्रमा यदि ग्रह से युक्त हो तो केमद्रुम दरिद्र योग भङ्ग हो जाता है ,
२). लग्न में पूर्ण चन्द्रमा हो और वह शुभ ग्रह से युक्त हो।
३). दशम भाव में उच्च का चन्द्रमा हो और वह गुरु से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग भङ्ग हो जाता है।
केमद्रुम योग का शमन :--
शिव उपासना या शिव जी की शरण ले कर सम्पूर्ण समर्पण कर देना ही इसका एक उपाय है। चन्द्रमा के तांत्रिक मन्त्र ' " ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः " का जप करना चाहिए।
सोलह रत्ती ताम्बा , बारह रत्ती चाँदी एवं दस रत्ती सोना , इन तीन धातुओं की अंगूठी पुष्य-नक्षत्र में बना कर धारण की जाये तो कैसी भी दरिद्रता हो , धीरे-धीरे नष्ट हो जाती है।
भगवन विष्णु की उपासना करें।
दस या बीस रत्ती से अधिक का मोती अनामिका में धारण करें। मोती धारण करने से पूर्व अपनी कुंडली अच्छे से विश्लेषण करवा लें। क्यूंकि अगर चन्द्रमा 6,8,12 भावों में हो तो मोती धारण नहीं किया जा सकता है।
चन्द्रमा के दान हेतु मोती,कपूर, गाय का दूध , दही , सफ़ेद बैल या गाय , चीनी ,चाँदी , खीर , बताशे , रेवड़ी , चावल , सफ़ेद कमल , सफेद वस्त्र, बाँस का पात्र ,धन आदि का दान सोमवार या पूर्णमासी की शाम को करना चाहिए।
सोमवार का व्रत करना चाहिए। पूर्णमासिका व्रत करना भी उपयुक्त रहेगा। जिस सोमवार या चित्रा नक्षत्र को पूर्णिमा आती है ; उस दिन से व्रत का संकल्प ले कर 48 पूर्णिमा यानि चार साल व्रत करना चाहिए। सारा दिन निराहार रह कर शाम को पूजन कर खीर का भोग लगा कर , चन्द्रमा को अर्ध्य दे कर भोजन ग्रहण करना चाहिए। भोजन में सामान्य नमक का प्रयोग किया जा सकता है।
शिव जी का पूजन - दर्शन करना चाहिए। शिवलिंग का दूध से अभिषेक करना चाहिए। रुद्राभिषेक करवाने से भी इस योग के प्रभाव में कमी आ सकती है।
उपासना सियाग
8264901089
जब चन्द्रमा से गुरु द्विद्वादश या षडाष्टक हो या चन्द्रमा अशुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तथा शुभ ग्रहों और पूर्व जन्म का पुण्य फल ना हो तो इस योग की अशुभता में प्रचुर वृद्धि होती है।
विद्वानों के शोधानुसार यदि चन्द्रमा किसी शुभ ग्रह से युक्त हो तो अशुभ प्रभाव में कमी तो आ सकती है लेकिन समाप्त नहीं होगा। किसी भी कुंडली में चाहे कितने भी राजयोग क्यों ना बनते हो ; केमद्रुम योग के विद्यमान होने के कारन शुभ योगों में कमी आ सकती है।
यह योग जीवन में दुःख के अनेक कारण उत्पन्न करता है। प्रयास निष्फल होते हैं। संतान,पत्नी और सम्बन्धी भी व्यथा के कारन बनते हैं। निरर्थक यात्रा,धन का अपव्यय प्रायः उदास और निराश कर देती है। सभी प्रकार के सुख होते हुए भी मनुष्य स्वयं को उदासीन करता जाता है। धन कमाने और संचय करने में भ्रम की स्थिति रह कर अक्सर विपरीत चाल चल पड़ता है।
विभिन्न ज्योतिष शास्त्रों और विद्वानोंने अपने -अपने ढंग से इसकी व्याख्या की है और इसे जन्म कुंडली में बाधक योग स्वीकार किया है।
ज्योतिषतत्वम के अनुसार चन्द्रमा के दूसरे और बाहरवें स्थान में सूर्य के अतिरिक्त को ग्रह ना हो तो , केमद्रुम नामक दरिद्र योग निर्मित होता है। लग्न या सप्तम में चन्द्रमा हो और उसे वृहस्पति ना देखता हो तो :--
१ ). सभी ग्रह अल्प रेखा से युक्त हो और बल हीन हों।
२). यदि शुक्र और शनि शत्रु राशि में हों , पाप राशि या नीच राशि में हो ; दोनों परस्पर देखते हो या एक साथ स्थित हो।
३ ). चन्द्रमा पापग्रह से युक्त हो कर पापराशि तथा पाप नवांश में हो।
४ ). रात्रि का जन्म हो और निर्बल चन्द्रमा दशमेश से दृष्ट हो।
५ ). नीच का चन्द्रमा यदि पापग्रह से युक्त होकर नवमेश से दृष्ट हो।
६ ). रात्रि का जन्म हो और क्षीण चन्द्रमा यदि नीचराशिगत ग्रह से युक्त हो तो उक्त केमद्रुम योगों से उत्पन्न राजवंश का जातक भी दरिद्रता प्राप्त होता है।
केमद्रुम भङ्ग योग :--
केमद्रुम योग कुछ विशेष स्तिथियों में बेअसर हो जाता है। उसकी अशुभता का असर नहीं होता और इसका बाधक प्रभाव जीवन पर नहीं पड़ता है। ज्योतिषतत्वम के अनुसार ; केंद्र में चन्द्रमा और शुक्र हों और वह गुरु से दृष्ट हो तो :--
१) . चन्द्रमा यदि ग्रह से युक्त हो तो केमद्रुम दरिद्र योग भङ्ग हो जाता है ,
२). लग्न में पूर्ण चन्द्रमा हो और वह शुभ ग्रह से युक्त हो।
३). दशम भाव में उच्च का चन्द्रमा हो और वह गुरु से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग भङ्ग हो जाता है।
केमद्रुम योग का शमन :--
शिव उपासना या शिव जी की शरण ले कर सम्पूर्ण समर्पण कर देना ही इसका एक उपाय है। चन्द्रमा के तांत्रिक मन्त्र ' " ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः " का जप करना चाहिए।
सोलह रत्ती ताम्बा , बारह रत्ती चाँदी एवं दस रत्ती सोना , इन तीन धातुओं की अंगूठी पुष्य-नक्षत्र में बना कर धारण की जाये तो कैसी भी दरिद्रता हो , धीरे-धीरे नष्ट हो जाती है।
भगवन विष्णु की उपासना करें।
दस या बीस रत्ती से अधिक का मोती अनामिका में धारण करें। मोती धारण करने से पूर्व अपनी कुंडली अच्छे से विश्लेषण करवा लें। क्यूंकि अगर चन्द्रमा 6,8,12 भावों में हो तो मोती धारण नहीं किया जा सकता है।
चन्द्रमा के दान हेतु मोती,कपूर, गाय का दूध , दही , सफ़ेद बैल या गाय , चीनी ,चाँदी , खीर , बताशे , रेवड़ी , चावल , सफ़ेद कमल , सफेद वस्त्र, बाँस का पात्र ,धन आदि का दान सोमवार या पूर्णमासी की शाम को करना चाहिए।
सोमवार का व्रत करना चाहिए। पूर्णमासिका व्रत करना भी उपयुक्त रहेगा। जिस सोमवार या चित्रा नक्षत्र को पूर्णिमा आती है ; उस दिन से व्रत का संकल्प ले कर 48 पूर्णिमा यानि चार साल व्रत करना चाहिए। सारा दिन निराहार रह कर शाम को पूजन कर खीर का भोग लगा कर , चन्द्रमा को अर्ध्य दे कर भोजन ग्रहण करना चाहिए। भोजन में सामान्य नमक का प्रयोग किया जा सकता है।
शिव जी का पूजन - दर्शन करना चाहिए। शिवलिंग का दूध से अभिषेक करना चाहिए। रुद्राभिषेक करवाने से भी इस योग के प्रभाव में कमी आ सकती है।
उपासना सियाग
8264901089