काल सर्प योग का जिक्र प्राचीन वैदिक ज्योतिष में नहीं आया है ,इसकी खोज तकरीबन सौ वर्ष पहले की गयी और पाया गया कि जो ग्रह राहू और केतू के घेरे में आते हों और जातक के कष्टों का कारण बनते है ..........उसे काल सर्प योग का नाम दिया गया .
राहु और केतु छाया ग्रह हैं जो सदैव एक दूसरे से सातवें भाव में होते हैं.जब सभी ग्रह क्रमवार से इन दोनों ग्रहों के बीच आ जाते हैं तब यह योग बनता है,जिससे बाकी ग्रह अपना पूर्ण रूप से फल नहीं दे पाते और जातक भाग्य के हाथों का खिलौना बन जाता है ,उसे ये निम्न प्रकार के कष्ट घेरे रहते है ----
( 1 ).जातक को अपनी मेहनत का पूरा फल नहीं मिल पाता.
( 2 ).विवाह में देरी और वैवाहिक जीवन में तनाव
( 3 ).संतान में देरी और उससे सुख कि प्राप्ति नहीं होती .
( 4 ).शारीरिक और मानसिक दुर्बलता
( 5 ).अकाल मृत्यु या मृत्यु तुल्य कष्ट .
वैसे तो ये दो सौ अठासी प्रकार के होते है ,पर मुख्य रूप से बारह प्रकार के है ----
१- अनंत
२-कुलिक
३-वासुकी
४-शंख पाल
5-पदम्
6-महापदम
7-तक्षक
8-कर्कोटक
9-शंखनाद
१० -पातकी
११ -विषाक्त
१२ -शेषनाग
लेकिन आज -कल अधिकतर ज्योतिषी कालसर्प का डर -भय दिखला कर जनता को भयभीत कर के
काफी मात्र में धन का शोषण करते है ,जबकि उनको इसके बारे में ज्यादा ज्ञान नहीं होता क्यूँ कि इस योग में----१) कारक एवं अकारक ग्रह के साथ -साथ योग
२) केमद्रुम संकट योग के साथ सम्मिलित योग ,
३)चंद्रमा से केन्द्रस्थ मुख योग ,
४)बुध से केन्द्रस्थ शनि योग
५)शनि ,सूर्य युति
६) शनि -मंगल युति
७)राहू -केतू में से किसी एक के साथ युति
८ )सूर्य ,मंगल ,शनि में से एक या दो या तीनो की एक साथ युति या अलग से अलग दृष्टि का प्रभाव जातक की कुंडली पर पड़ता है .........
इस योग के कारण जातक अपने प्रियजनों से शत्रुवत व्यवहार कर सकता है , परन्तु कोई भी इंसान जिसकी कुंडली में यह योग हो तो वह विलक्षण बुद्धि युक्त भी होता है और अपने दृढ -निश्चय से अपने कष्टों से उबर सकता है ........
इस के प्रभाव को कम करके सरल उपाय है ,जातक शिव की आराधना करे और सदाचारी रहे .
रंग धातु या ताम्बे के सर्प बनवा कर शिव -मंदिर में अर्पित करें और रुद्राभिषेक कर ॐ नमः शिवाय का जप अवश्य करें .
महामृत्युंजय मन्त्र का जाप भी करें ,यह स्वयम ही करें किसी और से ना करवाएं .........
राहु और केतु छाया ग्रह हैं जो सदैव एक दूसरे से सातवें भाव में होते हैं.जब सभी ग्रह क्रमवार से इन दोनों ग्रहों के बीच आ जाते हैं तब यह योग बनता है,जिससे बाकी ग्रह अपना पूर्ण रूप से फल नहीं दे पाते और जातक भाग्य के हाथों का खिलौना बन जाता है ,उसे ये निम्न प्रकार के कष्ट घेरे रहते है ----
( 1 ).जातक को अपनी मेहनत का पूरा फल नहीं मिल पाता.
( 2 ).विवाह में देरी और वैवाहिक जीवन में तनाव
( 3 ).संतान में देरी और उससे सुख कि प्राप्ति नहीं होती .
( 4 ).शारीरिक और मानसिक दुर्बलता
( 5 ).अकाल मृत्यु या मृत्यु तुल्य कष्ट .
वैसे तो ये दो सौ अठासी प्रकार के होते है ,पर मुख्य रूप से बारह प्रकार के है ----
१- अनंत
२-कुलिक
३-वासुकी
४-शंख पाल
5-पदम्
6-महापदम
7-तक्षक
8-कर्कोटक
9-शंखनाद
१० -पातकी
११ -विषाक्त
१२ -शेषनाग
लेकिन आज -कल अधिकतर ज्योतिषी कालसर्प का डर -भय दिखला कर जनता को भयभीत कर के
काफी मात्र में धन का शोषण करते है ,जबकि उनको इसके बारे में ज्यादा ज्ञान नहीं होता क्यूँ कि इस योग में----१) कारक एवं अकारक ग्रह के साथ -साथ योग
२) केमद्रुम संकट योग के साथ सम्मिलित योग ,
३)चंद्रमा से केन्द्रस्थ मुख योग ,
४)बुध से केन्द्रस्थ शनि योग
५)शनि ,सूर्य युति
६) शनि -मंगल युति
७)राहू -केतू में से किसी एक के साथ युति
८ )सूर्य ,मंगल ,शनि में से एक या दो या तीनो की एक साथ युति या अलग से अलग दृष्टि का प्रभाव जातक की कुंडली पर पड़ता है .........
इस योग के कारण जातक अपने प्रियजनों से शत्रुवत व्यवहार कर सकता है , परन्तु कोई भी इंसान जिसकी कुंडली में यह योग हो तो वह विलक्षण बुद्धि युक्त भी होता है और अपने दृढ -निश्चय से अपने कष्टों से उबर सकता है ........
इस के प्रभाव को कम करके सरल उपाय है ,जातक शिव की आराधना करे और सदाचारी रहे .
रंग धातु या ताम्बे के सर्प बनवा कर शिव -मंदिर में अर्पित करें और रुद्राभिषेक कर ॐ नमः शिवाय का जप अवश्य करें .
महामृत्युंजय मन्त्र का जाप भी करें ,यह स्वयम ही करें किसी और से ना करवाएं .........
अच्छी जानकारी ..
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