इस वर्ष 2013 के शारदीय नवरात्रे 5 अक्टूबर दिन शनिवार, आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होगें।
इस दिन ब्राह्मण सरस्वती-पूजन तथा क्षत्रिय शस्त्र-पूजन आरंभ करते हैं। नवरात्रि के नौ रातो में तीन देवियों - महाकाली, महालक्ष्मी और सरस्वती तथा दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं ।
घट स्थापना 05 अक्टूबर 2013, शनिवार (अश्विन शुक्ल प्रतिपदा) को श्रेष्ठ समय सुबह 08 बजकर 05 मिनट से प्रातः 09 बजे तक रहेगा।
इसके बाद दोपहर 12 बजकर 03 मिनट से दोपहर 12 बजकर 50 मिनट तक बीच करना शुभ है।
स्थिर लग्न वृश्चिक में प्रातः 09 बजकर 35 मिनट से सुबह 11 बजकर 50 मिनट तक भी घट स्थापना की जा सकती है।
माँ दुर्गा की मूर्ति या तसवीर को लकड़ी की चौकी पर लाल अथवा पीले वस्त्र के उपर स्थापित करना चाहिए। जल से स्नान के बाद, मौली चढ़ाते हुए, रोली चावल धूप दीप एवं नैवेध से पूजा अर्चना करना चाहिए।
व्रत करने वाले को लाल वस्त्र और लाल आसन पर बैठना चाहिए। मुख पूर्व या उत्तर की तरफ होना चाहिए।
नवरात्रि के प्रत्येक दिन माँ भगवती के एक स्वरुप श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। यह क्रम आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को सुबह से शुरू होता है। प्रतिदिन जल्दी स्नान करके माँ भगवती का ध्यान तथा पूजन करना चाहिए।
सर्वप्रथम कलश स्थापना की जाती है।
यह स्थापना स्वयं या योग्य ब्राह्मण से करवाई जा सकती है। एक साफ मिटटी के बर्तन में जौ बोये जाते हैं। मिटटी के बीच में कलश की स्थापना की जाती है। इसके बाद दुर्गा माँ की तस्वीर या मूर्ति की स्थापना की जाती है। लाल चुनरी अर्पित करके। धूप -दीप , नारियल और नेवेध्य चढ़ा कर प्रतिदिन शप्तशती का पाठ करना चाहिए। पाठ के बाद सिद्धि -कुंजिका का पाठ भी विशेष फलदाई है। सुन्दर काण्ड का पाठ भी किया जा सकता है।
नवरात्री में नित्य करने के नियम --
१). अखंड ज्योति जलाये।
२). दीपक के नीचे चावल रखें।
३). शुद्धता और पवित्रता का ध्यान रखे ना केवल शारीरिक ही बल्कि मानसिक पवित्रता भी बनाये रखें। झूठ ,कपट , छल और परनिंदा से भी बचें। ब्रह्मचर्य का पालन भी आवश्यक है।
४). देवी माँ दिखावे से नहीं भक्ति से प्रसन्न होती है।
५). देवी की पूजा के बाद दूध पीने से पूजा का फल शीघ्र मिलता है।
६). " ॐ एम् ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे " , गायत्री मन्त्र का मानसिक जप भी फलदायक होता है।
नवरात्री के अंतिम दिन कन्याओं का पूजन - भोजन करवा कर उन्हें यथा शक्ति उपहार और दक्षिणा भी दीजिये।
मेरे विचार में यह व्रत -पूजन सिर्फ उनको ही करना चाहिए या इस व्रत के करने के वे ही अधिकारी है जिन्होंने कभी कन्या भ्रूण हत्या ना की हों। जो भी यह व्रत करें वे एक बार अपने दिल पर हाथ रख कर सोचे कि क्या वे सच में ये व्रत करे या कन्याओं का पूजन करें। क्यूंकि हम कन्यायें तो चाहते है लेकिन सिर्फ दूसरों के यहाँ ही। अंत में नवरात्रों की शुभकामनाये देते हुए मैं यही कहूँगी की कन्याओं को पूजिये भी नहीं बल्कि सम्मान भी दीजिये।
बेहद उपयोगी जानकारी ....हार्दिक आभार उपासना सखी
ReplyDeleteSaarthak Vichar
ReplyDeleteएक सामायिक जानकारी,बहुत सरल ढंग से पूजा विधि बताया। कन्या पूजन का सही अधिकारी भी बताया।
ReplyDeletebahut sundar jankari om om ....
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